लेबनान और हिज्बुल्लाह पर इजरायल के हमले जारी हैं. हवाई हमलों के बाद जमीनी स्तर पर भी इजरायल लेबनान में हिज्बुल्लाह पर निशाना साध रहा है. इजरायल और हिज्बुल्लाह की इस जंग में ईरान एक तरह से अखाड़ा बन गया है.
जुलाई महीने में ईरान की राजधानी तेहरान में हमास नेता इस्माइल हानिया को मार गिराया गया था. हानिया हमास की पॉलिटिकल विंग का मुखिया था. वह ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुआ था. उसने ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई से मुलाकात भी की थी.
अब ठीक इसी तरह 27 सितंबर को लेबनान के बेरूत में जिस हमले में हिज्बुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह मारा गया, उस दौरान उनके साथ ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के डिप्टी कमांडर ब्रिगेडियर जनरल अब्बास निलफोरोशान भी थे. इस हमले में निलफोरोशान की भी मौत हो गई थी.
कौन थे अब्बास निलफोरोशान?
अब्बास निलफोरोशान का जन्म 1966 में ईरान के इश्फाहान में हुआ था. वह 1980 के दशक में सेना से जुड़े थे और बाद में वह आईआरजीसी से जुड़ गए. वह डिप्टी कमांडर सहित कई पदों पर रहे.
ईरान की मीडिया आउटलेट स्टूडेंट न्यूज नेटवर्क (SNN)ने निलोफोरोशान को एक महान शख्सियत बताया था, जिनकी देश की सुरक्षा में एक अहम भूमिका रही है. वह आईआरजीसी के ऑपरेशंस कमांड को देख रहे थे, ये कमांड सीधे तौर पर विभिन्न सैन्य और सुरक्षा अभियानों में शामिल है. इसमें विशेष रूप से सीरिया में सैन्य गतिविधि शामिल हैं.
अमेरिका ने 2022 में ईरान में महसा अमीनी की कस्टोडियल डेथ के बाद उन पर उसी साल प्रतिबंध लगाया था. इस दौरान अमेरिका ने जारी बयान में कहा था कि प्रोटेस्ट कर रहे नेताओं को गिरफ्तार करने में निलोफोरोशान की अहम भूमिका थी. अमेरिका ने उन्हें आईआरजीसी का अनुभवी कमांडर बताया था, जिन्होंने सीरिया के गृहयुद्ध के दौरान सैन्य सलाहकार के तौर पर भी काम किया था.
ईरान कैसे बना जंग का अखाड़ा?
इजरायल और ईरान लंबे समय से एक-दूसरे के साथ 'शेडो वॉर' में लगे हुए हैं. दोनों ही अक्सर जिम्मेदारी लिए बगैर एक-दूसरे पर हमले करते रहे हैं. लेकिन हमास जंग ने ईरान को भी जंग का अखाड़ा बना दिया है.
हमास से जंग शुरू होने के बाद इजरायल और ईरान के रिश्ते और खराब हुए हैं. ईरान अक्सर इस बात को खारिज करता रहा है कि उसे 7 अक्टूबर को होने वाले हमास के हमले के बारे में पहले से पता था. जबकि, इजरायल ने ईरान पर हमास का समर्थन करने का आरोप लगाया है.
हमास ही नहीं, लेबनान का हिज्बुल्ला और यमन के हूती विद्रोहियों को भी ईरान का समर्थन हासिल है. इनके अलावा इराक और सीरिया के कुछ गुटों को भी ईरान का समर्थन मिला है. ये सभी हमास से जंग में इजरायल के खिलाफ हैं.
हमास से जंग शुरू होने के 10 दिन बाद ही ईरानी सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई ने धमकी दी थी कि अगर इजरायल की बमबारी जारी रहती है तो मुसलमान और रेजिस्टेंस फोर्स बेकाबू हो जाएंगी और फिर उन्हें कोई नहीं रोक पाएगा. खामेनेई ने गाजा पर तुरंत बमबारी रोकने की चेतावनी दी थी.
पिछले साल 18 दिसंबर को ईरान पर एक साइबर हमला हुआ था. इस साइबर अटैक के कारण ईरान के 70 फीसदी फ्यूल स्टेशन का कामकाज बंद हो गया था. ईरान ने इसके लिए इजरायल को जिम्मेदार ठहराया था.
25 दिसंबर को ईरानी मीडिया ने दावा किया था कि सीरिया की राजधानी दमिश्क के बाहरी इलाके में इजरायली ने बमबारी की है, जिसमें IRGC के टॉप कमांडर रजी मौसावी की मौत हो गई. इसके बाद 15 जनवरी को ईरान ने उत्तरी इराक के एरबिल में इजरायली जासूसी एजेंसी मोसाद की पोस्ट पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागी थीं. इस हमले में चार लोगों की मौत हो गई थी और छह घायल हो गए थे.
ईरान अब क्या करेगा?
अब एक बार फिर से मध्य पूर्व में तनाव बढ़ गया है और एक बड़ी जंग का खतरा बढ़ गया है. हालांकि, अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन का कहना है कि फिलहाल मध्य पूर्व में जंग का खतरा नहीं है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर ईरान हमला करता है तो अमेरिका, इजरायल की मदद करेगा. कुछ जानकारों का मानना है कि ईरान इजरायल के साथ सीधी लड़ाई से बचेगा. इराक, सीरिया, लेबनान, गाजा पट्टी में कई चरमपंथी संगठनों को ईरान का समर्थन हासिल है, जिसे 'प्रॉक्सी' के रूप में जाना जाता है. अगर तनाव बढ़ता है तो इजरायल के खिलाफ ईरान प्रॉक्सी वॉर बढ़ा सकता है.