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यूक्रेन संकट में रूस को लेकर भारत की लाइन पर क्यों चल रहा पाकिस्तान?

यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर भारत पाकिस्तान की भाषा एक जैसी रही है. भारत ने अब तक बिना रूस का नाम लिए हिंसा रोकने की बात कही है और पाकिस्तान भी इसी भाषा का इस्तेमाल करता आया है. दोनों देशों के नेता भी यूक्रेन और रूस से बात कर रहे हैं और तनाव कम करने पर जोर दे रहे हैं.

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भारतीय पीएम मोदी और पाकिस्तानी पीएम इमरान खान (Photo-File)
भारतीय पीएम मोदी और पाकिस्तानी पीएम इमरान खान (Photo-File)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर भारत-पाक की भाषा एक जैसी
  • दोनों ही देश बिना किसी को जिम्मेदार ठहराए कह रहे हिंसा रोकने की बात
  • रूस से जुड़े हैं दोनों देशों के हित

यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर पड़ोसी लेकिन धुर विरोधी भारत और पाकिस्तान का रुख लगभग एक जैसा ही रहा है. दोनों ही देशों ने रूस का नाम न लेते हुए यूक्रेन में हिंसा को खत्म करने की बात कही है. पाकिस्तान और भारत दोनों ही देशों के नेताओं ने रूस और यूक्रेन के नेताओं से बातचीत जारी रखी है और तनाव कम करने की अपील कर रहे हैं.

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रूस-यूक्रेन पर भारत पाकिस्तान एक तरफ

रविवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा से फोन पर बातचीत की और कहा कि दोनों देश तनाव को खत्म करें. पाकिस्तान का ये रुख यूक्रेन मसले पर भारत की ही लाइन पर है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन और रूस के नेताओं से बातचीत के दौरान भी इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हुए तनाव को कम करने पर जोर दिया था.

शनिवार को पीएम मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से बात की और बिना किसी को जिम्मेदार ठहराए हिंसा को खत्म करने का आह्वान किया. बीते गुरुवार को जब रूस ने यूक्रेन पर हमले की शुरुआत की थी, उसी दिन मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की थी और हिंसा को खत्म करने पर जोर दिया था.

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इसी दिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपने दो दिवसीय रूस यात्रा के आखिरी दिन राष्ट्रपति पुतिन से मिले थे. बातचीत के दौरान उन्होंने पुतिन से पाकिस्तान में रूस के सहयोग से बन रहे गैस पाइपलाइन और क्षेत्रीय मुद्दों पर बात की थी. बातचीत के बाद पाकिस्तान के तरफ से जो बयान आया उसमें यूक्रेन पर रूसी हमले का कहीं जिक्र नहीं था. हालांकि, बयान में ये जरूर कहा गया कि पाकिस्तान को वर्तमान स्थिति पर अफसोस हो रहा है.

रूस के मुद्दे पर भारत-पाकिस्तान का रुख

भारत- रूस और भारत के बीच ऐतिहासिक संबंध है. विश्लेषकों का मानना है कि ये संबंध हथियारों को लेकर भारत की रूस पर निर्भरता के कारण और गहरा होता गया है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, 2016 से 2020 के बीच सभी रूसी हथियारों के निर्यात का अनुमानित 23 प्रतिशत भारत को गया है. इन सालों में भारत ने जो भी हथियार आयात किए, उसका ये 49 प्रतिशत है.

दिसंबर 2021 में रूसी राष्ट्रपति भारत आए थे. इसके बाद भारत ने कहा कि भारत को रूसी एस-400 मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी मिलनी शुरू हो गई है. भारत और रूस के बीच 5 अरब के इस रक्षा सौदे पर अमेरिका की भी कड़ी नजर है.

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वहीं, अमेरिका भारत के संबंध भी हाल के दशकों में मजबूत हुए हैं. अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद पाकिस्तान से अमेरिका के संबंध कमजोर हुए हैं और अब अमेरिका भारत को अधिक महत्व दे रहा है. चीन की भारत के खिलाफ बढ़ती आक्रामकता को लेकर भी अमेरिका भारत के पक्ष में बोलता रहा है.

इसे लेकर भारत न तो रूस का पक्ष ले रहा है और न ही अमेरिकी पाले का हिस्सा बनना चाहता है बल्कि अब तक भारत निष्पक्ष रहा है. विश्लेषकों का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वोटिंग से भारत का परहेज ये बताता है कि बड़े हथियारों के आयात, चीन और अमेरिका-रूस संबंधों को लेकर भारत बारीकी से कदम रख रहा है.

दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में रूस मामलों के प्रोफेसर संजय कुमार पांडे ने अलजजीरा से बातचीत में कहा कि यूक्रेन मामले पर भारत के हालिया बयान कूटनीति की आवश्यकता पर केंद्रित हैं जिनका स्पष्ट अर्थ निकाल पाना एक कठिन काम है.

उन्होंने कहा, 'मैं भारत के बयानों को मुख्य रूप से रूस के साथ भारत के पुराने संबंधों और सैन्य आपूर्ति पर हमारी निर्भरता के संबंध में देखता हूं. इसके साथ ही आंशिक रूप से हम मानते हैं कि रूस की कुछ वास्तविक चिंताएं हैं जिन्हें ध्यान में रखा जा सकता था.'

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साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि अभी तक भारत ने यूक्रेन में रूसी हमले या उसके कुछ क्षेत्रों को स्वतंत्र प्रदेश की मान्यता दिए जाने का समर्थन नहीं किया है.

वहीं, रूस में भारत के राजदूत रह चुके पीएस राघवन का कहना है कि जब लोग ये कहते हैं कि रूस-यूक्रेन के मुद्दे पर भारत ने कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है तो उनका मतलब ये होता है कि भारत रूस की निंदा नहीं कर रहा है. 

वह कहते हैं, 'ये रूस और अमेरिका, दोनों को खुश करने की बात नहीं है. रूस के साथ हमारे बहुत मजबूत संबंध हैं. अमेरिका के साथ भी हमारे रिश्ते मजबूत हुए हैं. शीत युद्ध के बाद अब अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में हमारे पास दोनों के साथ होने का विकल्प नहीं है.'

दोनों ही विशेषज्ञों ने हमले के पहले दिन रूस में इमरान खान की मौजूदगी को महज एक संयोग बताया. पीएस राघवन का कहना है, 'पीएम इमरान खान को नहीं मालूम था कि रूस उसी दिन यूक्रेन पर हमला करने जा रहा है. ये महज एक संयोग की बात है क्योंकि मुझे नहीं लगता कि किसी को भी पता था कि रूस यूक्रेन पर उसी दिन हमला करने वाला है.'

पाकिस्तान- इमरान खान जब हमले के पहले दिन रूसी राष्ट्रपति से मिले तो पाकिस्तान में ही एक वर्ग ने उनकी आलोचना की. पाकिस्तान और रूस के संबंध शीत युद्ध के समय बेहद खराब स्थिति में थे. पाकिस्तान अफगानिस्तान में रूसी सेना को रोकने में अमेरिका का बड़ा सहयोगी था.

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पाकिस्तान-रूस के संबंध हाल के समय में थोड़े बेहतर हुए हैं और दो दशकों से अधिक समय के बाद किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने रूस की आधिकारिक यात्रा की है. पुतिन से बातचीत के दौरान इमरान खान का फोकस रूस के सहयोग से पाकिस्तान में बनाए जा रहे 1100 किलोमीटर की गैस पाइपलाइन पर था. साल 2015 में ही इस प्रोजेक्ट को लाया गया था लेकिन साल 2021 में इसे लेकर एक नया एग्रीमेंट बनाया जा सका.

विश्लेषकों का कहना है कि हालांकि, गैस पाइपलाइन से रूसी गैस निर्यात में वृद्धि नहीं होगी, लेकिन इससे मध्य पूर्व की गैस आपूर्ति की कुछ मात्रा पाकिस्तान की तरफ चली आ सकती है जिससे यूरोपीय देशों की रूस पर प्राकृतिक गैस के लिए निर्भरता और बढ़ेगी.

पाकिस्तान और रूस शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भी सदस्य हैं जहां से भी दोनों का संपर्क बढ़ा है.

पिछले साल दिसंबर में पुतिन ने कहा था कि पैगंबर मोहम्मद के अपमान को धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में देखा जाना चाहिए. इमरान खान ने पुतिन के इस बयान की सराहना की थी. पुतिन और इमरान खान की हालिया मुलाकातों से दोनों देशों की करीबी बढ़ी है.

इस्लामाबाद स्थित जिन्ना इंस्टीट्यूट थिंक-टैंक के कार्यक्रमों के निदेशक सलमान जैदी ने अलजजीरा से बातचीत में कहा कि दोनों नेताओं की मुलाकात पूर्व निर्धारित थी और इसका यूक्रेन पर रूसी हमले से कुछ लेना देना नहीं है.

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उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान को महीनों से युद्ध की योजना बनाने के रूस के फैसले से बहुत कम लेना-देना है. दोनों नेताओं के बीच मुलाकात का उद्देश्य दोनों पक्षों के लिए एक रणनीतिक प्रतीक था. निश्चित रूप से इस मुलाकात के बाद सुरक्षा सहयोग को लेकर पश्चिमी देशों के साथ पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर इस देशों में चिंताएं बढ़ीं.'

उन्होंने आगे कहा, 'जिस तरह से रूसियों ने बैठक का आयोजन किया, उससे पता चलता है कि वे इस रिश्ते को नए महत्व के साथ देखते हैं. पाकिस्तान पश्चिमी खेमे में रहेगा, लेकिन आने वाले वक्त में रूस के साथ साझेदारी करके अपनी सुरक्षा जरूरतों को संतुलित कर सकता है.

जैदी का कहना है कि पाकिस्तान रूस-यूक्रेन के मसले पर ज्यादा कुछ नहीं कर सकता क्योंकि उसके पास संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मतदान का अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान के पास यूएनएससी में मतदान की स्थिति नहीं है, न ही यूक्रेन की तरफ से ये मांग की गई है कि हिंसा को समाप्त करने में हम उन्हें समर्थन दें. पाकिस्तान किसी भी तरीके से यूक्रेन संघर्ष से संबंधित नहीं है और न ही दक्षिण एशिया के देश...जैसा कि इस क्षेत्र के नेताओं के बयानों से लगता है.' 

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