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UAE में भारतीय महिला ने लहराया अपनी सफलता का परचम!

भारत की एक महिला ने अपनी बहनों के साथ मिलकर दुबई में एक अंग्रेजी स्कूल की शुरुआत की थी जिसे अब पचास साल पूरे हो गए हैं. महिला ने इस ख्यातिप्राप्त स्कूल की शुरुआत एक क्रेच से की थी जो बच्चों को संभालने का काम करता था. लेकिन बाद में उसे नर्सरी स्कूल बना दिया गया. धीरे-धीरे स्कूल एक हाई स्कूल में तब्दील हो गया.

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दुबई में भारतीय महिला ने अपने सफलता की कहानी गढ़ी है (Photo- Reuters)
दुबई में भारतीय महिला ने अपने सफलता की कहानी गढ़ी है (Photo- Reuters)

संयुक्त अरब अमीरात के शहर दुबई में एक भारतीय महिला की सफलता की कहानी ने लोगों का ध्यान खींचा है. भारत के मुंबई से दुबई में जाकर बसीं महिला बीबी ने अपनी बहनों के साथ मिलकर एक छोटे से अपार्टमेंट में क्रेच चलाने से अपने सफर की शुरुआत की थी. बीबी के प्रयासों से एक कमरे का क्रेच एक बड़े हाइस्कूल में तब्दील हो चुका है जो अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त ब्रिटिश पाठ्यक्रम की शिक्षा देता है. बीबी के द्वारा शुरू किए गए स्कूल के पचास साल पूरे हो गए हैं और अब हाल ही में इसकी स्वर्ण जयंती मनाई गई है.

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बीबी ने अपनी बहन सुल्ताना रबी, लतीफा रबी के साथ मिलकर दुबई जेम प्राइवेट स्कूल (DGPS) की शुरुआत की थी. दुबई का यह स्कूल एक ख्यातिप्राप्त हाई स्कूल बन चुका है जिसमें कई देशों के बच्चे अंग्रेजी शिक्षा हासिल करते हैं. 

स्कूल के स्वर्ण जयंती के मौके पर खलीज टाइम्स के साथ बात करते हुए लतीफा रबी भावुक हो गईं. उन्होंने कहा, 'यह एक लंबी यात्रा रही है, बर दुबई में एक छोटे से अपार्टमेंट की चार दीवारी में मैंने अपना सफर शुरू किया था. यह सफर ऊद मेथा में इस बड़े से परिसर तक आ पहुंचा है.'

उन्होंने कहा कि स्कूल दुबई में एक अग्रणी शिक्षण संस्थान बन चुका है जो कई पीढ़ियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करता आया है.

क्यों आया था स्कूल शुरू करने का ख्याल?

अपने सफर को याद करते हुए बीबी ने कहा, 'हमने एक नर्सरी और क्रेच से शुरुआत की थी. उस समय, दुबई में बमुश्किल ही कोई अंग्रेजी मीडियम का स्कूल था. दुबई में प्रवासियों की संख्या बढ़ रही थी और उनके बच्चों के लिए किसी अंग्रेजी स्कूल की जरूरत थी. हमने उस अंतर को भरने का फैसला किया और स्कूल शुरू किया था.'

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1978 में, दुबई के दिवंगत शासक शेख राशिद बिन सईद अल मकतूम ने औद मेथा में स्कूल के लिए जमीन दी थी. इसके बाद बीबी ने अपनी बहनों के साथ मिलकर इसका विस्तार किया था.

बीबी ने कहा, 'सुल्ताना और मैंने नर्सरी और क्रेच की स्थापना के बाद से एक लंबा सफर तय किया है. पीछे मुड़कर देखती हूं तो अब यह विश्वास करना मुश्किल होता है कि हमारे पास एक हाई स्कूल है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त यूके पाठ्यक्रम प्रदान करता है.'

भारत की रहने वाली बीबी ने अपना अधिकांश जीवन यूएई में ही बिताया है और वो इसे अपना घर मानती हैं. हालांकि, अपनी बहनों और चचेरे भाई-बहनों की तरह उन्होंने यूएई की नागरिकता नहीं ली है.

स्कूल को अपने बच्चे की तरह मानती हैं सुल्ताना

सुल्ताना रबी ने कहा कि वह DGPS को अपने सपनों का बच्चा मानती हैं क्योंकि उन्होंने इसे एक शिशु से बड़े बच्चे की तरह विकसित होते हुए देखा है. 1973 में यह एक क्रेच से नर्सरी, फिर एक जूनियर स्कूल और अंत में 1996 में एक हाई स्कूल बना था.

उन्होंने कहा, 'स्कूल आज जिस मुकाम पर है, उसे वहां तक ​​पहुंचाने का काम बहुत मेहनत का रहा है और हमने वो कर दिखाया.'

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स्कूल की तरफ के जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया, 'हमारे पास स्कूल के पहले दिन की सुखद यादें हैं जब हमने अपने दरवाजे पर चार बच्चों का स्वागत किया था. हम अभी भी अपने उन चार बच्चों को याद करते हैं जिनके नाम हैं- हेशम अली मुस्तफा, जॉन एपेन, सलेम देशमल और अफशा वाहिद.'

जीन ग्राटन ने 1983 से लेकर 2006 तक स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में काम किया है. उन्होंने बताया, 'जब मैं पहली बार सुल्ताना रबी से मिली तभी उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण को पहचान लिया था.' ग्राटन ने ही DGPS के स्कूल गीत की रचना की है. स्कूल में अधिकतर कर्मचारी ऐसे हैं जो पिछले तीन दशक से स्कूल के साथ जुड़े हुए हैं. 

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