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सिन्धु नदी को लेकर पाकिस्तान का भारत के खिलाफ ‘जल आतंकवाद’

भारत ने कहा कि ये पाकिस्तान का नया जल आतंकवाद है, जो जम्मू और कश्मीर का विकास रोकने का प्रयास और संधि की भावना के पूरी तरह खिलाफ है.

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Image Credit: Reuters
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  • PAK मीडिया रिपोर्ट्स को भारत ने किया खारिज
  • भारत पर संधि के उल्लंघन का लगाया था आरोप

पाकिस्तान में सिन्धु जल संधि को लेकर अनर्गल न्यूज रिपोर्टों को भारत ने ‘झूठी’ और ‘असलियत से दूर’ बताते हुए सिरे से खारिज किया है. इन रिपोर्ट्स में मोदी प्रशासन की ओर से सिन्धु नदी संधि का उल्लंघन किए जाने जैसी बातें की जा रही हैं.

भारत ने पाकिस्तान से कहा है कि वो अपने देश में पानी के खराब प्रबंधन को लेकर भारत को दोष नहीं दे. भारत के सिन्धु नदी कमिश्नर पी. के. सक्सेना ने कहा कि इस तरह की अवधारणा बनाए जाना कि पाकिस्तान में पानी की किल्लत भारत की वजह से है, इसका जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है. ये सिर्फ पाकिस्तान की ओर अपनी जनता का ध्यान जल संसाधनों के खराब प्रबंधन से हटाने की कोशिश है.

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कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के ‘समान सोच’ वाले सदस्यों के साथ एक ड्राफ्ट साझा किया है. इस ड्राफ्ट में कहा गया है कि वो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में नदियों के ऊपर बांध बनाने जा रहा है, जो सिन्धु जल संधि (IWT) का उल्लंघन है. भारत ने अपनी स्थिति को दोहराया है कि वो सिन्धु जल संधि के प्रावधानों का पालन करना जारी रखेगा और न ही किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन करेगा.  

सक्सेना ने पश्चिमी नदियों पर बांध बनाने के भारत के अधिकार को स्पष्ट करते हुए कहा, 'भारत सिन्धु जल संधि को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान को ईमानदारी से उसके पानी का हिस्सा उपलब्ध करा रहा है. ये ऊपरी नदियों के तट पर स्थित किसी देश की ओर से की गई सबसे उदार संधि है. इसमें भारत को सिर्फ 18% पानी मिलता है. दुर्भाग्य से पाकिस्तान ने पश्चिमी नदियों पर सभी जल विद्युत प्रोजेक्ट्स का विरोध किया है. उसने उनका आकार और लेआउट देखे बिना ऐसा किया है. साल 2017 में पाकिस्तान ने उस समझौते पर एकतरफा फैसला लेकर रद्द कर दिया है, जो साल 2014 में दोनों देशों के सिन्धु कमिश्नरों के बीच हुआ था.'

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पी. के. सक्सेना ने पाकिस्तान के कदमों को ‘जल आतंकवाद’ बताते हुए कहा कि कुछ मुद्दों पर पाकिस्तान ने तटस्थ पक्ष की राय भी नहीं मानी. आपत्ति जताने और बाधा खड़ी करने की ये कार्रवाई भारत को संधि के तहत उसके वैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करने से रोकने की कोशिश है. ये  पाकिस्तान का नया ‘जल आतंकवाद’ है, जो जम्मू और कश्मीर का विकास रोकने का प्रयास और संधि की भावना के पूरी तरह खिलाफ है.  

भारत के सिंधु नदी कमिश्नर ने बताया, 'पाकिस्तान 90-93%  पानी का इस्तेमाल कृषि के लिए करता है, जबकि औसत 70-75 फीसदी है. इसमें से दो तिहाई पानी पारम्परिक तरीके अपनाने की वजह से बेकार हो जाता है. पाकिस्तान के 135 MAF हिस्से में से करीब 30-35 MAF समुद्र में चला जाता है और 30 MAF को पाकिस्तान ‘सिस्टम लॉस’ बताता है, जोकि वास्तव में रसूखदारों की ओर से चुरा लिया जाता है. ये पानी की बर्बादी सिन्धु नदी में भारत के हिस्से वाले पानी से दुगनी है.'

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पी. के. सक्सेना ने पाकिस्तान को पानी की बर्बादी रोकने की नसीहत देते हुए कहा, 'पाकिस्तान के पास जल संसाधनों को विकसित करने की अच्छी संभावनाएं हैं. इनका विकास तभी संभव है, जब वो विरोध की बजाय प्रगति पर ध्यान दें. इसके लिए सोच में व्यापक सकारात्मक बदलाव की जरूरत है, जिसमें उसका अपना विकास हो, न कि हर वक्त भारत के विरोध पर केंद्रित लीक पर ही चलता रहे.'

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