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भारत के हिजाब विवाद और अपनी जींस वाली तस्वीर पर बोलीं मलाला

मलाला युसूफजई ने कहा है कि महिलाओं के पास ये अधिकार होना चाहिए कि वो क्या पहनना चाहती हैं. उन्होंने कहा कि तालिबान ने जब महिलाओं के बुर्का पहनने को अनिवार्य बनाया तब उन्होंने विरोध किया और जब भारत के कर्नाटक में हिजाब पर बैन लगाया गया तब भी उन्होंने आवाज उठाई क्योंकि महिलाएं क्या पहनें, ये तय करने का अधिकार किसी दूसरे को नहीं होना चाहिए.

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मलाला ने महिला अधिकारों पर अपने विचार साझा किए हैं (Photo-Malala/Instagram)
मलाला ने महिला अधिकारों पर अपने विचार साझा किए हैं (Photo-Malala/Instagram)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मलाला युसूफजई ने महिलाओं के पहनावे पर साझा किए अपने बयान
  • भारत के कर्नाटक में हिजाब बैन पर भी बोलीं
  • कहा-बुर्का या बिकिनी, चुनाव करना महिलाओं का अधिकार

International Women's Day 2022: आज विश्व भर में महिला अधिकारों के प्रति जागरुकता लाने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है. इस बीच पाकिस्तान की नोबेल पुरस्कार विजेता और महिला अधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई का महिला अधिकारों पर लिखा एक लेख चर्चा में है. मलाला ने अपने लेख में लिखा है कि एक महिला बिकिनी पहनना चाहती है या बुर्का, ये पूर्ण रूप से उसका फैसला होना चाहिए.

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मलाला ने अपने लंबे लेख को इंस्टाग्राम पर साझा किया है जिसमें वो लिखती हैं कि उनके रिश्तेदार टीवी पर उन्हें देखकर कहते थे कि इसे घर में होना चाहिए, ये बिना चेहरा ढके इंटरव्यू क्यों दे रही है.

मलाला ने लिखा, 'जब मैं 12 साल की थी तब एक रिश्तेदार ने मेरे पिता से शिकायत की कि ये चैनलों पर इंटरव्यू क्यों देती है. उन्होंने कहा था- इसे घर में रहना चाहिए न कि कैमरों के सामने और अगर ये जा ही रही है तो कम से कम अपना चेहरा तो ढक कर रखे. लोग न तो लड़कियों का खुला चेहरा देखना चाहते हैं और न ही उनकी आवाज को सुनना चाहते हैं.'

तालिबान का किया जिक्र

उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान के स्वात घाटी में तालिबान के आने से पहले महिलाएं लंबी मोटी कढ़ाई वाली शॉल पहनती थी. उनकी मां भी ऐसे ही अपने चेहरे को ढकती थी लेकिन तालिबान के आने के बाद महिलाओं के लिए एक खास ड्रेस कोड बनाया गया जिससे उनके शरीर का कोई हिस्सा न दिखे.

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मलाला ने लिखा, 'तालिबान ने अनिवार्य कर दिया कि सभी महिलाओं को एक काला अबाया और सिर से पैर तक ढका हुआ बुर्का पहनना होगा. अगर कोई तालिबान के ड्रेस कोड को न मानता तो उसे बुरी तरह पीटा जाता था. मैं भी जब 10 या 11 साल की थी तब मैंने कुछ समय के लिए बुर्का पहना था.'

मलाला ने कहा कि आज भी लड़कियों को उनके पहनावे को लेकर दबाया जा रहा है. उन्होंने आगे कहा, 'जैसे ही पाकिस्तान की कोई लड़की किशोरावस्था में प्रवेश करती है, उसका परिवार, पड़ोसी और यहां तक ​​कि अजनबी लोग भी उससे एक निश्चित तरीके से दिखने की उम्मीद करते हैं. एक लड़की का पहनावा ये निर्धारित करता है कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं और उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगे. यदि आप एक स्थापित ड्रेस कोड का पालन नहीं करते हैं तो आपको संस्कृति और धर्म के लिए खतरा समझा जाता है और आपको एक बाहरी के तौर पर देखा जाता है.

मलाला ने कहा कि उनका चेहरा उनकी पहचान है और इसलिए उन्होंने अपना चेहरा ढकने से इनकार कर दिया.

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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विश्व भर में लड़कियों के पहनावे पर विवाद को लेकर बोलीं मलाला

विश्व के देशों में लड़कियों के पहनावे पर समय-समय पर उठते विवाद को लेकर मलाला ने कहा, 'दुनिया भर में लड़कियां जो पहनती हैं, उसके लिए उन पर हमले हो रहे हैं. पिछले महीने भारत के कर्नाटक में स्कूल और कॉलेजों में लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया. इससे उन्हें अपनी शिक्षा और हिजाब में से किसी एक को चुनने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्हें सिर ढकने को लेकर अपमान सहना पड़ा.'

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'फ्रांस में सांसदों ने जनवरी में खेल प्रतियोगिताओं में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के लिए मतदान किया. 160 में से 143 सांसदों ने हिजाब पर बैन के लिए मतदान किया. अफगानिस्तान में तालिबान के अधिकारी महिलाओं को काम करने के लिए कंबल पहनने की सलाह दे रहे हैं.'

मलाला ने आगे लिखा कि दुनिया के हर कोने में महिलाएं और लड़कियां यह समझती हैं कि अगर उन्हें सड़क पर परेशान किया जाता है या उन पर हमला किया जाता है, तो उनके हमलावरों से अधिक मुकदमा उनके कपड़ों पर होने की संभावना रहती है.

उन्होंने लिखा, 'महिलाओं से लगातार कहा जा रहा है कि वे किसी खास तरह के कपड़े पहनें या फिर ये कि वो उन कपड़ों को पहनना बंद कर दें. लगातार उनका यौन शोषण या दमन किया जाता है. हमें घर पर पीटा जाता है, स्कूल में दंड दिया जाता है और जो हम पहनते हैं, उसके लिए सार्वजनिक रूप से परेशान किया जाता है. '

'वर्षों पहले जब तालिबान ने मेरे समुदाय की महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया था, तब मैंने तालिबान के खिलाफ आवाज उठाई थी. और पिछले महीने मैंने भारत की लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ बात की. ये विराधाभास नहीं है. दोनों ही मामलों में महिलाओं को एक वस्तु के रूप में देखा जा रहा है. अगर कोई मुझे सिर ढकने के लिए मजबूर करता है तो मैं विरोध करूंगी. अगर कोई मुझे अपना दुपट्टा हटाने के लिए मजबूर करता है, तो भी मैं विरोध करूंगी.'

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बिकिनी या बुर्का- फैसला महिला का होना चाहिए

मलाला का कहना है कि एक महिला क्या पहनती है, ये पूर्ण रूप से उसका फैसला है. उन्होंने कहा, 'चाहे एक महिला बुर्का पहने या बिकिनी- उसे अपने लिए निर्णय लेने का अधिकार है.'

जींस वाली तस्वीर पर हुए विवाद पर भी बोलीं मलाला

मलाला की एक तस्वीर वायरल हुई थी जिसमें उन्होंने जींस और जैकेट पहना था. जींस पहनने को लेकर कई लोगों ने मलाला की आलोचना की थी कि वो ऑक्सफोर्ड जाकर इस्लाम की शिक्षा को भूल गई हैं.

मलाला ने इसे लेकर लिखा, 'कुछ लोग मुझे पारंपरिक सलवार कमीज से बाहर देखकर चौंक गए थे. उन्होंने मेरी आलोचना की कि मैं पश्चिम के पहनावे की तरफ मुड़ गई हूं. लोगों ने दावा किया कि मैंने पाकिस्तान और इस्लाम को छोड़ दिया है. दूसरों ने कहा कि जींस के साथ मेरा दुपट्टा उत्पीड़न का प्रतीक है और मुझे इसे हटा देना चाहिए. मैंने कुछ नहीं कहा. मुझे लगा कि मैं सभी की अपेक्षाओं पर तो खरी नहीं उतर सकती.

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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मलाला ने कहा, "सच्चाई यह है कि, मुझे अपने स्कार्फ बहुत पसंद हैं. जब मैं उन्हें पहनती हूं तो मैं अपनी संस्कृति के करीब महसूस करती हूं. मुझे अपने फूलों की पैटर्न वाले सलवार- कमीज पसंद हैं. मुझे अपनी जींस भी बहुत पसंद है. और मुझे अपने स्कार्फ पर गर्व है.' 

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