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मलबे के नीचे दबने पर कोई कितने दिन रह सकता है जिंदा, कैसे कुछ लोग बिना खाए-पिए महीनेभर रह सके जीवित?

Turkey–Syria earthquakes: सामान्य सेहत वाला वयस्क इंसान बिना खाए-पिए लगभग हफ्तेभर भी जीवित रह सकता है. लेकिन मलबे के नीचे जिंदा रहना इसपर तय करता है कि शख्स किस पोजिशन में दबा हुआ है और उस तक हवा पहुंच रही है, या नहीं. संयुक्त राष्ट्र किसी प्राकृतिक आपदा में 5 से 7 दिनों तक सघन रेस्क्यू अभियान चलाए रखने की बात करता है.

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तुर्की और सीरिया में आए विनाशकारी भूकंप में हुए नुकसान का अब तक हिसाब नहीं मिल सका है. (Reuters)
तुर्की और सीरिया में आए विनाशकारी भूकंप में हुए नुकसान का अब तक हिसाब नहीं मिल सका है. (Reuters)

तुर्की और सीरिया में सोमवार तड़के आए भूकंप के कई जोरदार झटकों से भारी नुकसान हुआ. दोनों देशों को मिलाकर अब तक 8 हजार से ज्यादा जानें गई हैं. बहुत से लोग अब भी मलबे के नीचे दबे हैं, जिन्हें निकालने का काम चल रहा है. आशंका जताई जा रही है कि मलबे से निकालने में देरी से मौतों का आंकड़ा 20 हजार पार सकता है. पुराने उदाहरणों के आधार पर माना जा रहा है कि भूकंप के मलबे में दबकर भी सामान्य सेहत वाला इंसान 3 से 5 दिनों तक जिंदा रह सकता है. वहीं कई मामलों में दो से तीन हफ्ते में भी सर्वाइवल हो सकता है, जो कुछ खास हालातों पर निर्भर करता है. 

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हैती का ये शख्स महीनेभर रहा जीवित
12 जनवरी 2010 को हैती में आए विनाशकारी भूकंप ने हजारों जानें ले लीं, जबकि लाखों लोग बेघर हो गए. इसी भूकंप में इवान्स मॉन्जिकनेक नाम का शख्स मलबे के नीचे से पूरे 27 दिनों बाद जिंदा लौट आया. इस बीच वो जमीन में कहीं रिस रहा नाली का पानी पीता रहा, लेकिन खाने को कुछ नहीं मिल सका. लगभग महीनेभर मलबे के भीतर दबे रहकर भी जिंदा रहे इवान्स पर कई सारी डॉक्युमेंट्रीज भी बनीं. युवक ने माना कि परिवार की याद और उन्हें देख सकने की इच्छा ने ही उसे जिंदा रखा. 

सिओल का युवक कार्डबोर्ड खाकर रहा जिंदा
साल 1955 में दक्षिण कोरिया से भी ऐसा ही मामला आया. 29 जून को वहां की राजधानी सिओल के मुख्य बाजार पर बना पांच-मंजिला डिपार्टमेंट स्टोर एकाएक गिर पड़ा. हादसे में 500 लोग मारे गए, और 900 से ज्यादा घायल हुए. रेस्क्यू टीम तेजी से लोगों को निकालने का काम करने लगी. हालांकि मलबा बेहद खतरनाक स्थिति में था और थोड़ी भी तेज हरकत से भरभराकर गिरने लगता था.

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संभलकर काम करती रेस्क्यू टीम ने सैकड़ों लोगों को 2 दिन के भीतर जिंदा निकाल लिया. इसके बाद भी मलबे में खोजबीन चलती रही. मशीनों को संकेत मिल रहा था कि भीतर कोई जीवित है. 15 दिन बाद एक युवक गिरी हुई इमारत के भीतर से निकाला जा सका. 22 साल का ये युवक चोई मुयंग सुक कंक्रीट की दो परतों के बीच दबा हुआ था. 

how long human can survive in rubble of earthquake amid turkey syria earthquake
 यूएन की गाइलाइन्स के मुताबिक लगभग हफ्तेभर तक रेक्स्यू अभियान चलना ही चाहिए. (AP)

शरीर में बनाए रखी मूवमेंट
बाहर निकलने के बाद उसने बताया कि लगभग दो हफ्ते तक वो मलबे के भीतर जिंदा कैसे रह सका. चोई के मुताबिक जब बिल्डिंग गिरी, वो भीतर शॉपिंग करने आया हुआ था. किसी चीज से जोर से गिरने के बाद वो बेहोश हो गया और जब होश में आया तो घुप अंधेरा था. चोई के पास बस इतनी ही जगह थी कि वो एक से दूसरी बार करवट ले सके. वो कभी पीठ, कभी पेट के बल लेटा रहता. बीच-बीच में अपने पैर-हाथ की अंगुलियां हिलाता और पलकें झपकाता ताकि मूवमेंट बना रहे. पूरे 15 दिनों तक उसे खाना-पानी नहीं मिला. प्यास लगने पर वो कंक्रीट को चाट लेता और भूख लगने पर पास पड़े कार्डबोर्ड को कुतरता रहता. 

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इसी तरह से बांग्लादेश के ढाका में भी कमजोर इमारत के गिरने पर मलबे के नीचे दबी एक महिला रेशमा 17 दिनों बाद जीवित निकाली गई. वो लगातार बांग्ला में 'मुझे बचा लो; बुदबुदा रही थी. ये उदाहरण अपवाद हो सकते हैं, लेकिन माना जाता है कि कोई भी एडल्ट लगभग हफ्तेभर तक बिना खाए-पिए जिंदा रह सकता है. यही वजह है कि प्राकृतिक आपदा आने पर यूनाइटेड नेशन्स 5 से 7 दिनों तक रेस्क्यू ऑपरेशन जारी रखने की बात कहता है. ये वो पीरियड है, जिसमें भूकंप या बाढ़ के बाद मची तबाही में स्थिरता आ चुकी होती है. 

क्या है सबसे जरूरी?
सर्वाइवल इस बात पर निर्भर करता है कि जब भूकंप आया या कोई भी इमारत किसी वजह से गिरी तो उसके भीतर हम कैसी स्थिति में हैं. अगर बाहरी दुनिया से हवा-पानी का संपर्क बना हुआ है तो जीने के चांसेज बढ़ जाते हैं. लेकिन अगर भीतर फंसा आदमी जख्मी हो तो बहुत आशंका है कि हवा-पानी यहां तक कि खाने को थोड़ी-बहुत चीजें होने पर भी वो जिंदा न रह सके. ज्यादातर लोग सामान्य चोट के बाद भी क्रश सिंड्रोम से मारे जाते हैं. मलबे के नीचे दबने पर वे हाथ-पैरों और शरीर को दबा या सिकुड़ा हुआ महसूस करते हैं. मांसपेशियों में सूजन आने लगती है. कई बार सूजन न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें पैदा करने लगती है. इससे जीने के चांसेज घट जाते हैं. 

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मलबे के अंदर तापमान बढ़ने पर हाइपरथर्मिया से भी मौत का खतरा रहता है. सांकेतिक फोटो (Reuters)

हवा में बढ़ने लगता है जहर
मलबे के नीचे बंद जगह पर कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर खतरनाक तरीके से बढ़ जाता है. इससे इतनी गर्मी पैदा होती है कि अगर कोई एकदम बंद जगह पर फंसा हो तो चाहे उसके पास लाख खाना-पानी हो, जल्दी रेस्क्यू न हुआ, तो मौत का डर रहता है. अक्सर सर्च टीमें मलबे के भीतर कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर चेक करती रहती हैं ताकि तय किया जा सके कि किस हिस्से पर कितना ध्यान देना चाहिए. 

पानी के बिना कितने दिन जीवित?
औसत इंसान पानी के बिना 3 से 7 दिन भी जिंदा रह सकता है, लेकिन ये भी हालात पर निर्भर करता है. अगर मलबे के भीतर तापमान ज्यादा है तो शरीर में हाइड्रेशन जल्दी कम होता चला जाएगा. ऐसे में पानी की ज्यादा जरूरत पड़ेगी. वहीं सामान्य तापमान पर सर्वाइवल का समय बढ़ जाता है.

कूड़े का मलबा बेहद खतरनाक
मलबे के भीतर सर्वाइवल बढ़ना-घटना इसपर भी टिका रहता है कि मलबा आखिर किस चीज का है. जैसे कूड़े के मलबे के नीचे दबने पर जिंदा रहने की संभावना बहुत कम रहती है. इसकी वजह सिर्फ दबा होना नहीं है, बल्कि कूड़े से जहरीली गैसों का निकलना है. कचरे में कई किस्म की चीजें होती हैं. इसमें प्लास्टिक भी होगा, दवाएं-खतरनाक केमिकल भी, और खाना भी. ये सब मिलकर बैक्टीरियल ब्रेक-आउट पैदा करते हैं, जिससे जहरीली गैसें बनाती हैं, जैसे मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड. इनके अलावा कुछ प्रतिशत अमोनिया, नाइट्रोजन और हाइड्रोजन जैसी गैसें भी बनती हैं. ये अपने-आप में रिस्क है. बन रही इमारत में पेंट जैसी चीजें भी हवा में ऑक्सीजन घटा देती हैं. यानी अंडर-कंस्ट्रक्शन इमारत में भी सर्वाइवर घट जाते हैं. 

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