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अरुणाचल प्रदेश में चीन की सीमा पर तनाव है. कारण है यहां के तवांग सेक्टर में यांगत्से के पास भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प. ये झड़प 9 दिसंबर को हुई थी.
इस झड़प पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में बताया था कि भारतीय सेना ने बहादुर की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को हमारे क्षेत्र में अतिक्रमण करने से रोका और उन्हें उनकी पोस्ट पर जाने को मजबूर कर दिया.
इससे पहले जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों में झड़प हुई थी. उस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे. जबकि, चीन ने सिर्फ चार सैनिकों की मारे जाने की बात मानी थी. हालांकि, ऑस्ट्रेलियाई अखबार ने अपनी रिपोर्ट में कम से कम 38 चीनी सैनिकों के मारे जाने का दावा किया था. गलवान घाटी में झड़प के करीब 30 महीने बाद तवांग में झड़प हुई.
इस झड़प के बाद 1962 की जंग की बातें भी दोहराई जाने लगीं हैं. उस समय में चीनी सेना ने जबरन हमला कर दिया था और फिर एकतरफा संघर्ष विराम का ऐलान कर दिया था. जंग के छह दशक बीत जाने के बाद भी चीन की चुनौती कम नहीं हुई है. आज चीन जहां लगातार धमकाता रहता है तो ऐसे में इतिहास का वो दौर याद करना भी जरूरी है, जब छोटे से देश जापान ने चीन में कत्लेआम मचा दिया था.
चीन की राजशाही के घुटने टिका दिए थे
चीन और जापान के बीच पहली लड़ाई 1 अगस्त 1894 से 17 अप्रैल 1895 तक चली थी. उस समय जापान और चीन, दोनों ही जगह राजशाही थी. इस लड़ाई की वजह कोरिया बना था. कोरिया, चीन का खास दोस्त था. कोरिया के पास कोयला और आयरन बहुत था. जापान को कोरिया के प्राकृतिक संसाधन चाहिए था.
जापान ने कोरिया से अपने कोयला और आयरन जैसे प्राकृतिक संसाधन मांगे, लेकिन चीन के कारण उसने मना कर दिया. 1884 में जापान ने कोरियाई सरकार के तख्तापलट की कोशिश भी की, जिसे चीन ने नाकाम कर दिया. उस वक्त कोरिया की जमीन पर जापान और चीन के बीच जंग भी हुई. चीन ने कोरिया के किंग को बचा लिया, लेकिन उसने जापान के सैकड़ों सैनिकों को मार दिया. आखिरकार समझौते के बाद ये जंग खत्म हुई.
10 साल बाद 1894 में जापानी समर्थक कोरियाई नेता किम ओक-क्यून की शंघाई में हत्या कर दी गई. उनके शव को चीनी युद्धपोत में रखकर कोरिया पहुंचा दिया गया. जापान ने इसे अपमान के तौर पर लिया. जापान के 8 हजार सैनिकों ने कोरिया पर चढ़ाई कर दी. इस लड़ाई में चीन भी कूदा और 1 अगस्त 1894 को जंग शुरू हो गई.
जापान की शाही सेना के आगे चीन की सेना कमजोर थी. मार्च 1895 तक जापानी सेना ने चीन के शेंडोंग प्रांत और मनचुरिया पर कब्जा कर लिया. जापानी सेना ने चीन के समुद्री कारोबार के ठिकानों को निशाना बनाया. आखिरकार चीन ने हार मान ली.
1895 में जापान-चीन में समझौता हुआ, जिसके बाद जंग खत्म हुई. समझौते के तहत, चीन ने कोरिया की आजादी को मान्यता दी. साथ ही उसे ताइवान, पेस्काडोरेस और मनचुरिया में लिआडोंग जापान को सौंपना पड़ा.
चीन को मांगें मानने के लिए मजबूर किया
1911 में चीन में राजशाही का अंत हो गया. 1914 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ. जापान इस युद्ध के बड़े खिलाड़ियों में था. जनवरी 1915 में जापान ने चीन को 21 मांगों का एक पत्र भेजा. मई में जापान ने चीन को मांगें नहीं मानने पर युद्ध की धमकी दे दी. आखिरकार चीन को जापान की मांगें माननी पड़ी. इससे चीन पर जापान की पकड़ और मजबूत हो गई.
मांगें मनवाने के बाद चीन को लेकर जापान थोड़ा शांत हो गया. लेकिन 1931 में मनचुरिया के मुकदेन में एक घटना ने जापानियों को मनचुरिया पर आक्रमण करने का बहाना दे दिया. एक बार यहां स्थापित होने के बाद जापानियों ने एक कठपुतली सरकार बनाई और क्विंग राजवंश के आखिरी राजा पुयी को यहां का प्रमुख बना दिया.
ये वो दौर था जब चीन में राष्ट्रवादी सरकार कुओमिंतांग और कम्युनिस्ट पार्टी में गृह युद्ध छिड़ा हुआ था. नतीजा ये हुआ कि चीन की राष्ट्रवादी सरकार को जापान से ज्यादा कम्युनिस्टों से निपटने की जल्दी थी.
जुलाई 1937 में जापान ने फिर से चीन के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया. जापानी सेना ने चीनी सेना के जवानों पर खुलेआम गोलियां चलाईं और उनकी हत्या कर दी. जापान से निपटने के लिए राष्ट्रवादी और कम्युनिस्ट साथ तो आए, लेकिन मन से साथ नहीं थे. इससे जापान को फायदा पहुंचा. जापान की सेना भी मजबूत थी और उनके पास उस वक्त के एडवांस्ड हथियार भी थे. चीन की सेना जापान के आगे ढेर होती गई. जापानी सेना ने अपने टैंक चीन पर चढ़ा दिए, जबकि चीन के पास उस समय एक भी टैंक नहीं था.
जापान ने अपनी पहली लड़ाई चीन के पूर्वी तट पर कब्जा कर जीत ली. करीब 5 लाख जापानी सैनिक शंघाई, नानजिंग समेत चीन के कई प्रांतों में घुस गए. और जहां-जहां सैनिक घुस नहीं पाए, वहां जापानी वायुसेना ने बमबारी कर तबाही मचाई. जापानी सेना एक-एक कर चीनी प्रांतों पर कब्जा करने लगी. नानजिंग प्रांत से चीन की सरकार चलती थी, वहां से भी सरकार को भगा दिया गया.
जापानी सैनिकों की क्रूरता
जापानी सैनिक अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात थे. उन्होंने चीन की सड़कों पर खुलेआम कत्लेआम मचाया. महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया. दिसंबर 1937 में नानजिंग की सड़कों ने जापानी सैनिकों की भयानक क्रूरता देखी. इसे अक्सर 'रेप ऑफ नानजिंग' कहा जाता है. ऐसा अनुमान है कि उस समय नानजिंग में जापानी सैनिकों ने 3 लाख लोगों की हत्या की थी और इनमें से ज्यादातर आम लोग थे.
कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि उस समय जापानी सैनिकों ने चीनी नागरिकों को जिंदा दफना दिया था. सैकड़ों-हजारों की मशीन गन से हत्या कर दी. उस समय जापानी सैनिक चीनी महिलाओं को 'कम्फर्ट वुमन' कहकर अपने साथ ले जाते थे और उनके साथ बलात्कार करते थे. चीन को उस समय सोवियत संघ (अब रूस) का समर्थन जरूर था, लेकिन जापान की सेना के आगे सब कमजोर थे.
इतना ही नहीं, कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि जापानियों ने चीन में एक सीक्रेट बेस भी बना रखा था, जहां इंसानों पर बायोलॉजिकल और केमिकल टेस्ट किए जाते थे. कैदियों को चेचक, हैजा, टाइफाइड जैसी बीमारियों के इंजेक्शन दिए जाते थे. उन पर टेस्ट किया जाता था कि व्यक्ति बिना खाए कब तक जिंदा रह सकता है और कितनी सर्दी सह सकता है. ऐसे भी कहा जाता है कि उस दौर में जापान ने चीन के निन्गबो और चेंगडे जैसे शहरों पर बायोलॉजिकल हथियारों का इस्तेमाल कर ब्यूबोनिक प्लेग फैला दिया था. जापानी सैनिक 'सबको मारो, सबको लूटो, सबको नष्ट कर दो' जैसे नारे देते थे.
जापानी सेना चीन को बुरी तरह तबाह कर चुकी थी. 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया. अमेरिका भी इस जंग में कूद गया. इससे चीन को मदद मिली. चीन जापान के खिलाफ जंग का मैदान मिला. अमेरिका ने चीन को सैन्य मदद मुहैया कराई.
1942 तक चीन में कम्युनिस्ट पार्टी मजबूत हो गई. उसकी रेड आर्मी में भी जवानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी. जापान के खिलाफ अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत संघ जैसी शक्तियां साथ आ गई थीं. अगस्त 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमला कर दिया. जापान कमजोर हो चुका था. सोवियत सेना ने मनचुरिया में जापानियों को सरेंडर करने को मजबूर कर दिया. चीन में भी जापानी सेना और राष्ट्रवादी सरकार को घुटने टेकने पड़े. आखिरकार चीन-जापान की ये जंग खत्म हुई.