डोकलाम का तो भारत-चीन ने कूटनीतिक हल निकाल लिया है, लेकिन ये दोनों देश एकबार फिर सामने आ सकते हैं. इस बार वजह बन सकता है म्यांमार. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 सितंबर को म्यांमार के दौरे पर निकल रहे हैं. वह म्यांमार के तीन शहरों का दौरा करेंगे. यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब भारत म्यांमार के साथ अपने रणनीतिक और औद्योगिक संबंध बढ़ाने में जुटा हुआ है. वहीं, दूसरी तरफ, चीन के साथ म्यांमार की बेरुखी बढ़ती जा रही है.
दोनों देशों के लिए अहम है म्यांमार
म्यांमार को भारत के लिए दक्षिण-पूर्वी एशिया का प्रवेश द्वार माना जाता है. चीन के लिए भी यह रणनीतिक अहमियत रखता है. ऐसे में भारत ही नहीं, बल्कि चीन भी यहां अपना दायरा बढ़ाने में जुटा हुआ है. म्यांमार चीन की वन बेल्ट वन रोड़ परियोजना का एक अहम पड़ाव है। ऐसे में दोनों देश चाहेंगे कि म्यांमार उनके साथ खड़ा हो. मौजूदा समय में जिस तरह के हालात पैदा हुए हैं, उनसे तो यही लगता है कि एकबार फिर भारत और चीन आमने सामने आ सकते हैं.
यहां भी चल रही चीन की दादागिरी
म्यांमार में चीन के कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं. 1990 के दशक से दोनों देश साथ मिलकर कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं. लेकिन अब चीन ने इन प्रोजेक्ट्स को लेकर भी अपनी दादागिरी शुरू कर दी है. इससे म्यांमार के सामने कर्ज में डूबने का संकट पैदा हो गया है. दरअसल चीन म्यांमार में बन रहे क्योक प्यू बंदरगाह में ज्यादा हिस्सेदारी मांग रहा है. वह म्यांमार पर दबाव डाल रहा है कि उसे इस बंदरगाह की 70 से 85 फीसदी हिस्सेदारी मिले. जबकि पहले यह हिस्सेदारी 50:50 फीसदी तय थी. इससे चीन की तरफ से म्यांमार के मन में बेरुखी पैदा हो गई है.
रोहिंग्या आतंकियों को है चीन का सपोर्ट
म्यांमार सालों से रोहिंग्या आतंकवादियों की आतंकी गतिविधियों से जूझ रहा है. ये किसी से छुपा नहीं है कि चीन इन आतंकियों को टेरर फंडिंग करता है. दूसरी तरफ, भारत हमेशा रोहिंग्या आतंकियों के खिलाफ म्यांमार के साथ खड़ा रहा है. ऐसे में भारत म्यांमार का सहयोग कर उसे अपने साथ ले सकता है. भारत का सहयोग पाकर म्यांमार खुलकर चीन की दादागिरी का विरोध कर सकता है.
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ऐसे हो सकता है टकराव
एक तरफ जहां चीन की दादागिरी की वजह से म्यांमार के मन में बेरुखी बढ़ती जा रही है. वहीं, भारत की तरफ से लगातार उसे सहयोग का आश्वासन दिया जाता रहा है. अब बीजिंग क्योक प्यू बंदरगाह में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने पर अड़ा रहता है, तो म्यांमार कर्ज में डूब सकता है. ऐसे में पीएम मोदी अपने दौरे पर उसे इस संकट से उभारने में मदद करने का आश्वासन देते हैं, तो चीन को ये पसंद नहीं आएगा. चीन यहां भी भारत पर उसकी रणनीति में दखल देने का आरोप लगा सकता है. इससे दोनों देशों के बीच एकबार फिर टकराव होना तय है.