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अलास्का की पहाड़ी, एक लावारिस बस... 113 दिन तक बर्फ में फंसा रहा लड़का, मरने से पहले ली लास्ट सेल्फी

कहानी 24 साल के लड़के की जो अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहता था. लेकिन उसके एक गलत फैसले ने उसकी जिंदगी ही छीन ली. मरने के बाद पुलिस को जब उसकी लाश मिली तो उसकी डायरी और कैमरे से खुलासा हुआ कि कैसे वह अंतिम दिनों में मदद के लिए लोगों को ढूंढता रहा लेकिन उसे कोई मदद नहीं मिल पाई. बर्फ के बीचों-बीच उसकी जिंदगी खत्म हो गई. आखिर क्या हुआ था इस लड़के के साथ ऐसा चलिए जानते हैं विस्तार से...

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लावारिस बस के पास बैठा क्रिस्टोफर जॉनसन मैककैंडलेस.
लावारिस बस के पास बैठा क्रिस्टोफर जॉनसन मैककैंडलेस.

6 सितंबर 1992 का दिन, जब दो हाइकर्स अलास्का की पहाड़ियों में ट्रैकिंग कर रहे थे. तभी उन्हें सामने एक बस खड़ी हुई दिखाई दी. वो बस पूरी तरह बर्फ से ढकी हुई थी. सिर्फ उसका थोड़ा सा हिस्सा ही दिखाई दे रहा था. जैसे ही वे उस बस के पास गए उन्हें बदबू आने लगी. उन्हें लगा शायद कोई जानवर इस बस के अंदर मरा पड़ा है. वो इसे चेक करने के लिए बस के अंदर गए तो उनके रोंगटे खड़े हो गए. दरअसल, बस के अंदर एक लड़के की लाश पड़ी हुई थी जो कि बिल्कुल सड़ गई थी.

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उन्होंने तुरंत पुलिस को फोन किया. पुलिस हेलीकॉप्टर से वहां पहुंची तो पुलिसकर्मी भी लाश को देखकर भी दंग रह गए. वो हैरान थे कि आखिर यह शख्स यहां पहुंचा कैसे जहां दूर-दूर तक कोई रहता ही नहीं है. और न ही कोई यहां अकेले आने की हिम्मत कर सकता है. आखिर कौन था यह शख्स और कैसे इस जगह में आ पहुंचा चलिए जानते हैं विस्तार से...

The Guardian के मुताबिक, 12 नवंबर 1968 को अमेरिका के कैलीफोर्निया के इंगलवुड शहर में क्रिस्टोफर जॉनसन मैककैंडलेस (Christopher Johnson McCandless) नामक लड़के का जन्म हुआ. उसके पिता नासा में एरोस्पेस इंजीनियर थे. जबकि, मां कंसलटेंट की नौकरी करती थीं. वैसे तो क्रिसटोफर के 7 भाई बहन और भी थे लेकिन इनमें उसकी एक ही सगी बहन थी. जिसका नाम करीन था. बाकी 6 बच्चे उसके पिता की पहली पत्नी से पैदा हुए थे. क्रिस्टोफर यहां अपने मां-पिता, सगी बहन और 6 सौतेले भाई-बहनों के साथ रहता था.

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18 साल का होते-होते यहां क्रिस्टोफर ने अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी कर ली. इसके बाद उसने सोचा कि क्यों न अब दुनिया को एक्सप्लोर किया जाए. यही वो समय था जब उसकी फैमिली भी काम के सिलसिले में कैलिफोर्निया से वर्जीनिया शिफ्ट हो गई. क्रिस्टोफर ने सोचा कि क्यों न सबसे पहले एक बार फिर कैलिफोर्निया जाया जाए. वहां वह अपने दोस्तों से मिले और उनके साथ समय बिताए. कैलिफोर्निया जाकर उसके दोस्तों के माता-पिता से उसे पता चला कि उसके पिता की पहली पत्नी अभी जिंदा है और उससे उनका तलाक भी नहीं हुआ था. बावजूद इसके उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी.

यह सुनते ही क्रिस्टोफर को काफी धक्का लगा. क्योंकि वह बचपन से यही सुनता आ रहा था कि उसके पिता का तलाक हो चुका है. इसीलिए उन्होंने उसकी मां से शादी की थी. यहां उसे यह भी पता चला कि उसके पिता अभी भी पहली पत्नी से मिलने आते रहते हैं. क्रिस्टोफर यह सब जानकर काफी परेशान हो गया था कि उससे इतना बड़ा सच छुपाया गया. फिर भी उसने इस बारे में घर में कुछ भी नहीं बताया. दिन बीते और क्रिस्टोफर ने वर्जीनिया से ग्रैजुएशन भी पूरी कर ली.

अपना सब कुछ किया दान
जब उसने पढ़ाई पूरी की तो घर वालों को लगा कि अब क्रिस्टोफर अब नौकरी करेगा. लेकिन उसका प्लान तो कुछ और ही था. दिन आया मई 1990 का. क्रिस्टोफर ने पढ़ाई के दौरान पार्ट टाइम जॉब करके जो भी पैसा कमाया था उसे लिया और एक चैरिटी को दान कर दिया. उसने चैरिटी को 19 लाख 86 हजार से भी ज्यादा रुपये दान किए. वह अपना सब कुछ दान कर चुका था. यहां तक कि उसके पास फोन भी नहीं था. अब उसके पास एक रुपया भी नहीं बचा था. फिर वह एक दिन अपने घर से किसी को भी बिना कुछ बताए निकल गया. उसके पास सिर्फ एक बैग था.

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वह एक ऐसी जगह जाना चाहता था जहां वह अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जिए. उसने अपना सफर शुरू किया पैदल चलकर, तो कभी किसी से लिफ्ट लेकर. वह अक्सर मालगाड़ियों पर भी छुपकर सफर करता क्योंकि उसके पास पैसे थे ही नहीं. भूख मिटाने के लिए वह भीख मांग लेता. सोने के लिए कहीं भी किसी भी जगह वह सो जाता. फिर अगले दिन सफर पर निकल जाता. ऐसा कर करके उसने करीब ढाई हजार किलोमीटर का सफर तय कर लिया. ऐसा करने में उसे डेढ़ साल से भी ज्यादा का समय लगा. उसने अपनी पहचान तक छुपा रखी थी. सबको वह अपना नाम एलेक्जेंडर बताता.

अब अकेले रहना चाहता था क्रिस्टोफर
वह इस लाइफ से काफी खुश था. उसने कई पहाड़ों पर हाइकिंग भी की. उसे यह सब करने में मजा आ रहा था. लेकिन बस एक ही बात उसे मन में खाए जा रही थी. वह ये कि चाहे वह कितना भी आजाद क्यों नहीं है, लेकिन रहना तो उसे लोगों के बीच ही पड़ रहा है. अब उसका मन हुआ कि वह ऐसी जगह जाकर रहे जहां कोई भी नहीं रहता हो. सिर्फ वही वहां रहे और किसी से भी उसका कॉन्टेक्ट न हो पाए. फिर उसने सोचना शुरू किया कि आखिर ऐसी जगह उसे कहां मिलेगी. तब उसके मन में आया एक नाम 'अलास्का'. अलास्का ही एक ऐसी जगह है जहां जनसंख्या न के बराबर ही है.

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लिफ्ट लेकर पहुंचा अलास्का
दरअसल, यह इलाका ऐसा है जो 12 महीने बर्फ से ढका रहता है. ठंड यहां बेशुमार पड़ी रहती है. फिर दिन आया 28 अप्रैल 1992 का. क्रिस्टोफर ने एक गाड़ी वाले से लिफ्ट मांगी. दरअसल, वह शख्स अलास्का के पास ही जा रहा था. उसने क्रिस्टोफर को लिफ्ट दे दी. जिसके बाद दोनों एक साथ गाड़ी में बैठकर अलास्का की तरफ निकल गए. शख्स ने बीच में उससे पूछा भी कि आखिर तुम वहां जाकर करोगे क्या? इस पर क्रिस्टोफर ने बताया कि वह वहां हाइकिंग करके वापस आ जाएगा. शख्स ने उसका बैग देखा तो बोला कि तुम्हारे पास तो हाइकिंग का सामान भी नहीं है. फिर तुम वहां कैसे हाइकिंग करोगे? इस पर क्रिस्टोफर ने कहा कि वह जैसे-तैसे मैनेज कर लेगा. शख्स ने उसे सलाह भी दी कि बिना हाइकिंग के सामान के तुम वहां जाने का रिस्क मत लो. लेकिन क्रिस्टोफर नहीं माना और उसने कहा कि वह सिर्फ उसे वहां उतार दे. बाकी वह अपना देख लेगा. शख्स ने भी उसे ज्यादा फोर्स नहीं किया और अलास्का के स्टार्टिंग प्वाइंट में उतार दिया.

ऐसे की हाइकिंग की शुरुआत
यही वो अंतिम शख्स था जिसने क्रिस्टोफर को आखिरी बार जिंदा देखा था. अब यहां क्रिस्टोफर ने अलास्का की चढ़ाई शुरू कर दी. वो लगातार चलता जा रहा था. बीच में दो नदियां भी आईं. उन्हें भी वह पार कर गया. उसे तैरना नहीं आता था. फिर भी वह नदियों को पार कर गया क्योंकि उस समय नदियों का पानी काफी कम लेवल पर बह रहा था. नदियों को पार करके उसके कपड़े भीग चुके थे. उसके पास और कपड़े भी नहीं थे. बावजूद इसके वह उन्हीं गीले कपड़ों में आगे बढ़ता गया. सब कुछ सही चल रहा था. ऐसा करते-करते उसे चार दिन बीत गए. प्यास बुझाने के लिए वह बर्फ को पिघलाकर पी जाता. खाने के लिए रास्ते में चेरी और बेरीज (Cherry And Berries) तोड़ लेता. और उन्ही से भूख मिटा लेता.

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लावारिस बस को बनाया अपना घर
लेकिन 4 दिन के सफर में ही उसे अंदाजा हो चुका था कि अलास्का दिखने में जितना सुंदर है उतना ही बेरहम भी है. उसे पता लग चुका था कि अब वह ज्यादा नहीं चल पाएगा. लेकिन तभी रास्ते में ही उसे एक जगह लावारिस बस दिखाई दी. जिस पर बर्फ ही बर्फ पड़ी हुई थी. उस बस के टायर भी नहीं थे. सिर्फ बस का खोखा ही वहां पड़ा हुआ था. उसने सोचा कि क्यों न अब यहीं रहा जाए. इस बस को ही अपना घर बना लिया जाए. उसने किया भी ऐसा.

दिन ब दिन कमजोर हो रहा था क्रिस्टोफर
अब क्रिस्टोफर यहीं रहने लगा. शुरुआती दिन तो उसके अच्छे बीते. वह खाने के लिए पेड़ों से बेरी तोड़कर ले आता. कभी गिलहरियों तो कभी खरखोश का शिकार करके उन्हें खा जाता. खाली समय में वह किताबें पढ़ता जिन्हें वह साथ में लेकर आया था. दिन बीतते गए. लेकिन यहीं से ही पूरी कहानी पलट गई. दरअसल, जो खाना वह खा रहा था वह उसे ताकत नहीं दे रहा था. बल्कि, उससे वह कमजोर होता जा रहा था. उसकी तबीयत बिगड़नी शुरू हो गई. बताया जाता है कि जो बेरीज वह खा रहा था वह जहरीली थीं. जो कि धीरे-धीरे उसे अंदर से खत्म कर रही थीं.

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अलास्का से वापस जाना चाहता था क्रिस्टोफर
क्रिस्टोफर को अब यहां परेशानी होने लगी. तो उसने सोचा कि अब उसे शायद यहां से वापस जाना ही पड़ेगा. क्योंकि यहां वह शायद और ज्यादा दिन रहा तो मर जाएगा. उसने वापस जाने की तैयारी की. वह वहां से निकल भी पड़ा. लेकिन जब वह उन्ही दो नदियों के पास पहुंचा तो देखा कि उनका लेवल काफी ऊपर आ चुका है. उसे तैरना नहीं आता था. इसलिए मजबूरी में उसे वहां से वापस लौटकर फिर उस बस के पास आना पड़ा. अब उसे जिंदगी की कीमत पता लग रही थी. वह मदद के लिए लोगों को ढूंढने लगा. लेकिन वहां उसे कोई भी इंसान नहीं दिखा. उसने मदद के लिए अब डायरी के पेज पर लिखा कि 'मुझे बचा लो'. फिर उसे बस के सामने लगा दिया. ताकि कोई शख्स अगर वहां से गुजरे तो वह उस पर्चे को पढ़ कर उसकी मदद कर दे. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

कैमरे में खींची बस के साथ अंतिम तस्वीर
क्रिस्टोफर की अब हालत और खराब हो गई. वह रोजाना अपनी डायरी में डेट के साथ कुछ न कुछ लिखता था. लेकिन अब उसके अंदर इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वह कुछ लिख पाए. फिर आया 100वां दिन. उसने लिखा कि अब शायद वह मरने वाला है. इन अंतिम दिनों को वह कैमरे में कैद करना चाहता था. इसलिए उसने कैमरे को फिट करके बस साथ अपनी एक फोटो भी खींची. इस फोटो में उसके हाथ में एक नोट भी लिखा हुआ है. इसमें लिखा था 'भगवान शुक्रिया, मैंने अपनी जिंदगी अच्छे से जी.' फिर वापस बस में आकर बेसुध होकर गिर पड़ा. इसके बाद 107वां दिन आया. यह उसकी डायरी में अंतिम एंट्री थी. उसने लिखा था 'ब्यूटीफुल ब्लू बेरीज.' इसके बाद भी अगले 5 दिन तक उसने डायरी में कुछ लिखने की बजाय टिक बनाए. फिर 114वें दिन उसने वह टिक भी नहीं बनाए.

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मरने के समय वजन था 27 किलोग्राम
Washington Post के मुताबिक, इसी के 14वें दिन वही हाइकर्स उस जगह आए और उन्हें वहां क्रिस्टोफर की लाश मिली. पुलिस ने जब क्रिस्टोफर की डायरी देखी तो उससे अंदाजा लगाया कि शायद 113वें दिन उसकी मौत हुई है. उन्हें उसी डायरी से क्रिस्टोफर की कहानी भी पता चली. क्योंकि क्रिस्टोफर अपने बारे में अक्सर उस डायरी में लिखता रहता था. इसके बाद पुलिस ने जब लाश का पोस्टमार्टम करवाया तो पता लगा कि जब क्रिस्टोफर की मौत हुई तो उस वक्त उसका वजन सिर्फ 27 किलोग्राम रह गया था. साथ ही उसके मरने का भी कारण यहां सामने आया. वह था भूखमरी. वहीं, दूसरे डॉक्टर्स ने कहा कि उसकी मौत भूखमरी से नहीं बल्कि उन बेरीज को खाने से हुई है. डॉक्टर्स ने कहा कि शायद क्रिस्टोफर को खाने की पहचान नहीं थी. इसलिए उसने अच्छी बेरीज के साथ-साथ कुछ जहरीली बेरीज भी खा लीं. जोकि हमारे शरीर को धीरे-धीरे खत्म कर देती हैं.

क्रिस्टोफर की मौत के बाद कई लोग उसके सपोर्ट में आए तो कई लोगों ने उसके इस निर्णय को गलत बताया. कई लोगों ने कहा कि अगर उसे पता नहीं था कि अलास्का में कैसे रहना है तो वह वहां गया ही क्यों? तो वहीं, कई अन्य लोगों ने कहा कि क्रिस्टोफर सही था. वह अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहता था और उसने ऐसा किया भी. इसलिए वह गलत नहीं है.

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