ऑस्ट्रेलिया और भारत अपने व्यापारिक संबंधों को एक कदम और आगे ले जाते हुए महत्वपूर्ण खनिजों की सुचारू आपूर्ति को लेकर एक तंत्र बनाने पर विचार कर रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि भारत अपने घरेलू बाजार में भारी मांग वाले इन खनिजों की आपूर्ति को लेकर व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (CFTA) के तहत ऑस्ट्रेलिया से बात करने जा रहा है. दोनों देशों के बीच इसे लेकर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी हुआ है. भारत की नरेंद्र मोदी सरकार 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाने का लक्ष्य बना रही है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया अहम भूमिका निभा सकता है.
समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने दिसंबर 2022 में एक आर्थिक सहयोग व्यापार समझौता (ECTA) लागू किया था. अब दोनों देश इस समझौते के दायरे को बढ़ाने के लिए बातचीत कर रहे हैं. भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच अब व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते या CECA पर समझौते को लेकर वार्ता चल रही है.
महत्वपूर्ण खनिजों के लिए आयात पर निर्भर भारत
भारत में लिथियम, टाइटेनियम, वैनेडियम, कोबाल्ट, निकेल और ग्रेफाइट जैसे महत्वपूर्ण खनिजों की भारी मांग है. हाल के दिनों में इन खनिजों की मांग काफी बढ़ गई है क्योंकि नरेंद्र मोदी की सरकार साल 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाने का लक्ष्य बना रही है.
इन खनिजों से बनी बैटरियां भारत में विद्युत गतिशीलता को बढ़ाएंगी, ग्रिड-स्केल स्टोरेज के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण और एक बेहतर ऊर्जा की दिशा में देश को आगे ले जाएंगी.
भारत में लिथियम बैटरियों की मांग तो काफी अधिक है लेकिन निर्माण क्षमता देश में काफी कम है. इसके निर्माणकर्ता काफी हद तक लिथियम के लिए आयात पर निर्भर हैं. कई बार इनकी आपूर्ति सुचारू रूप से नहीं हो पाती जिस कारण निर्माणकर्ताओं को परेशानी आती है.
सुचारू आपूर्ति को लेकर एमओयू साइन
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खनिजों की आपूर्ति को लेकर एक समझौता ज्ञापन (MOU)भी साइन हुआ है. सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र की तीन कंपनियों का संयुक्त उद्यम खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL), जो कि खान मंत्रालय के तहत आता है और ऑस्ट्रेलियाई सरकार की क्रिटिकल मिनरल्स फैसिलिटेशन ऑफिस (CMFO) के बीच MOU हस्ताक्षरित किया गया है.
इसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार संबंधों को मजबूत करना और सुरक्षित, मजबूत और व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण खनिजों के सप्लाई चेन को बनाने के साझा महत्वाकांक्षा को पूरा करना है.
सूत्रों ने बताया, 'फिलहाल इसे अंतिम रूप नहीं दिया गया है लेकिन दोनों देश इस पर विचार कर रहे हैं कि एक ऐसा तंत्र बनाया जाए जिसके तहत भारत को इन खनिजों की सुनिश्चित आपूर्ति मिल सके. हमें विवरण पर काम करना है कि उस तंत्र को कैसे तैयार किया जाए.'
सूत्रों ने आगे कहा, 'फिलहाल यह एक व्यापक सोच है. यह किसी भी मुक्त व्यापार समझौते में कभी नहीं हुआ है. हमने ऑस्ट्रेलिया के साथ एक एमओयू साइन किया है. अब, हम इस बारे में सोच रहे हैं कि हम इस एमओयू को कैसे मजबूत कर सकते हैं.'
11 मार्च को एक आधिकारिक बयान भी सामने आया जिसमें कहा गया कि भारत और ऑस्ट्रेलिया सप्लाई चेन विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण खनिज परियोजनाओं में निवेश की दिशा में काफी आगे बढ़ गए हैं.
महत्वपूर्ण खनिजों के उत्पादन में शीर्ष देशों में शामिल ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया दुनिया के लिथियम का लगभग आधा उत्पादन करता है. यह कोबाल्ट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और रेयर अर्थ मेटल्स का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक भी है. इन खनिजों को भारी मांग वाले सामानों में कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
धातु विज्ञान, केमिकल इंडस्ट्री, नवीकरणीय ऊर्जा के लिए एनर्जी स्टोरेज, विद्युत गतिशीलता, बिजली उत्पादन, उच्च गुणवत्ता वाले इलेकट्रॉनिक्स और रक्षा क्षेत्र में इन खनिजों का इस्तेमाल होता है.
इन खनिजों के आर्थिक महत्व और इनके लगातार आपूर्ति में रिस्क को देखते हुए ये खनिज रणनीतिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं. भारत अपने घरेलू बाजार में इन महत्वपूर्ण खनिजों की मांग को देखते हुए एक स्रोत की खोज कर रहा है. ऑस्ट्रेलिया ऐसे में भारत के लिए एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आया है.