दुनिया में चल रहे बडे़ संघर्षों के बीच एक और संकट तेजी से बढ़ रहा है. रूस और यूक्रेन के अलावा इजरायल और हमास का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था, कि यमन में एक नया संघर्ष जन्म ले चुका है. यहां के हूती विद्रोही लाल सागर से गुजर रहे जहाजों पर हमला कर रहे हैं. आपको याद होगा कि हाल में अमेरिका ने इन हूती विद्रोहियों को टार्गेट करते हुए कुछ हमले किए हैं. अमेरिका ने ईरान पर इनका समर्थन करने का आरोप भी लगाया है. अब इस बात की आशंका तेज हो गई हो गई है कि यमन और हूतियों की तरफ से भी इन हमलों का जवाब दिया जाएगा.
अगर ऐसा हुआ तो लाल सागर से होने वाला व्यापार बुरी तरह प्रभावित होगा. ये रास्ता इसलिए अहम है क्योंकि दुनिया के कुल व्यापार का 12 फीसदी यहीं से होता है. जिसका प्रभाव भारत पर भी पड़ सकता है. ऐसे में भारत की तरफ से एक रणनीतिक कदम उठाया गया है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ईरान की यात्रा पर गए. इससे बड़ा लाभ ये हुआ कि भारत अपनी स्थिति स्पष्ट कर पाया. क्योंकि अगर ये जगह युद्ध क्षेत्र बन गई, तो इसका नुकसान भारत को भी उठाना पड़ेगा.
विदेश मंत्री एस जयंशकर की यात्रा 14-15 तारीख को हुई. उनकी ये यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि ईरान का यमन पर सीधा प्रभाव है. चाहे बात विचारधारा की हो, या फिर हथियारों से समर्थन देने की.
हाल में लाल सागर में जहाजों पर हुए हमलों के लिए अमेरिका ने सीधा यमन के हूतियों को जिम्मेदार ठहराया है. दुनिया भर में इन हमलों का विरोध हो रहा है. ये यात्रा ऐसे वक्त पर हुई, जब अमेरिका और ब्रिटेन ने हूती विद्रोहियों को निशाना बनाते हुए हमले किए हैं. इन्होंने आरोप भी लगाया कि ईरान ही इन्हें समर्थन दे रहा है. ऐसी स्थिति में इस क्षेत्र में ईरान की स्थिति और भी ज्यादा गंभीर हो जाती है. ऐसे में भारत के हितों की रक्षा के लिए इस वक्त यात्रा का होना, कई मायनों में खास और जरूरी है.
विदेश मंत्री जयशंकर ने सोमवार को ईरान के अपने समकक्ष हुसैन अमीर-अब्दोल्लाहियन के साथ कई अहम मुद्दों पर बात की.
अमेरिका के कारण आई थी रिश्तों में खटास
भारत और ईरान के रिश्ते हमेशा से ही अच्छे रहे हैं. लेकिन जब अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए, तो उसका असर भारत और ईरान के रिश्तों पर भी पड़ा. भारत ने ईरान से तेल खरीदना कम कर दिया था. हालांकि इस बार जब अमेरिका ने रूस से तेल नहीं खरीदने को कहा, तो भारत उसके दबाव में नहीं आया. भारत ने अपने हितों को ध्यान में रखते हुए तेल खरीदना जारी रखा. लेकिन जब बात ईरान की थी, तब भारत ने अमेरिका की बात मान ली थी. इससे रिश्तों में थोड़ी खटास आ गई थी.
ईरान की बात करें, तो वो भारत के लिए बेहद अहम देश है. उसके साथ साल 2018 में ही चाबहार बंदरगाह की बेहद जरूरी डील हुई. ये बंदरगाह पाकिस्तान में मौजूद ग्वादर बंदरगाह से महज 170 किलोमीटर दूर है. ग्वादर चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है. लेकिन अमेरिका ने 2019 में ईरान पर परमाणु बम बनाने का आरोप लगाकर उस पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए थे. साथ ही बाकी देशों को भी धमकी दे डाली कि जो ईरान के साथ रिश्ते रखेगा अमेरिका उसके साथ भी सख्ती बरतेगा.
चाबहार बंदरगाह पर अगर काम होता है तो भारत को अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया तक की कनेक्टिविटी मिल जाएगी. ये ग्वादर के पश्चिम में है. इसलिए भी भारत के लिए ये प्रोजेक्ट काफी अहम है. अमेरिका ने चाबहार के लिए भारत को कुछ प्रतिबंधों में छूट दे दी थी. इसी चीज का फायदा चीन ने उठाया. उसने 400 बिलियन डॉलर का तेल खरदीने का अग्रीमेंट साइन किया. वो ईरान का सबसे बड़ा ग्राहक बन गया. 2020 से 2023 आते आते तेल की बिक्री तीन गुना तक बढ़ गई थी.
INSTC कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट
अब एक बार फिर विदेश मंत्री एस जयशंकर की ईरान यात्रा पर लौटते हैं. उन्होंने ईरान के विदेश मंत्री के साथ क्षेत्रीय मुद्दों, द्विपक्षीय संबंधों और वैश्विक मामलों पर बात की. लेकिन जो दो सबसे अहम मुद्दे थे, वो चाबहार बंदरगाह और INSTC कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (ईरान से रूस को कनेक्ट करने वाला कॉरिडोर) हैं. भारत ने इन दो अहम मुद्दों पर चर्चा की.
इसके अलावा वैश्विक संकट से जुड़े अन्य मुद्दों पर भी दोनों देशों की बात हुई. जैसे गाजा, अफगानिस्तान, यूक्रेन और ब्रिक्स. बात इजरायल-हमास संकट की करें, तो यहां हमास को भी ईरान समर्थन देता है. भारत ने इजरायल पर हुए हमास के हमले की निंदा की थी. लेकिन साथ ही गाजा में लोगों पर हमला होने के बाद मानवीय मदद भी पहुंचाई. इसके अलावा भारत भी टू स्टेट थियोरी को मानता है. यानी इजरायल और फिलिस्तीन दो देश हों. ऐसे में इस मुद्दे पर भी भारत अपनी बात स्पष्ट रूप से रख सका.
INSTC कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट भी काफी अहम है. इसके लिए बंदर अब्बास बंदरगाह से कैस्पियन सी और वहां से होते हुए रूस तक पहुंचा जाना, भारत के लिए नॉर्थ-साउथ को कनेक्ट करने वाले इंटरनेशनल ट्रेड कॉरिडोर से संभव है. ये रास्ता मुंबई से होते हुए या तो चाबहार या बंदर अब्बास (ईरान के पोर्ट) से तहरान होते हुए कैस्पियन सी से निकलकर अस्तरा खान यानी रूस तक पहुंचा सकता है.
इसके अलावा तेहरान होते हुए अजरबैजान के बाकू होते हुए समुद्री मार्ग या सड़क मार्ग से भी रूस तक पहुंचा जा सकता है. इस 7200 किलोमीटर के मार्ग में भारत, ईरान, अजरबैजान, रूस, सेंट्रल एशिया और यूरोप सब कनेक्ट होंगे. इसके साथ ही कई तरह के ट्रेड रूट भी कनेक्ट होंगे.
कॉरिडोर का पहला प्रपोजल साल 2000 में आया था. ईरान और रूस ने इसे मंजूरी भी दी. लेकिन फंड की कमी के चलते ये अटक गया. हालांकि भारत ने अब इस मुद्दे पर भी बात की है. विदेश मंत्री ने ईरान के सड़क एवं शहरी विकास मंत्री से बातचीत की. एक अन्य रूट IMEC (इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर) पर आएं, तो इसे अमेरिका की मंजूरी प्राप्त है. लेकिन इजरायल और हमास की जंग के कारण इसमें भी चुनौतियां बढ़ गई हैं.
अमेरिका और दुनिया को बड़ा संदेश
ईरान की तरफ से कहा गया है कि भारत हमारा दोस्त है और हम और आगे बढ़ते हुए साथ काम करेंगे. ईरान की यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि ईरान को अमेरिका अपना दुश्मन समझता है. ऐसे में ये भारत के लिए काफी बड़ा रणनीतिक कदम है.
यात्रा भी ऐसे वक्त पर हो रही है, जब अमेरिका और उसके सहयोगी यमन पर हमला कर रहे हैं. वो यहां हूतियों को टार्गेट कर रहे हैं. जिन्हें ईरान का समर्थन हासिल है. और भारत के विदेश मंत्री ऐसे वक्त पर ईरान गए हैं. इससे भी अमेरिका को एक बड़ा संदेश जाता है. संदेश ये कि भारत ईरान के साथ अपने रिश्ते बेहतर रखना चाहता है. लाल सागर में अगर भविष्य में स्थिति बिगड़ती है, तो भारत यहां मधयस्थ की भूमिका भी निभा सकता है.
इसके साथ ही एक बड़ी बात ये भी हुई कि भारत ने ईरान में हुए आंतकी हमले पर अपनी संवेदना व्यक्त की. भारत की तरफ से इसमें मारे गए लोगों के लिए श्रद्धांजलि व्यक्त की गई है. इस हमले में 100 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. यहां ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के जनरल रहे कासिम सुलेमानी की हत्या की चौथी बरसी पर लोग एकत्रित हुए थे. उसी में हमला हो गया था. हमले के आरोप इजरायल पर लगे. भारत ने अपने बयान से साफ कर दिया है कि वो ईरान में होने वाले आतंकी हमलों का समर्थन नहीं करता.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी से भी मुलाकात की. उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से अभिवादन दिया. इससे पहले विदेश मंत्री रूस की यात्रा पर भी गए थे. यहां वो राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिले. ईरान और रूस दोनों ही इस वक्त काफी करीब हैं. अमेरिका दोनों को ही अपना दुश्मन मानता है. ऐसे में भारत सभी को इस तरह साध पा रहा है. ताकि अपनी स्थिति को मजबूत किया जा सके. भारत ने एक और संदेश ये दिया है कि वो उन देशों को नाराज नहीं कर सकता, जिसके साथ उसके व्यापारिक हित जुड़े हुए हैं.