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चीन के खिलाफ फिर एकजुट हुए भारत, ऑस्ट्रेलिया, US और जापान

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की वन बेल्ट वन रोड (OBOR) परियोजना ने न सिर्फ वैश्विक शक्तियों को चिंतित कर दिया है, बल्कि क्षेत्रीय देशों को भी परेशानी में डाल दिया है. ऐसे में अब भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान एकजुट होकर इसका विकल्प बनाएंगे.

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भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका फिर होंगे एकजुट
भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका फिर होंगे एकजुट

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चीन की वर्चस्व कायम करने की आक्रामक और विस्तारवादी नीति का मुकाबला करने के लिए भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान एकबार फिर एकसाथ आ गए हैं. करीब एक दशक पहले भी चारों देश चीन का मुकाबला करने के लिए एकजुट हुए थे, लेकिन उनकी यह पहली कोशिश रंग नहीं ला पाई थी. उस समय चीन इतना मजबूत नहीं हुआ था, लेकिन इस दरम्यान दुनिया मंदी से गुजरी और चीन लगातार विकास करता रहा. उसने आर्थिक क्षेत्र और सैन्य क्षमता में तेजी से इजाफा किया और खुद को मजबूत किया. वहीं, दूसरी ओर अमेरिका का प्रभाव कम हुआ और भारत का चीन के प्रति नजरिया बदला.

चीन की OBOR का विकल्प तैयार होगा

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वैश्विक स्तर पर आर्थिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए वन बेल्ट वन रोड (OBOR) परियोजना की शुरुआत की है. चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना ने न सिर्फ वैश्विक शक्तियों को चिंतित कर दिया है, बल्कि क्षेत्रीय देशों को भी परेशानी में डाल दिया है. यह चिंता इसलिए भी अहम है क्योंकि शी जिनपिंग की इस परियोजना का दुनिया के पास कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में अब भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान एकजुट होकर इसका विकल्प बनाएंगे.

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वहीं, इन देशों के एक मंच पर आने से चीन की चिंता बढ़ गई है. हाल ही में चीन सार्वजनिक रूप से अपनी चिंता जाहिर भी कर चुका है. फिलिपींस की राजधानी मनीला में आयोजित ईस्ट एशिया समिट में भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के राजदूत ने इस मसले को लेकर पहली बार बैठक की. इस बैठक का मकसद चीन को रोकने के लिए आपसी सहयोग की रणनीति तैयार करना और इसको जमीन पर उतारना था. हालांकि इस बैठक के बाद जारी बयान में चीन के नाम का उल्लेख नहीं किया गया, लेकिन इसमें शामिल होने वाले सभी राजनयिक इस बात से भलीभांति वाकिफ थे कि चीन की चिंता ही इनको एकसाथ लाई है. उधर, चीन भी इन देशों के गठबंधन को लेकर नाखुशी जाहिर कर चुका है.

चीन को लेकर इन देशों की हैं अपनी-अपनी चिंताएं

चीन को लेकर भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की अपनी-अपनी चिंताएं हैं. ऑस्ट्रेलिया इस बात को लेकर चिंतित है कि चीन उसके विश्वविद्यालयों में लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. इसके लिए चीन ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों को भारी भरकम डोनेशन दे रहा है. दूसरी ओर जापान की चिंता यह है कि चीन उत्तर कोरिया का समर्थन कर रहा है. हाल ही के दिनों में उत्तर कोरिया ने जापान के ऊपर से मिसाइलें दागी थी. जापान इस बात को जानता है कि चीन अभी तक द्वितीय विश्व युद्ध की कश्मकश से बाहर नहीं निकलता है. साथ ही दोनों देशों के बीच तेजी से क्षेत्रीय विवाद भी बढ़ा हैं.

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जापान की तरह भारत से भी चीन का क्षेत्रीय विवाद

जापान की तरह भारत के साथ भी चीन का क्षेत्रीय विवाद है. हाल के दिनों में डोकलाम पर दोनों देशों के बीच जमकर तनातनी हुई थी. इससे दोनों देशों के रिश्तों में काफी कड़वाहट आ गई थी. इतना ही नहीं, भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) में शामिल होने से रोकने के लिए चीन पाकिस्तान से अपने रिश्ते प्रगाढ़ कर रहा है. वह आतंकवाद के मसले पर भी पाकिस्तान का साथ दे रहा है. ऐसे में भारत और जापान के लिए चीन के साथ संतुलन बनाना जरूरी हो जाता है. वहीं, अमेरिका इसे हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी पैठ मजबूत करने का अवसर मानता है.  भारत पहले ही चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना में शामिल होने से इनकर कर चुका है. साथ ही मध्य एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई बाजार में अपनी पैठ बढ़ाने की रूपरेखा तैयार कर रहा है. भारत जापान के साथ मिलकर अफ्रीकी देशों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए बंदरगाहों को जोड़ने के प्रस्ताव पर काम कर रहा है. इसमें ऑस्ट्रेलिया भी शामिल होने का इच्छुक है.

चीन के कर्ज में डूबे हैं कई एशियाई देश

एशिया में अगर चीन के दबदबे को कम करना है तो चारों देशों को एशिया में मुक्त कारोबार का आधारभूत ढांचा खड़ा कर विकल्प पेश करना होगा. म्यांमार और श्रीलंका भारी कर्ज में डूबे हुए हैं. पाकिस्तान भी CPEC की वकालत करता रहा है. हिंद महासागर में कारोबार की दृष्टि से बेहद अहम साउथ चीन सागर पर चीन के अड़ियल रवैये का भी हल खोजना होगा. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को चुनौती देना अब अमेरिका या जापान के अकेले के बस का नहीं रह गया है.

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इसीलिए संभवतः सभी का झुकाव तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहे भारत की तरफ हो गया है. हालांकि वैश्विक शक्ति संतुलन में चीन को अलग-थलग करना इतना आसान भी नहीं होगा. ऐसे में निश्चित तौर पर भाारत को संतुलनकारी नीति के साथ चलना होगा.

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