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'उन्होंने मुझे अपने कुत्ते का पेशाब पिलाया, उसका मल मेरे मुंह में ठूंस दिया. मेरे मालिक ने खौलता पानी मेरे ऊपर डाला और फिर मुझे जंजीरों से बांध दिया', 24 साल की सिती खोतिमा अपनी आपबीती सुनाते हुए रो पड़ती हैं. सिती पिछले साल जावा (इंडोनेशिया) के एक गांव से राजधानी जकार्ता में काम के सिलसिले में गई थीं. उनके माता-पिता के ऊपर काफी कर्ज था, जिसे चुकाने के लिए उन्होंने फेसबुक के जरिए जकार्ता में एक नौकरानी की नौकरी ढूंढी और वहां चली गईं. लेकिन वहां जाकर उनकी जिंदगी जैसे नर्क हो गई.
कुछ ही महीनों में उन्हें काम देने वाले ने उनकी ऐसी हालत कर दी कि उन्हें पहचानना मुश्किल हो गया. उन्हें इतना मारा कि शरीर की कई हड्डियां टूट गईं. वो अब लंगड़ाकर चलती हैं. उनके पैरों में अब भी जले और चोट के निशान हैं.
समाचार एजेंसी एएफपी से अपनी दास्तां बयान करते हुए सिती रो पड़ती हैं. वो कहती हैं, 'मैं जब भी अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के बारे में सोचती हूं, मेरा दिल रोता है.'
सिती को जिस महिला ने काम पर रखा था उसे पिछले साल शारीरिक शोषण के लिए चार साल का सजा हुई है. वहीं, उसके पति, बेटी और बाकी छह नौकरानियों को साढ़े तीन साल का जेल हुई है.
'उन लोगों ने मेरा रेप किया'
सिती ने बताया कि उसके मालिक ने उसका रेप भी किया लेकिन वो पहले इसके बारे में बोल नहीं पाईं. पुलिस ने अब सिती से कहा है कि वो अपने मालिक के खिलाफ बलात्कार का एक अलग मामला दर्ज कराएं.
दोषियों को इतनी कम सजा दिए जाने को लेकर सिती दुखी हैं. वो कहती हैं, 'मुझे बहुत निराशा हुई है. मेरे साथ उनलोगों ने जो किया, उसके मुकाबले उनकी सजा काफी कम है. मैंने जो झेला, उन्हें भी वो सब महसूस होना चाहिए.'
इंडोनेशिया में घरेलू कामगारों के लिए नहीं है कोई कानून
इंडोनेशिया में सिती अकेली ऐसी घरेलू कामगार नहीं है जिनके साथ जानवरों से भी खराब बर्ताव हुआ बल्कि वहां के 40 लाख कामगारों में से बहुतों के साथ ऐसा हो रहा है. घरेलू कामगारों में अधिकतर महिलाएं हैं और उनके साथ दुर्व्यवहार और यौन शोषण का खतरा और भी ज्यादा है.
इंडोनेशिया में घरेलू कामगारों की रक्षा के लिए कोई कानून नहीं है. पिछले दो दशक से घरेलू कामगार बिल संसद में लटका हुआ है और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार इस बिल को पास नहीं कराना चाहती. वहां घरेलू नौकरों को कामगार नहीं माना जाता जिस कारण उन्हें अनौपचारिक और अनियमित अर्थव्यवस्था में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
वहीं, घरेलू कामगार बिल की भी काफी आलोचना होती है क्योंकि इसमें महज उन कामगारों के अधिकारों की बात है जो एजेंट्स के जरिए विदेशों में काम करने के लिए इंडोनेशिया से बाहर जाएंगे.
कानून के जानकार लोगों का कहना है कि अगर इंडोनेशिया में घरेलू कामगार बिल पास हो भी जाता है तो इससे देश में काम करने वाले घरेलू कामगारों को फायदा नहीं मिलेगा. बिल के वर्किंग कमिटी का नेतृत्व करने वाले सांसद विली आदित्य ने कहा, 'कानून बहुत भेदभावपूर्ण है.'
घरेलू कामगारों के खिलाफ हिंसा को लेकर ये नियम
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार को इंडोनेशिया के अंदर काम करने वाले घरेलू कामगारों की मदद करने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए.
महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय आयोग की तियासरी वियानदानी कहती हैं, 'सिती का मामला घरेलू कामगारों के साथ दुर्व्यवहार का कोई पहला मामला नहीं है. इस तरह की घटनाओं को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया हमेशा धीमी रही है. जब हम अपने देश में काम करने वाले घरेलू कामगारों की रक्षा नहीं कर सकते, तब दूसरे देशों से सुरक्षा की मांग करना हमारे चेहरे पर तमाचे की तरह है.'
घरेलू कामगारों के साथ हिंसा और यौन शोषण की कहानियां सामने आने के बावजूद भी इंडोनेशिया के ग्रामीण इलाकों की महिलाएं गरीबी के कारण बड़े शहरों में काम करने जाने को मजबूर हैं. सिती कहती हैं, 'गांव में हमारे ऊपर बहुत कर्ज था. मेरे पास शहर जाने के अलावा कोई और चारा नहीं था.'
चोरी का आरोप लगाकर शुरू किया शोषण
सिती अप्रैल 2022 में जकार्ता पहुंची थीं. इसके कुछ हफ्तों बाद ही उन पर घर की एक दूसरी नौकरानी ने चोरी का आरोप लगाया. सिती ने जब चोरी से इनकार किया तब उसकी खूब पिटाई की गई. इसके बाद मार-पिटाई और शोषण का एक सिलसिला चल पड़ा जो दिसंबर में जाकर खत्म हुआ. वो बताती हैं कि उनके मालिक ने उन्हें खूब पीटा और अपने कुत्ते का पेशाब पिलाया. उन्हें कुत्ते का मल खाने पर मजबूर किया गया.
वो कहती हैं, 'कई लोग हमेशा मुझे मारते थे, मेरे मालिक ने मेरे ऊपर खौलता पानी डाल दिया था. बाद में उन लोगों ने मुझे जंजीरों से बांध दिया.'
'जब मुझे घर भेजा, तब मैं इंसान जैसी नहीं दिख रही थी'
पैसे कमाने के मकसद से जकार्ता गईं सिती को आठ महीने की नौकरी में केवल 99 डॉलर (8 हजार 184.29 रुपये) दिए गए और वो भी तब जब मरी हुई हालत में उन्हें एक टैक्सी में बिठाकर उनके गांव भेजा गया.
वो उस पल को याद करते हुए कहती हैं, 'जब मैं टैक्सी में बैठी तो बहुत डरी हुई थी कि ड्राइवर मुझे कहीं सड़क के किनारे न छोड़ दे. मेरी हालत ऐसी हो गई थी कि मैं इंसान जैसी दिख ही नहीं रही थी.'
सिती रात के तीन बजे अपने घर पहुंची और फर्श पर बैठकर जोर-जोर से रोने लगीं. वो एक पैर से चल नहीं पा रही थीं और उनके बाल काटकर छोटे कर दिए गए थे. उनके पैरों में गहरे घाव थे जिनसे खून और पस बह रहा था. उनके दोनों हाथ सिगरेट से जला दिए गए थे.
सिती की मां एनी सोपिया कहती हैं, 'वो रो रही थी, मैंने अपने पति को जगाया और कहा कि अपनी बच्ची घर आ गई है लेकिन उसकी हालत मरने वाली हो गई है.'
चार महीने अस्पताल में बिताया, अब भी नहीं मिटे हैं जख्म
इसके बाद सिती के परिवार ने पुलिस को बुलाया. पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार किया और सिती को जकार्ता के एक अस्पताल में भर्ती कराया. सिती चार महीने अस्पताल में रहीं तब जाकर उनकी हालत में सुधार आया. जख्म इतने गहरे थे कि वो आज भी उनसे रिकवर ही कर रही हैं.
सिती ने अब तय किया है कि वो घरेलू कामगारों के अधिकारों के लिए काम करेंगी. मानवाधिकार संस्था Jala PRT की मदद से वो अपने दोषियों के खिलाफ यौन शोषण और मानव तस्करी का मामला दर्ज करा रही हैं.
वो कहती हैं, 'मैं आशा करती हूं कि घरेलू कामगार बिल जल्द से जल्द पास हो जाए जिससे कभी किसी कामगार को सिती न बनना पड़े. मैं चाहती हूं कि मेरे बाद किसी कामगार के साथ बुरा न हो.'