
एचएमएस पर्सियस (HMS Perseus) एक सबमरीन थी, जिसे ब्रिटिशर्स ने मिस्र के एलेक्जेंड्रिया (Alexandria) को सौंपा था. इसे 1929 में बनाया गया था. इसका काम बस एलेक्जेंड्रिया से माल्टा आइलैंड तक जरूरी सामान पहुंचाना था. फिर आया 26 नवंबर 1941 का दिन जिसके बाद यह पनडुब्बी कभी सही सलामत बाहर न आ सकी.
दरअसल, इस दिन HMS पर्सियस माल्टा से निकलकर एलेक्जेंड्रिया वापस जाने के लिए निकली. 10 दिन तक तो सब कुछ सही रहा. लेकिन बदकिस्मती से 6 दिसंबर 1941 की रात को 10 बजे HMS पर्सियन समुद्र के अंदर एक इतालवी माइन की चपेट में आ गई. जिसके बाद इसमें जोरदार धमाका हुआ. जिसके बाद इसने समुद्र में डूबना शुरू कर दिया.
उस वक्त इस पनडुब्बी में कुल 61 लोग सवार थे. जिसमें से 59 स्टाफ के लोग और दो यात्री शामिल थे. उन दो यात्रियों को एलेक्जेंड्रिया वापस जाना था. इसलिए वे इस पनडुब्बी के जरिए माल्टा से वापस एलेक्जेंड्रिया जा रहे थे. उन दो यात्रियों में से एक थे 31 वर्षीय जॉन केप्स (John Capes) जो कि एकलौते ऐसे शख्स थे जो इस हादसे में जिंदा बच सके थे. क्योंकि बाकी सभी लोगों की इस हादसे में मौत हो गई थी.
जब सबमरीन में धमाका हुआ तो जॉन अपने बंकर में लेटे हुए थे. उन्हें जोरदार धमाके की आवाज आई. और इसी धमाके के बाद जॉन को भी जोरदार झटका लगा, जिस कारण वह बंकर से बाहर की तरफ आ गिरे. पूरी सबमरीन में लाइट बंद हो गईं. फिर सबमरीन तेजी से समुद्र की गहराई में समाने लगी.
अब यह पनडुब्बी 170 फीट नीचे मौजूद तल पर जाकर रुकने वाली थी. केप्स ने सोचा कि उनके पास अभी भी मौका है इस सबमरीन से निकलने का. किस्मत से उनके हाथ एक टॉर्च लग गई. टॉर्च जलाते ही केप्स ने देखा कि सबमरीन से ऑक्सीजन बाहर जा रही है और समुद्र का खारा पानी उसमें भरता जा रहा है, वो भी बहुत ही तेजी से.
लाशों के ऊपर से निकलते हुए इंजन तक पहुंचे केप्स
सबमरीन से बाहर निकलने की उम्मीद में केप्स करीब 24 लाशों के ऊपर पैर रखते हुए बाहर की तरफ निकलने लगे. वो इंजन रूम तक पहुंचे. उन्हें जाना तो उससे भी आगे था लेकिन वो इससे आगे जा नहीं सके. क्योंकि वो उसके आगे का गेट खोलते तो पानी एकदम से पनडुब्बी के अंदर आ जाता और उनकी मौत तभी हो जाती.
तभी उन्हें स्टाफ के तीन लोग मिले जो उस समय जिंदा बचे हुए थे. केप्स उनसे साथ एस्केप चैंबर तक जाने के लिए निकले. इस चैंबर से उन्हें एस्केप सूट मिले. चारों ने वे सूट पहन लिए. लेकिन यहां एक दिक्कत थी. दरअसल, इन सूट्स को 100 फीट की गहराई से बाहर निकलने के लिए बनाया गया था. इससे नीचे अगर कोई फंसा हो तो ये सूट्स काम नहीं करेंगे. क्योंकि इनके अंदर उतनी की ऑक्सीजन भरी हुई थी.
170 फीट नीचे थी सबमरीन
सबमरीन की रीडिंग के हिसाब से उनकी पनडुब्बी 270 फीट नीचे थी. लेकिन वो रीडिंग गलत थी. असल में यह पनडुब्बी 170 फीट नीचे थे. टेक्निकल प्रोब्लम की वजह से रीडिंग गलत दिख रही थी. अब चारों को यह टेंशन हो गई कि वे 100 फीट के बाद कैसे और ऊपर जा पाएंगे. क्योंकि तब तक तो एस्केप सूट्स की ऑक्सीजन भी खत्म हो जाएगी.
लेकिन उन्होंने रिस्क लेते हुए तय कर लिया कि वे बाहर निकलने की कोशिश करेंगे. बाकी जो होगा वो देखा जाएगा. चारों ने बाहर निकलने से पहले शराब के घूंट मारे. फिर वहां से बाहर निकल पड़े. लेकिन आगे पानी का दबाव इतना था कि ऐसा लग रहा था मानो उनकी हड्डियां टूट रही हों. बावजूद उसके वे चारों आगे बढ़ते रहे.
शरीर ने दे दिया था जवाब, फिर भी तैरते रहे जॉन
लेकिन धीरे-धीरे वह दबाव इतना बढ़ा कि तीन लोगों के शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया और वे डूबकर मर गए. वहीं, न जाने कैसे लेकिन जॉन किसी तरह सतह पर आ पहुंचे. जैसे ही वे सतह पर पहुंचे उनके शरीर में भयानक दर्द उठा. वे अपने हाथ-पांव तक नहीं हिला पा रहे थे. लेकिन उन्हें खुशी थी कि वे उपर तक आ गए थे. तभी उन्होंने पास ही एक पहाड़ी (Greek Island) को देखा. वो उनसे बस 5 मील की दूरी पर थी. उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हाथ-पैर मारते हुए जैसे-तैसे करते वहां पहुंच गए.
वो समुद्र के किनारे आते ही बेहोश हो गए. BBC के मुताबिक, कुछ समय बाद ग्रीक मछुआरों ने उन्हें देखा और तुरंत अपने घर ले गए. उस समय द्वितीय विश्व युद्ध के चलते उस पहाड़ी पर इतालवी सेना ने अपना कब्जा कर लिया था. जिस कारण कई दिन तक जॉन को मछुआरों के घर छुप कर रहना पड़ा.
अगले 18 महीनों तक जॉन इसी तरह वहां रहे. उनका वजन 30 किलोग्राम तक कम हो गया था. साथ ही उन्होंने अपने बालों का रंग भी बदलकर हल्का भूरा कर लिया था ताकि वे लोकल लोगों जैसे ही दिखें और इतालवी सेना को ये ना लगे कि वे किसी और देश के हैं. नहीं तो वे उन्हें जासूस समझकर मार सकते थे.
18 महीने बाद दुनिया के सामने आए जॉन
फिर 18 महीने बाद मई 1943 में एक मछुआरे की सहायता से जॉन केफेलोनिया (Kefalonia) से एक जहाज में छुपते-छुपाते तुर्की (Turkey) तक पहुंच गए. फिर वहीं से वे आगे एलेक्जेंड्रिया पहुंचे. जॉन को फिर ब्रिटिश एंपायर मेडल से सम्मानित किया गया. लेकिन कई लोगों का मानना था कि ऐसा हो पाना बिल्कुल असंभव हैं.
इसके पीछे कई तर्क भी रखे गए. दरअसल, सबरीन में सवार लोगों की लिस्ट में जॉन का नाम था ही नहीं. वहीं, ये भी कहा जा रहा था कि चैंबर के नट बाहर से बंद होते हैं. ऐसे में उन्होंने चैंबर को कैसे खोल लिया. न ही जॉन के पास उस यात्रा से संबंधित को सबूत थे. इसलिए लोग उन्हें झूठा ही मानते रहे.
जॉन की मौत के 12 साल बाद मिले सबूत
इसके बाद 1985 में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के 12 साल बाद फिर 1997 में उनकी पूरी कहानी की जांच की गई तो पता चला कि जॉन बिल्कुल सही बोल रहे थे. जो जगह उन्होंने बताई थी वहीं, से सबमरीन का मलबा भी मिला.
सबमरीन का बंकर भी बिल्कुल वैसा ही था जैसा केप्स ने बताया था. उस एस्केप चैंबर का गेट भी वैसा ही खुला था जैसा केप्स ने बताया था. और शराब भी बोतल भी मिली जिसे चारों लोगों ने सबरीन से बाहर निकलने से पहले समय पिया था.
इससे सिद्ध हो गया कि जॉन ने जो कुछ भी बताया था वो सब सच था. केप्स की सच्चाई का सबसे बड़ा सबूत था वो मीटर जिसमें तब भी 270 फीट ही लिखा हुआ था. जबकि, वो गहराई 170 फीट थी.
इसके बाद उन पर बहुत की डॉक्यूमेंट्री भी बनाई गईं, जिनमें से एक है 'The perseus Survivor'. इसे साल 2000 में बनाया गया था.