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आखिर क्या है भारतीय सेना की कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन, जिससे डरता है PAK

एक अमेरिकी थिंक-टैंक के सवाल पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारतीय सेना की इस रणनीति का जिक्र किया और इससे निपटने के लिए शॉर्ट रेंज के परमाणु हथियार विकसित किए जाने की बात की, जो इस बात को दर्शाता है कि पाकिस्तान के अंदर इसको लेकर कितना खौफ है.

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भारतीय सेना
भारतीय सेना

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संयुक्त राष्ट्र सत्र में हिस्सा लेने अमेरिका पहुंचे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने भारतीय सेना की 'कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन से निपटने के लिए शॉर्ट रेंज न्यूक्लियर हथियार विकसित करने का खुलासा करके बहस छेड़ दी है. उनके इस बयान के बाद से भारतीय सेना की कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन क्या है, जिससे परमाणु शक्ति संपन्न पाकिस्तान थर-थर कांपता है?

एक अमेरिकी थिंक-टैंक के सवाल पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारतीय सेना की इस रणनीति का जिक्र किया और इससे निपटने के लिए शॉर्ट रेंज के परमाणु हथियार विकसित किए जाने की बात की, जो इस बात को दर्शाता है कि पाकिस्तान के अंदर इसको लेकर कितना खौफ है. भारत ने पाकिस्तान की ओर से संभावित युद्ध के खतरे से निपटने के लिए कोल्ड वार डॉक्ट्रिन या कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन को विकसित किया था. इसके तहत बेहद कम समय में यानी 48 घंटे में ही दुश्मन देश के क्षेत्र घुसकर हमला करना और फिर वापस अपनी पोजिशन लेना है.

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इससे दुश्मन को संभलने का मौका भी नहीं मिलता है. इसे उकसावे की कार्रवाई भी नहीं माना जाता है. इसका मकसद पाकिस्तान के साथ परमाणु युद्ध को टालना भी है. दिसंबर 2001 में संसद में आतंकी हमले के बाद से भारत ने ऑपरेशन पराक्रम लांच किया, जिसके तहत कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन को बढ़ावा दिया गया. इस हमले के बाद भारतीय सेना को पाकिस्तान सीमा पर पहुंचने में करीब एक महीने का समय लग गया था, जिसके चलते पाकिस्तान को अपनी तैयारी करने का पर्याप्त समय मिल गया था. साथ ही अमेरिका के जरिए तत्कालीन राजग सरकार पर पीछे हटने का दबाव बनाने का भी समय मिल गया. भारत ने कभी भी कोल्ड वार डॉक्ट्रिन को सार्वजनिक रूप से कभी स्वीकार नहीं किया है.

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