पाकिस्तान में इमरान खान की गिरफ्तारी और उनकी जमानत को लेकर मची राजनीतिक उठापटक के बीच सोमवार को प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व में सत्ताधारी PDM सुप्रीम कोर्ट के सामने धरना दे रही है. शहबाज शरीफ की सरकार का मानना है कि भ्रष्टाचार मामले में इमरान खान की गिरफ्तारी को गैर-कानून बताने वाली सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस उमर अता बांदियाल खान के पक्ष में फैसले दे रहे हैं.
यह कोई पहला मामला नहीं है जब पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच ठनी हो बल्कि 26 साल पहले भी ऐसा ही एक वाकया हुआ था जिसमें चीफ जस्टिस समेत सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपनी जान बचाने के लिए कोर्ट से भागना पड़ा था.
हुआ ये कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर अदालत की अवमानना का मामला चल रहा था और तभी पीएमएल-एन के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अदालत पर हमला बोल दिया.
क्या हुआ था 26 साल पहले?
वाकया नवंबर 1997 का है जब पाकिस्तान में नवाज शरीफ को दूसरी बार प्रधानमंत्री चुनकर आए बस कुछ ही महीने हुए थे. नवाज शरीफ ने सरकार में आने के साथ ही देश में सुधार के लिए कई बड़े बदलाव किए. उन्होंने आतंकवादियों पर नकेल कसने के मकसद से स्पेशल एंटी टेररिज्म अदालतें बनाने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने संसद से आतंकवाद विरोधी कानून पास करा लिया.
लेकिन इस एक्ट में एक दिक्कत ये थी कि ये स्पेशल अदालतें सुप्रीम कोर्ट के तहत नहीं आती थीं. यानी इन अदालतों के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी. इससे यह खतरा बढ़ गया कि ये अदालतें सियासी फायदे के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती हैं. इसे देखते हुए चीफ जस्टिस सज्जाद अली ने इन अदालतों को गैर-कानूनी करार दे दिया.
इस बात को लेकर पाकिस्तान की सरकार और सुप्रीम कोर्ट में ठन गई. सुप्रीम कोर्ट में नए जजों की नियुक्ति को लेकर दोनों पक्षों का तनाव और बढ़ गया.
नवाज शरीफ ने की चीफ जस्टिस की आलोचना
इसके बाद नवाज शरीफ ने संविधान में चौदहवां संशोधन कर दिया जिसके मुताबिक, अगर कोई नेता चुनाव जीतने के बाद पार्टी के प्रति वफादार नहीं रहता तो उसकी पार्टी सदस्यता समाप्त की जा सकती थी. इस संशोधन के खिलाफ पाकिस्तान के तमाम विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
चीफ जस्टिस सज्जाद ने नवाज शरीफ सरकार के इस फैसले को भी गैर-कानूनी करार दिया. उनके इस फैसले से नाराज नवाज शरीफ ने संसद में चीफ जस्टिस की आलोचना करते हुए कहा कि उनका यह फैसला गैर-कानूनी है.
नवाज शरीफ पर अदालत की अवमानना का केस
नवाज शरीफ के इस बयान को जस्टिस सज्जाद अली ने अदालत की अवमानना करार देते हुए उन्हें अदालत में तलब किया. नवाज शरीफ अदालत में पेश तो हुए लेकिन उन्होंने अपने बयान के लिए अदालत से माफी नहीं मांगी.
उन्होंने अदालत में एक बयान जमा करवाया जिसमें उन्होंने कहा कि कोर्ट के खिलाफ अपने शब्दों पर उन्हें अफसोस है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद भी नवाज शरीफ पर अवमानना का केस जारी रखा. इस पूरे मामले में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फारुख खान लेघारी चीफ जस्टिस सज्जाद अली के साथ थे.
नवाज शरीफ समर्थकों का अदालत पर हमला
28 नवंबर 1997 को इसी मामले में अदालत की कार्रवाई चल रही थी. इसी दौरान पीएमएल-एन के अनियंत्रित कार्यकर्ताओं ने अदालत पर हमला बोल दिया. मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस सज्जाद अली और बाकी जजों को सुनवाई छोड़ अपनी जान बचाने को लिए भागने पर मजबूर होना पड़ा. भीड़ ने अदालत में काफी हंगामा किया और अदालत के सामान को नुकसान पहुंचाया. हंगामे को देखते हुए अदालत में नवाज शरीफ पर चल रहा मामला खत्म हो गया.
अततः चीफ जस्टिस को इस्तीफा देना पड़ा और राष्ट्रपति लेघारी को भी अपना राष्ट्रपति पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.
अदालत पर धावा बोलने वालों में पाकिस्तान के तत्कालीन गृह मंत्री चौधरी शुजात हुसैन का नाम भी शामिल बताया गया.
हालांकि, शुजात हुसैन ने अपनी एक किताब में अदालत पर हमले में शामिल होने से इनकार किया है. उन्होंने लिखा है कि अदालत पर हमले में वो नहीं बल्कि नवाज शरीफ के भाई और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ शामिल थे.