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हैप्पी टू सी यू... ये वो अल्फाज थे, जो पाकिस्तान के चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल ने कोर्टरूम में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को देखते ही कहे. मामला था अल कादिर ट्रस्ट केस में इमरान की गिरफ्तारी का. देश में लगभग 50 घंटों तक चले सियासी बवाल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें रिहा कर दिया. लेकिन इस फैसले के बाद चीफ जस्टिस बंदियाल खुद सरकार के निशाने पर आ गए. उन पर इमरान खान की तरफदारी के आरोप लग रहे हैं.
जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान को रिहा करने के आदेश दिए. पाकिस्तान की सत्तारूढ़ सरकार भड़क गई. पाकिस्तान सरकार के मंत्री एक-एक कर सुप्रीम कोर्ट और बंदियाल की आलोचना करने लगे. पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने चीफ जस्टिस बंदियाल पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस तब कहां गए थे, जब उन्हें (ख्वाजा) जेल जाना पड़ा था. अदालत ने मेरे साथ ऐसी नरमी क्यों नहीं दिखाई? क्यों इमरान खान पर ही इस तरह की मेहरबानी की जा रही है? कोर्ट के इस तरह के डबल स्टैंडर्ड्स क्यों हैं?
इसके बाद शहबाज सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री मरियम औरंगजेब ने इमरान खान को बंदियाल का 'लाड़ला' तक कह दिया. मरियम ने कहा कि आपने इस लाड़ले (इमरान) को सजा क्यों नहीं दी? अगर आपने सजा दी होती तो आज मेरा मुल्क जल नहीं रहा होता.
पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज ने भी इमरान की रिहाई को लेकर चीफ जस्टिस पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस आज देश के खजाने से 60 अरब रुपये गबन करने वाले अपराधी को रिहा करके बहुत खुश थे. देश की सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील संस्थानों पर हमलों के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार चीफ जस्टिस हैं, जो एक अपराधी की ढाल बनकर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं. आपको मुख्य न्यायाधीश का पद छोड़कर अपनी सास की तरह तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी में शामिल हो जाना चाहिए.
क्या बंदियाल के 'लाड़ले' हैं इमरान खान!
उमर अता बंदियाल ने दो फरवरी 2022 को पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पद की शपथ ली थी. पाकिस्तानी मीडिया में आम धारणा यही है कि जस्टिस बंदियाल पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के करीबी हैं. ऐसे कई मौके भी आए हैं, जब इमरान खान के कई मांगों पर सुप्रीम कोर्ट ने फुर्ती दिखाई है. ऐसा ही एक मामला पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में चुनाव कराए जाने को लेकर था.
दरअसल पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में इस साल 14 और 18 जनवरी को विधानसभा भंग कर दी गई थी, जिसके बाद इमरान खान शहबाज सरकार पर इन प्रांतों में जल्द चुनाव कराए जाने पर जोर दे रहे थे. लेकिन शहबाज सरकार उनकी इस मांग के आगे झुकी नहीं. ऐसे में बंदियाल ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया.
सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां कम की गईं
बस फिर क्या था! सुप्रीम कोर्ट की इन्हीं शक्तियों के खिलाफ शहबाज सरकार संसद में एक प्रस्ताव लेकर आ गई. यह प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों में कटौती को लेकर था. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार है. इमरान खान से बंदियाल की करीबी की वजह से सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों में कटौती का प्रस्ताव संसद में पेश किया था. बाद में नेशनल असेंबली में इसे पारित कर दिया गया. और इस तरह पाकिस्तान के चीफ जस्टिस से किसी भी मामले पर स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार छीन लिया गया.
बंदियाल की 'सास' पीटीआई समर्थक?
ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब बंदियाल की सास महजबीन नून और इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के वकील ख्वाजा तारिक रहीम की पत्नी राफिया तारिक के बीच की ऑडियो क्लिप वायरल हुई थी, जिसमें दोनों को पाकिस्तान के सियासी घटनाक्रमों पर बात करते सुना गया था.
इस क्लिप के वायरल होने के बाद पाकिस्तान के राजनीतिक गलियारों में बंदियाल परिवार की पीटीआई से करीबी पर खूब चर्चा हुई थी. शहबाज सरकार में मंत्री मरियम नवाज ने उस समय बंदियाल पर तंज कसते हुए कहा था कि अब कोर्ट के फैसले 'बीवियों' और 'सास' की पसंद और नापसंद के आधार पर लिए जा रहे हैं. यह अप्रोच देश के लिए घातक है. मरियम ने सुप्रीम कोर्ट को 'सास कोर्ट' तक कह डाला था.
बंदियाल के इमरान की ढाल बनने में कितनी सच्चाई!
इमरान खान से बंदियाल की नजदीकियों को लेकर समय-समय पर उंगलियां उठती रही हैं. लेकिन पिछले साल सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला इन दावों पर भारी पड़ता नजर आया है.
दरअसल पिछले साल अप्रैल में पाकिस्तान की सियासत में जबरदस्त ड्रामा देखने को मिला था. विपक्ष इमरान खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आया था. लेकिन उस समय नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम खान सूरी ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. लेकिन वह उमर अता बंदियाल ही थे, जिन्होंने डिप्टी स्पीकर के फैसले को रद्द कर दिया था. बंदियाल ने कहा था कि इमरान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करना असंवैधानिक है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराने को हरी झंडी दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट का यही वह फैसला था, जिसकी वजह से इमरान की सरकार तीन साल, सात महीने और कुछ दिन ही सत्ता में रहने के बाद बेदखल हो गई थी. इमरान अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सत्ता से बाहर होने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री थे.
यह सियासत का खेल ही रहा है कि खुद इमरान खान कई बार सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की आलोचना कर चुके हैं. उनकी पार्टी में सूचना मंत्री रहे फवाद चौधरी ने तो एक बार यहां तक कह दिया था कि अदालतों को राजनीति से दूर रहना सीखना होगा.
लेकिन अल कादिर ट्रस्ट मामले में इस्लामाबाद हाईकोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए इमरान खान की गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें रिहा करने के आदेश दिए थे. जिसके बाद से एक बार फिर इमरान के लिए बंदियाल का सॉफ्ट कॉर्नर होने की बातें पाकिस्तान के राजनीतिक गलियारों में तेज होने लगी हैं.