इजरायल और ईरान की दुश्मनी जितनी पुरानी है, उतनी ही ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा. इजरायल के बारे में कहा जाता है कि उसके पास परमाणु बम है लेकिन आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं करता है. इजरायल के परमाणु हथियारों को लेकर ईरान की चिंता लंबे समय से रही है. ईरान पिछले कई दशकों से परमाणु बम हासिल करने में लगा है और उतने ही समय से पश्चिम के देश उसे रोकने में.
हालांकि, ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को ऊर्जा जरूरतों से जोड़ता है. लेकिन इस पर कोई भरोसा नहीं करता है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम से न केवल इजरायल और पश्चिम के देशों को दिक्कत है बल्कि पड़ोसी सुन्नी मुस्लिम बहुल देश सऊदी अरब भी इसे लेकर परेशान रहता है.
सोमवार को ईरान ने अपनी भूमिगत फोर्डो परमाणु ईकाई में 20 फीसदी तक यूरेनियम संवर्धन करने का फैसला किया है. ऐसे में ईरान के परमाणु बम बनाने की कोशिशों को लेकर कयास फिर से तेज हो गए हैं. इससे अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन पर भी शपथग्रहण से पहले दबाव बढ़ सकता है. बाइडन ने कहा था कि वह ईरान के साथ परमाणु समझौते को फिर से बहाल कर सकते हैं.
ईरान के साथ साल 2015 में हुए परमाणु समझौते को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साल 2018 में रद्द कर दिया था और ईरान पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए थे.
इस समझौते में ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित रखने पर सहमति दी थी. हालांकि, अमेरिका के समझौते से बाहर होने के बाद ईरान ने भी समझौते की शर्तों का उल्लंघन करना शुरू कर दिया.
ईरान अब तक समझौते में शामिल तमाम पाबंदियों का उल्लंघन कर चुका है. लेकिन ईरान संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की टीम को अपने यहां निरीक्षण करने की इजाजत दे रहा है. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने संकेत दिए हैं कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम पर अभी उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा है जितनी उसकी क्षमता है.
अब तक ईरान ने क्या-क्या किया?
साल 2015 में हुए परमाणु समझौते के तहत, ईरान के लिए संवर्धित यूरेनियम के भंडार की सीमा 202.8 किलो तय की गई थी. समझौते से पहले ईरान के पास आठ टन से ज्यादा संवर्धित यूरेनियम का भंडार था. साल 2019 में ईरान ने इस शर्त का उल्लंघन किया. नवंबर महीने में IAEA ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि वर्तमान में ईरान में संवर्धित यूरेनियम का भंडार 2442 किलो है.
समझौते में ये भी शर्त रखी गई थी कि ईरान 3.67 फीसदी तक ही यूरेनियम संवर्धन कर सकता है. इतनी शुद्धता के यूरेनियम का इस्तेमाल बिजली निर्माण के लिए किया जाता है जबकि परमाणु हथियार बनाने के लिए 90 फीसदी तक यूरेनियम संवर्धन जरूरी है. ईरान जुलाई 2019 में इस शर्त का उल्लंघन कर चुका है. तब से लेकर अब तक, ईरान ने 4.5 फीसदी तक यूरेनियम संवर्धन जारी रखा है.
समझौते में फॉर्डो साइट में यूरेनियम संवर्धन पर प्रतिबंध लगाया था. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, ये साइट ईरान ने एक पहाड़ के अंदर गोपनीय तरीके से बनाई थी. साल 2009 में पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियों ने इस साइट के बारे में बताया था. ईरान की इस साइट में 1044 आईआर-1 सेंट्रिफ्यूज मौजूद है. ईरान ने सोमवार को कहा है कि वो फॉर्डो साइट में 20 फीसदी तक यूरेनियम संवर्धन करने जा रहा है. इससे बाइडन प्रशासन की परमाणु समझौते को बहाल करने की कोशिशों को झटका लग सकता है.
परमाणु बम बनाने के कितने करीब है ईरान?
कई राजनयिकों और परमाणु विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान को परमाणु बम बनाने के लिए जरूरी मटीरियल जुटाने में एक साल से ज्यादा का वक्त लग सकता है.
संयुक्त राष्ट्र में हथियारों की निगरानी करने वाले पूर्व अधिकारी डेविड अलब्राइट ने नवंबर महीने में अनुमान लगाया था कि ईरान को परमाणु हथियार बनाने में जरूरी संवर्धित यूरेनियम बनाने में कम से कम साढ़े तीन महीने लग सकते हैं लेकिन इसका मतलब है कि ईरान 1000 आधुनिक सेंट्रीफ्यूज का इस्तेमाल करेगा जिसे समझौते में प्रतिबंधित किया गया था.
विश्लेषकों का कहना है कि अगर ईरान परमाणु हथियार सामग्री जुटा लेता है तो उसके बाद परमाणु बम बनाने की तैयारी करेगा. इन सबमें कुल कितना वक्त लगेगा, ये तो स्पष्ट नहीं है लेकिन परमाणु हथियार बनाने में सबसे बड़ी चुनौती परमाणु सामग्री जुटाना ही है.
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और IAEA का मानना है कि ईरान का एक परमाणु हथियार कार्यक्रम था जिसे उसने बाद में रोक दिया. कई साक्ष्य भी इस बात का इशारा करते हैं कि ईरान ने एक परमाणु हथियार की डिजाइन हासिल कर ली है और इसे तैयार करने के लिए कई जरूरी काम पूरे कर लिए हैं.
फिलहाल, ईरान ने अपने घोषित परमाणु केंद्र में IAEA को निगरानी की अनुमति दी हुई है. हालांकि, साल 2020 में IAEA और ईरान के बीच दो संदिग्ध पुरानी साइट की निगरानी को लेकर विवाद छिड़ गया था.