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रूस ने भारत को दुनिया के सामने किया मजबूत, उठाया ये कदम

भारत ने रूस के राजधानी मॉस्को में हुई एक अहम बैठक में हिस्सा लिया है. इस बैठक में अफगानिस्तान के मौजूदा हालात से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए बताया है कि इस मीटिंग में अफगानिस्तान में मानवीय संकट और इससे निपटने के लिए जरूरी सहायता को लेकर बातचीत हुई है.

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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (फोटोः रायटर्स)
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (फोटोः रायटर्स)

रूस की राजधानी मॉस्को में आयोजित 'मॉस्को फॉर्मेट कंस्लटेशन ऑन अफगानिस्तान' (‘Moscow format consultations on Afghanistan’) बैठक में भारत ने भी हिस्सा लिया है. बुधवार को हुई इस बैठक में भारत की ओर से पाकिस्तान-ईरान-अफगानिस्तान डिवीजन के संयुक्त सचिव जे पी सिंह ने हिस्सा लिया.

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भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया कि इस मीटिंग में अफगानिस्तान के वर्तमान हालात और उससे निपटने के लिए जरूरी मानवीय सहायता पर चर्चा हुई है.

इस बैठक में भारत का शामिल होना इसलिए भी अहमियत रखता है क्योंकिअगस्त 2021 में अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता आने के बाद से एक भी अहम वार्ता में भारत को नहीं बुलाया जा रहा था. रूस द्वारा आयोजित बैठकों में भी भारत को नहीं बुलाया जाता था लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण चारों तरफ से घिरे रूस ने इस बार भारत को भी बुलाया.

इस बैठक में अन्य सदस्य देशों के रूप में रूस, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, चीन, पाकिस्तान, ईरान और तुर्कमेनिस्तान ने भी हिस्सा लिया.

अखबार द हिंदू के मुताबिक, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 8 नवंबर को ही रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को इस बात की पुष्टि कर दी थी कि भारत भी इस बैठक में हिस्सा लेगा. इस बैठक की पुष्टि करते हुए एस जयशंकर ने कहा था कि दुनिया को नहीं भूलना चाहिए कि अफगानिस्तान में क्या हालात हैं. उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया अफगानिस्तान पर उतना ध्यान नहीं दे रही है जितना देना चाहिए. 

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भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि इस मीटिंग में शामिल सभी देशों ने अफगानिस्तान के वर्तमान हालात पर चर्चा के साथ-साथ वहां के मौजूदा मानवीय संकट और इससे निपटने के लिए जरूरी सहायता पर बात की है. बयान में कहा गया है कि इस मीटिंग में अफगानिस्तान में समावेशी सरकार बनाने, आतंकवाद से निपटने और क्षेत्रीय सुरक्षा पर भी चर्चा हुई है. तालिबान ने वादा  किया था कि वो सरकार में आने के बाद समावेशी सरकार का गठन करेगा. लेकिन तालिबान अभी तक अपने वादों पर खरा नहीं उतरा है. 

भारत, रूस और ईरान बना सकते हैं अलग गुट
मॉस्को फॉर्मेट के सदस्य के अलावा कतर, सऊदी अरब, तुर्की और यूएई को भी गेस्ट के तौर पर इस मीटिंग में बुलाया गया था. अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद सुरक्षा कारणों से मॉस्को फॉर्मेट के भीतर भारत, रूस, और ईरान के बीच एक अलग गुट बनने की उम्मीद जताई जा रही है. अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद से ही रूस चिंतित है. ऐसा माना जा रहा है कि रूस को डर है कि मध्य एशिया में तालिबान के प्रभाव से इस्लामिक चरपंथ को बढ़ावा मिल सकता है.

पिछले महीने हुई थी घोषणा
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अफगानिस्तान में विशेष प्रतिनिधि जामिर काबुलोव ने पिछले ही महीने 'मॉस्को फॉर्मेट कंस्लटेशन ऑन अफगानिस्तान' मीटिंग की घोषणा की थी. काबुलोव ने बताया था कि इस मीटिंग का मकसद तालिबान के कुछ गलत कदमों को प्रमुखता से सामने लाना है. साथ ही उन्होंने कहा था कि वहां के धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में दखल दिए बिना हम कोशिश करेंगे कि तालिबान वहां की महिलाओं को बाहर काम करने जाने पर और लड़कियों को स्कूल जाने पर पाबंदी न लगाए. 

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भारतीय प्रतिनिधि पहले भी जा चुके हैं अफगानिस्तान 
'मॉस्को फॉर्मेट कंस्लटेशन ऑन अफगानिस्तान' मीटिंग में भारत के प्रतिनिधि जे पी सिंह इससे पहले भी अफगानिस्तान जा चुके हैं. जून में भारत ने मानवीय सहायता के रूप में अफगानिस्तान को मेडिकल सुविधाओं की एक बड़ी खेप सौंपी थी. इसी दौरान जे पी सिंह ने तालिबान के बड़े नेताओं से मुलाकात की थी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस बैठक में तालिबान का कोई भी प्रतिनिधि नहीं शामिल नहीं हुआ है. तालिबान की ओर से मीटिंग में शामिल नहीं होने के कारण की जानकारी नहीं दी गई है. 

क्या है मॉस्को फॉर्मेट 
अफगानिस्तान के मुद्दों पर चर्चा करने और इसके समाधान के लिए साल 2017 में मॉस्को फॉर्मेट की शुरुआत हुई थी. शुरुआत में रूस, चीन, अफगानिस्तान, चीन, पाकिस्तान, ईरान और भारत सदस्य देश थे. यह वार्ता हमेशा रूस की ओर से ही होती रही है.

मॉस्को फॉर्मेट की इससे पहले भी एक बैठक हो चुकी है. पिछले साल 20 अक्टूबर को पहली बार मॉस्को फॉर्मेट के नेताओं ने तालिबान के प्रतिनिधियों से बातचीत की थी. अफगानिस्तान में पूरी तरह से तालिबानी सत्ता आने के बाद से कई देशों ने अपना राजनायिक मिशन फिर से शुरू कर दिया है लेकिन अभी तक तालिबान को एक भी देश ने मान्यता नहीं दी है.

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भारत को ट्रॉइक प्लस में शामिल करने से कर दिया था इनकार
मार्च 2021 में रूस ने अफगानिस्तान में शांति वार्ता को लेकर एक सम्मेलन का आयोजन किया था. इसमें अमेरिका, पाकिस्तान और चीन को बुलाया गया था, लेकिन रूस ने भारत को नहीं बुलाया था. इस सम्मेलन में तत्कालीन अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे. ये सम्मेलन 'ट्राइक' पहल के जरिए हुई थी, जिसमे रूस चीन और अमेरिका अलग-अलग पक्षों से बात कर रहे थे. उस वक्त रूस ने अफगानिस्तान मुद्दे पर वार्ता के लिए 'ट्राइक प्लस' समूह में भारत को शामिल करने से इनकार कर दिया था.

 

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