पिछले सात सालों से हम जानते हैं कि फिनलैंड दुनिया का सबसे खुश देश है. अमेरिका और भारत जैसे देश परेशान मुल्कों की श्रेणी में हैं. जबकि आतंक से जूझते कई हिस्से मजे में हैं. ये दावा यूनाइटेड नेशन्स के सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन्स नेटवर्क का है. ये बात अलग है कि जिन फिन्स को सबसे खुश बताया जा रहा है, वे खुद डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. तो क्या इसका मतलब ये है कि हैप्पीनेस इंडेक्स हवाहवाई है? या फिर फिनलैंड में ही कुछ बदल रहा है?
क्यों शुरू हुआ हैप्पीनेस को जांचने का सिलसिला
कुछ साल पहले की बात है, जब दुनिया के बड़े नेता और पॉलिसी बनाने वाले उलझन में थे कि उनकी कोशिशों से देश की तरक्की हो रही है, बड़े घर, बड़े कारखाने बन रहे हैं. घूमने-फिरने के लिए पार्क और म्यूजियम भी हैं. लेकिन ये क्या सब जनता के लिए काफी है. क्या लोग खुश हैं? इसी का जवाब खोजने का बीड़ा उठाया यूनाइटेड नेशन्स ने.
साल 2012 में उसने एक रिपोर्ट शुरू की, जिसे नाम दिया- वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट. इससे वे यह जांचना चाहते हैं कि आखिर कौन सी चीज लोगों को खुश रखती है, जीडीपी या फिर सोशल स्ट्रक्चर. इस सोच के पीछे भी यूएन या यूएस नहीं, बल्कि एक छोटा सा देश था भूटान. सत्तर के दशक में वहां के राजा जिग्मे सिंगे वांगचुक ने यह कहकर दुनिया को चौंका दिया कि उनके लिए जीडीपी की बजाए ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस मायने रखता है. यही सोच फैलकर संयुक्त राष्ट्र तक पहुंच गई.
अब हर साल कुछ पैमाने लेते हुए अलग-अलग देशों में सर्वे होता है और नंबरों के आधार पर रैंकिंग दी जाती है.
इस रिपोर्ट में छह बड़े सवाल पूछे जाते हैं
- आपकी जेब कितनी भरी है?
- क्या बुरा वक्त आने पर कोई आपका साथ देता है?
- आप कितने साल जीने की उम्मीद करते हैं?
- क्या आप अपनी जिंदगी के बड़े फैसले खुद ले सकते हैं?
- क्या आप दूसरों के लिए उदार हैं?
- आपके देश में भ्रष्टाचार कितना कम है?
क्या कहता है सर्वे
लगभग डेढ़ सौ देशों में हैप्पीनेस इंडेक्स देखा जाता है, जिसे करने का जिम्मा गैलप वर्ल्ड पोल के पास है. पिछले सात सालों में इसमें फिनलैंड टॉप पर है. डेनमार्क, नॉर्वे और आइसलैंड जैसे देश भी ऊपर रहते आए लेकिन फिन्स लगभग हमेशा ही सबसे आगे रहे.
यहां तक तो ठीक है लेकिन हर कहानी की तरह ये सर्वे भी ट्विस्ट से अछूता नहीं रहा. कई देश कहने लगे कि अध्ययन किसी काम का नहीं. ये जानकर कुछ देशों को आगे, जबकि कुछ को पीछे रखता है.
इसकी कई रिपोर्ट्स में भारत को पाकिस्तान और बांग्लादेश से पीछे रखा गया. जैसे, साल 2023 की रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग 126 थी, जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश उससे आगे थे. ऐसा पहले भी होता रहा.
अमेरिका भी इस सर्वे पर एतराज करता रहा
अमेरिकी लोगों का कहना है कि वे इकनॉमिक तौर पर आगे हैं. यहां तक कि दुनिया के ज्यादातर लोग ड्रीम अमेरिका रखते हैं. इसके बाद भी उनकी रैंकिंग पीछे हो रही है. हालांकि अमेरिकी सरकार ने आधिकारिक रूप से रिपोर्ट को चुनौती नहीं दी लेकिन हैरानी और गुस्सा जरूर जताया गया. वॉशिंगटन के बड़े थिंक टैंक भी इस रिपोर्ट को हकीकत से कटा हुआ मानते हैं.
एक और चीज इस रिपोर्ट को कहीं न कहीं पूर्वाग्रही बताती है, वो ये कि फिनलैंड में डिप्रेशन का प्रतिशत तेजी से बढ़ रहा है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक, कुल आबादी से करीब 9 प्रतिशत लोग मेजर डिप्रेशन से जूझ रहे हैं.
बढ़ी आत्महत्या की सोच
यूरोपियन यूनियन ने भी एक चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की थी, जो कहती है कि फिन आबादी में आत्महत्या की प्रवृत्ति बाकी यूरोपियन देशों से कहीं ज्यादा है. नब्बे के दशक में ये कम थी, यानी तब फिनिश लोग शायद वाकई खुश रहे होंगे. लेकिन फिर बढ़ी और बढ़ते हुए इतनी आगे निकल गई कि 14 से 24 साल की उम्र में हो रही एक-तिहाई मौतों की वजह खुदकुशी है.
देश ने खुद मानी ये बात
इस देश ने अपना खुद का मूल्यांकन करते हुए रिपोर्ट निकाली, जिसे नाम दिया- इन द शैडो ऑफ हैप्पीनेस. इसके अनुसार, बेहद कम उम्र के लोग भी यहां खुद को स्ट्रगल करता मान रहे हैं. आगे भी उनका स्ट्रगल खत्म नहीं होता, बल्कि 80 पार के लोग भी यहां आत्महत्याएं कर रहे हैं.
किन चीजों की वजह से हो रही दिक्कत
वहां इसपर काम चल रहा है. कई विभाग बन चुके जो मेंटल हेल्थ पर काम कर रहे हैं, लेकिन कई चीजें बीच में आ रही हैं. जैसे, यहां का सोशल स्ट्रक्चर कुछ ऐसा है कि लोग परिवार या दोस्तों की बजाए अकेले रहना पसंद करते हैं. ऐसे में मामूली सा तनाव भी गहरे तक डूबा सकता है. फिनलैंड का क्लाइमेट भी डिप्रेशन के लिए सही ग्राउंड है. इस देश में लंबी और अंधेरी सर्दियां होती हैं, जबकि गर्मियों में भी तापमान घट-बढ़ होता रहता है. रोशनी की कमी भी कम उम्र से ही डिप्रेशन की शुरुआत का कारण बन सकती है.
वैसे तो यहां मेंटल हेल्थ के इलाज पर भारी सब्सिडी है लेकिन यही बात दिक्कत भी दे रही है. शहरी आबादी जल्दी अस्पताल पहुंच जाती है, जबकि दूर-दराज के लोग महीनों कतार में रहते हैं. अब वहां राजनीति में ये बहस भी हो रही है कि इसमें क्या बदला जाए कि जरूरतमंदों को सबसे पहले मदद मिल सके.
कुल मिलाकर, सच तो ये है कि आंकड़ों में भले ही फिनलैंड सबसे खुश मुल्क हो, लेकिन ये उस देश पूरी तस्वीर नहीं.