तीन चौथाई सदी गुजर गई. यानी कि पूरे 75 साल. 75 साल उस घटना के जो मानव इतिहास में पहले कभी नहीं हुई. परमाणु हमला. 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर पहली बार परमाणु बम गिराया और अगले तीन चौथाई सदी के लिए खुद को दुनिया का सरदार घोषित कर दिया. 1945 से अबतक अमेरिका को चुनौतियां तो कई देशों और संगठनों से मिली लेकिन उसके न्यूमरो यूनो (नंबर एक) पोजिशन को अबतक कोई नहीं डिगा पाया.
अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के अपने दुश्मन और पर्ल हॉर्बर सैन्य अड्डे को तबाह करने वाले जापान को सबक सिखाने के लिए जिस बम का इस्तेमाल किया था उसका कोड नेम था 'लिटिल ब्वॉय'. लेकिन उतना भी छोटा नहीं था 'लिटिल ब्वॉय' जितना कि इसके शाब्दिक अनुवाद से पता चलता है. लंबाई थी 3.5 मीटर और वजन था 'लिटिल ब्वॉय' 4 टन. रंग नीला और सफेद.
परमाणु या एटम को लेकर एक आम शहरी का रोमांच इसी घटना के बाद पैदा हुआ. एक इतना छोटा कण जो आंखों से न दिखता हो लेकिन उसकी ताकत इतनी बेशुमार...आखिर कैसे?
6 अगस्त 1945 को सुबह जापान के आसमान में अमेरिकी जंगी जहाज बी-29 'एनोला गे' चक्कर काट रहा था. एक बार तो जापान के रडारों ने इस विमान का सिग्नल भी पकड़ लिया और अहम सैन्य प्रतिष्ठानों को चेतावनी भी दे दी. जापान में सायरन बज उठे और सेनाएं सतर्क हो गईं. लेकिन सुबह आठ बजते-बजते इस वार्निंग को वापस ले लिया गया और युद्धग्रस्त जापान में कुछ देर के लिए जिंदगी सामान्य हो गई. जापानी राष्ट्र के इतिहास में ये सामान्य पल कुछ ही मिनटों के लिए रहा, इसके बाद वहां कुछ ऐसा हुआ कि दुनिया की तस्वीर हमेशा-हमेशा के लिए बदल गई.
'लिटिल ब्वॉय' का 'ग्रेट डिस्ट्रक्शन'
जैसे ही घड़ी की सुइयों ने सुबह के ठीक सवा आठ बजाए जापान के शहर हिरोशिमा में जलजला आ गया. विज्ञान का 'लिटिल ब्वॉय' प्रकृति के 'ग्रेट डिस्ट्रक्शन' के लिए निकल चुका था. 43 सेकेंड भी न लगा और आंखों को चौंधिया देने वाली रोशनी पैदा हुई...कानों को सुन्न कर देने वाला धमाका हुआ. अचानक से तापमान 10 लाख डिग्री सेंटीग्रेड हो गया. जरा कल्पना कीजिए जिस खौलते पानी का तापमान 100 डिग्री होता है उससे अगर हमारी त्वचा छू जाए तो कैसी जलन होती है. अब उस दुर्दिन के बारे में सोचिए.
हिरोशिमा पर गिराया गया परमाणु बम लिटिल ब्वॉय (फोटो-Getty image)
इस बम की शक्ति 12500 टन टीएनटी के बराबर थी. हिरोशिमा के आसमान में जहरीले धुएं के बादल तेजी से फैलने लगे. पूरे शहर के ऊपर धुएं का गुबार छा गया. कई लोग तो क्षण भर में जलकर मर गए. लोगों के चमड़े गल-गल कर गिरने लगे. पीड़ा ऐसी कि बताई नहीं जा सकती. शहर में चीख-पुकार मची हुई थी. सिर के बाल झटके में जल गए थे. हिरोशिमा के लोग सिर्फ पानी-पानी ही कह पा रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे गले की नमी को किसी क्षण भर में सोख लिया है.
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तब हिरोशिमा की आबादी साढ़े 3.5 लाख की थी. एक अनुमान के मुताबिक एक लाख चालीस हजार लोग तुरंत मारे गए. हिरोशिमा के हर 10 में 9 घर ध्वस्त हो गए. अभूतपूर्व त्रासदी रही. पूरा हिरोशिमा शहर चौरस हो गया, कुछ ही इमारतें थी जो सीधी अवस्था में खड़ी रह पाईं. हिरोशिमा के आसमान में 20 हजार फीट की ऊंचाई तक धुआं दिखाई दे रहा था. परमाणु बम की ताकत की वजह से स्टील के मोटे-मोटे रॉड मुड़ गए. शहर में मलबा ही मलबा था. एटम बम के विध्वंसकारी ताकत को देख दुनिया भौचक्का था. महात्मा गांधी ने इस घटना को विज्ञान का सबसे बड़ा पैशाचिक कृत्य (Diabolic act) बताया था.
जापान में अब गिने-चुने Hibakusha
75 साल गुजर गए इस घटना को. 6 अगस्त को इस हमले का साक्षी बनकर जिंदा रहने वाले लोग अब जापान में चुनिंदा रह गए हैं. इन्हें वहां Hibakusha कहा जाता है, यानी कि हिरोशिमा और नागासकी के परमाणु हमले में जिंदा बचने वाले लोग. इनकी जिंदगी विज्ञान और मानवीय बर्बरता का जीवंत दस्तावेज बनकर रह गई. इनके साथ जापान में लंबे समय तक भेदभाव होता रहा. परमाणु बम का विकिरण जापान की कई पीढ़ियों के डीएनए तक में घुस गया. वहां पैदा होने वाली नस्लें आज भी अपंगता और कैंसर का शिकार होती है. ल्यूकेमिया, कैंसर और त्वचा से जुड़ी कई बीमारियां लोगों को परमाणु बम की दानवी शक्ति की याद दिलाती रहती है. वहां लोग लंबे समय तक वार सर्वाइवर के रूप में अपनी पहचान छिपाते रहे. जापान के प्रमुख अखबार एशिया निक्केई डॉट कॉम के मुताबिक अगस्त 2019 तक परमाणु हमले और उससे पैदा हुई बीमारियों के कारण 5 लाख लोगों की मौत हो चुकी है.
परमाणु हमले के बाद हिरोशिमा में बिखरा मलबा (फोटो-Getty image)
हिरोशिमा के बाद 9 अगस्त को अमेरिका ने जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर एक और परमाणु बम गिराया. इसी के साथ दूसरे विश्वयुद्ध में जापान ने बिना शर्त सरेंडर कर दिया. इस दोहरे परमाणु विभीषिका के बाद दुनिया को आणविक हथियारों से मुक्त कराने की बड़ी जोर-शोर से मांग हुई. पीड़ित होने की वजह से जापान इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहा था. 1955 में परमाणु खतरे के बारे में दुनिया को बताने के लिए हिरोशिमा पीस मेमोरियल म्यूजियम की स्थापना की गई. जापान और अमेरिका में हस्ताक्षर अभियान चलाए गए.
बढ़ता ही गया न्यूक्लियर क्लब
1945 में अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु हमले के बाद शक्ति संतुलन और वर्चस्व का जबर्दस्त खेल शुरू हुआ. द्वितीय विश्व युद्ध में विजय हासिल करने वाले तीन मित्र राष्ट्र अमेरिकी शक्ति से बौखला गए. 1949 में USSR, 1952 में ब्रिटेन, 1958 में फ्रांस ने 'प्रतिष्ठित' परमाणु क्लब में प्रवेश किया. 1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण किया और एलिट न्यूक्लियर क्लब में एंट्री ली.
परमाणु निरस्त्रीकरण
दुनिया के इन चौधरियों ने जब अपना-अपना परमाणु बम हासिल कर लिया तो इन्हें विश्व को परमाणु हथियारों से मुक्त कराने की चिंता सताई. इसके फलस्वरूप संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों की वजह से 1970 में परमाणु निरस्त्रीकरण संधि अस्तित्व में आई. संयुक्त राष्ट्र ने मई 1995 में इसे अनिश्चितकाल तक के लिए विस्तार दे दिया. कहने को तो परमाणु निरस्त्रीकरण संधि एक युगांतकारी संधि है जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों और हथियार तकनीक का प्रसार रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोगों में सहयोग बढ़ाना है. लेकिन दुनिया के जिओ पॉलिटिक्स में शायद ही ऐसा हुआ हो.
शीत युद्ध के बीच परमाणु निरस्त्रीकरण
एक ओर तो दुनिया को परमाणु अस्त्रों से मुक्त करने की योजनाएं बनाई जा रही थी, दूसरी ओर 1961 में ही अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध शुरू हो चुका था. एक ओर तो ये देश परमाणु अप्रसार की बात कर रहे थे, दूसरी तरफ वर्चस्व की लड़ाई में इन्होंने परमाणु बमों की भट्टियां ही खोल ली थी. परमाणु बम तो शुरुआत थी, इसके बाद हाइड्रोजन बम बनाया गया. न्यूट्रान बम पर काम हुआ. मई 1951 में अमरीका ने और नवंबर 1952 में USSR ने अपने प्रथम हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया. 1954-55 में दोनों देशों ने हाइड्रोजन बम बना भी लिया. परमाणु बमों की होड़ में भारत 1974 शामिल हुआ जब देश ने पोखरण में विस्फोट किया.
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इसके बाद तो दुनिया में परमाणु हथियारों को हासिल करने की होड़ सी चल पड़ी. परमाणु क्लब के पांच घोषित सदस्य अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के अलावा पिछले 75 सालों में भारत, पाकिस्तान, इजरायल, उत्तर कोरिया ने घोषित रूप से परमाणु बम हासिल किया है. जबकि माना जाता है कि ईरान, कनाडा, जर्मनी, द. अफ्रीका परमाणु बम बनाने की क्षमता रखते हैं. हालांकि परमाणु बमों से गोपनीयता का क्लॉज इतनी सख्ती से जुड़ा है कि इसकी असल तस्वीर का आकलन मुश्किल है. दुनिया की खुफिया एजेंसियां और थिंक टैंक इस बारे में अनुमान ही लगाते हैं.
75 साल बाद महाबली हो गया है 'लिटिल ब्वॉय'
शीत युद्ध और परमाणु होड़ का नतीजा ये रहा कि 45 का 'लिटिल ब्वॉय' भीषण और भीमकाय हो गया है. इस वक्त दुनिया भर के परमाणु हथियारों का जखीरा इतना हो गया है कि संपूर्ण ब्रह्मांड की मानवता को कई बार खत्म की जा सकती है.
नागासाकी यूनिवर्सिटी रिसर्च सेंटर फॉर न्यूक्लियर वेपन एबॉलिशन के आंकड़ों के मुताबिक इस दुनिया भर में 13410 परमाणु हथियार हैं. इसमें से 90 फीसदी तो रूस और अमेरिका के पास है. मास्को के जखीरे में कुल 6370 परमाणु हथियार हैं, इनमें 812 इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल (ICBM) और 560 पनडुब्बी से लॉन्च किए जाने वाले बैलेस्टिक मिसाइल (SLBM-Submarine-launched ballistic missile) हैं.
परमाणु बम लिटिल ब्वॉय को गिराने वाले क्रू के सदस्य (फोटो-Getty image)
दूसरे नंबर पर अमेरिका है, जिसके पास 5800 न्यूक्लियर वारहेड हैं. इसमें 400 ICBM और 900 SLBM हैं.
नागासाकी यूनिवर्सिटी रिसर्च सेंटर फॉर न्यूक्लियर वेपन एबॉलिशन की रिपोर्ट के मुताबिक चीन के पास 320, फ्रांस के पास 290, ब्रिटेन के पास 195, पाकिस्तान के पास 160, भारत के पास 150 इजरायल के 80 से 90 और उत्तर कोरिया के पास 35 परमाणु हथियार हैं.
इन बमों की भयावह ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका का इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल हिरोशिमा पर गिराये गए बम से 20 गुना ज्यादा ताकतवर है. फोर्ब्स पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1945 में जिस 'लिटिल ब्वॉय' को हिरोशिमा के ऊपर गिराया गया था, उसकी क्षमता मात्र 15 किलोटन थी, लेकिन उसकी तबाही आप देख चुके हैं. आज अमेरिका का ट्राइडेंट SLBM इस्तेमाल किए जाने पर 455 किलोटन ऊर्जा पैदा कर सकता है, जबकि रूस का एक ICBM 800 किलोटन एनर्जी रिलीज करने की क्षमता रखता है.
हालांकि परमाणु हथियारों की इस सूची को एक्सक्लूसिव और फाइनल नहीं माना जा सकता है. इसकी वास्तविक संख्या का पता लगाना मुश्किल है और आशंका ये है कि इनकी सही संख्या और मात्रा और भी ज्यादा है. अब सिर्फ इस बात की कल्पना कीजिए कि अगर इंसान की पीढ़ी को कभी किसी पागल-सनकी नेता या जनरल की वजह से परमाणु युद्ध देखना पड़ा तो...