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भारत के नए प्रोजेक्ट से इस मुस्लिम देश को भारी नुकसान! रूस की भी बढ़ेगी टेंशन

नई दिल्ली में संपन्न हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन भारत ने इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडर के निर्माण का ऐलान किया था. इस प्रोजेक्ट में भारत के साथ-साथ अमेरिका, सऊदी अरब और यूएई भी अहम साझेदार है. एक रिपोर्ट के अनुसार, इस कॉरिडोर से इस्लामिक देश मिस्र को आर्थिक रूप से भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (फाइल फोटो)
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (फाइल फोटो)

भारत की अध्यक्षता में संपन्न हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत, मिडिल ईस्ट और यूरोपीय देशों के बीच एक मेगा प्रोजेक्ट को लेकर सहमति बनी है. इस प्रोजेक्ट का नाम 'इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडर' है. इस कॉरिडोर की मदद से भारत से यूरोप तक रेल और जहाज के माध्यम से पहुंचा जा सकेगा. इस कॉरिडोर को चीन के 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (बीआरआई) का भी जवाब माना जा रहा है. 
 
इस प्रोजेक्ट में भारत के अलावा अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब आमीरात, यूरोपीय यूनियन, इटली, फ्रांस और जर्मनी भी शामिल हैं. इजरायल के 'इकोनॉमिक ग्लोब्स अखबार' के मुताबिक, इस कॉरिडोर के बनने से मिस्र को आर्थिक रूप से भारी नुकसान उठाना पड़ेगा. क्योंकि कॉरिडर के बन जाने से स्वेज नहर से होकर गुजरने वाली माल ढुलाई कम होगी जिससे मिस्र की कमाई में भारी गिरावट दर्ज होने की संभावना है.

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कुल व्यापार का 10 प्रतिशत व्यापार स्वेज नहर से

अखबार ने गल्फ की राजनीति और सुरक्षा विशेषज्ञ एवं इजराइल के इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज (आईएनएसएस) के एक वरिष्ठ शोधकर्ता योएल गुजांस्की के हवाले से लिखा है, "दुनिया का कुल दस प्रतिशत और तेल का सात प्रतिशत व्यापार स्वेज नहर के रास्ते से होता है. और वर्तमान में स्वेज नहर को मिस्र नियंत्रित करता है. लेकिन इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडर वैश्विक तेल व्यापार को प्रभावित करेगा, जिससे मिस्र के राजस्व को भारी नुकसान होगा."

वित्तीय वर्ष 2022-23 में स्वेज नहर से कुल कमाई 9.4 बिलियन दर्ज की गई, जो पिछले साल की कमाई 7 बिलियन डॉलर से काफी ज्यादा है. इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडर मिस्र के लिए यह इसलिए भी चिंता का विषय है क्योंकि मिस्र पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का लगभग 12.5 बिलियन डॉलर का कर्ज है और उसकी आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है. ऐसे में स्वेज नहर से होने वाली कमाई मिस्र के लिए मायने रखती है.

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योएल गुजांस्की का कहना है कि स्वेज नहर पर यूरोप और भारत की निर्भरता में कमी और इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडर के बन जाने से माल परिवहन में लगने वाले समय में बचत मिस्र के लिए एक झटका हो सकता है.

रूस और ईरान को भी झटका

इजरायली विशेषज्ञ के अनुसार, इस कॉरिडोर से सिर्फ मिस्र ही नहीं बल्कि रूस और ईरान के प्रोजेक्ट अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को भी नुकसान होगा. क्योंकि 7200 किमी लंबे इस कॉरिडोर में भारत शामिल है.

दरअसल, इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडर में भी भारत शामिल है .ऐसे में दो समानांतर प्रोजेक्ट में एक साथ रहना भारत के लिए आसान नहीं होगा. साल 2000 में रूस, ईरान और भारत ने अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट पर सहमति जताई थी. यह कॉरिडोर हिन्द महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के जरिए कैस्पियन सागर से जोड़ेगा. जो रूस से होते हुए उत्तरी यूरोप तक पहुंच बनाएगा. 

इजरायल की राजनीतिक स्थिति प्रोजेक्ट को कर सकता है प्रभावित

राजनीति विशेषज्ञ गुंजास्की ने आगे कहा कि इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडर प्रोजेक्ट ग्रीस के पीरियस के बंदरगाह से शुरू होने की उम्मीद है. जो समुद्र के रास्ते इजरायली बंदरगाह हाइफा तक जाएगी. फिर रेलवे मार्ग द्वारा जॉर्डन के रास्ते सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात तक जाएगी. फिर जल मार्ग के माध्यम से मुंबई को इससे जोड़ा जाएगा.

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हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इजरायल की राजनीतिक स्थिति इस परियोजना के भविष्य को प्रभावित कर सकता है. क्योंकि इस तरह की परियोजना के लिए इजरायल को बड़े निवेश की आवश्यकता होगी. ऐसे में प्रधानमंत्री नेतन्याहू को अपने गठबंधन के साथ-साथ विपक्षी पार्टियों से भी सहमति लेनी पड़ेगी. लेकिन इजरायली पीएम नेतन्याहू को बेजेलेल स्मोट्रिच और इतामार बेन-गाविर जैसे नेताओं से सहमति बनाना आसान नहीं होगा.

क्या है इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडर?

भारत, मिडिल ईस्ट और यूरोपीय देशों के बीच हुआ ये समझौता असल में एक इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है. इस प्रोजेक्ट पर कितना खर्च आएगा, अभी इसका कोई आंकड़ा तो सामने नहीं आया है. लेकिन अनुमान है कि इस पर 20 अरब डॉलर खर्च हो सकते हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत, बंदरगाहों से लेकर रेल नेटवर्क तक तैयार किया जाएगा.

इस कॉरिडोर के दो हिस्सों में बांटा गया है. पहला- ईस्टर्न कॉरिडोर, जो भारत को खाड़ी देशों से जोड़ेगा. दूसरा- नॉर्दर्न कॉरिडोर, जो खाड़ी देशों को यूरोप से जोड़ेगा. इस प्रोजेक्ट में रेलवे लाइन के साथ-साथ इलेक्ट्रिसिटी केबल, हाइड्रोजन पाइपलाइन और एक हाई-स्पीड डेटा केबल भी होगी.

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