रूस का जिगरी दोस्त सीरिया काफी वक्त से अमेरिका को खटक रहा था. रूस के साथ मिलकर सीरियाई सेना जिस तरह से विद्रोहियों को निपटा रही थी. ये अमेरिका को कभी रास नहीं आया. यही कारण है कि जैसे ही सीरिया ने रासायनिक हथियार के इस्तेमाल की गलती. वैसे ही अमेरिका ने हमला बोल दिया.
7 अप्रैल 2018
यही वो तारीख थी, जब दुनिया रासायनिक हमले की खबर सुन कर सन्न रह गई. सीरिया के डूमा शहर में सीरियाई वायु सेना ने दो रासायनिक पदार्थ वाले बम गिराए. पहला बम शाम 4 बजे उत्तर पश्चिम डूमा की ओमल इब्न अल खत्तब स्ट्रीट पर बने एक बेकरी को निशाना बनाकर गिराया गया. दूसरा बम डूमा के पूर्वी इलाके में शाम साढ़े 7 बजे गिराया गया. इन हमलों में 150 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबरें मिलीं, जिनमें ज्यादातर बच्चे और महिलाएं थीं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक खतरनाक केमिकल से घरों में बैठे-बैठे लोगों की मौत हो गई.
हमले में सैरिन गैस का इस्तेमाल
ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपन ने पीड़ितों के सैंपल के आधार पर सीरिया में केमिकल हथियारों से हमले की पुष्टि की. ये नर्व एजेंट के जरिए हमला था, जिसमें क्लोरीन के साथ सैरिन गैस का भी इस्तेमाल किया गया था. असद सरकार की इस अमानवीय करतूत ने पहले से तमतमाए ट्रंप सरकार को मौका दे दिया. अमेरिका ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया, फिर अपने दोस्त देशों को भरोसा में लेकर सीरिया को सबक सिखाने का फैसला किया.
असद सरकार के विद्रोहियों के गढ़ डूमा पर रासायनिक हथियार से हमले से ठीक हफ्ते भर के अंदर अमेरिका ने सीरिया पर हमला बोल दिया. फ्रांस और ब्रिटेन ने भी हमले में खुलकर साथ दिया. सीरिया पर हमले के बाद पूरी दुनिया दो खेमे में बंटी नजर आ रही है. अमेरिका के साथ फ्रांस, ब्रिटेन के अलावा जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, इस्राइल हैं तो दूसरे खेमे में रूस और ईरान हैं, जो सीरिया का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं.
अमेरिका के राष्ट्रपति मिशन को पूरा मानकर चुप बैठ गए. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या रूस चुप बैठेगा या जवाबी कार्रवाई करेगा और अगर रूस का पलटवार हुआ तो क्या तीसरे विश्व युद्ध की आशंका से बचा जा सकेगा.