इजराइल में एक बार फिर बेंजामिन नेतन्याहू वापसी करने जा रहे हैं. इस बार हुए आम चुनाव के नतीजों में नेतन्याहू के दोबारा प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया है. वे पांचवी बार इजराइल के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालेंगे. इस बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर नेतन्याहू को बधाई दी. पीएम मोदी के ट्वीट का बेंजामिन नेतन्याहू ने जवाब भी दिया है. उन्होंने कहा, 'धन्यवाद मेरे दोस्त, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, मैं इजराइल और भारत के बीच निरंतर सहयोग की आशा करता हूं.'
नेतन्याहू को लगातार टक्कर दे रहे वर्तमान प्रधानमंत्री और उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी यैर लैपिड ने भी अपनी हार स्वीकार कर ली. बताया जा रहा है कि नेतन्याहू के गठबंधन को 120 में से 64 सीटें मिलने की बात कही जा रही है. टाइम्स ऑफ इजराइल की रिपोर्ट के मुताबिक लैपिड ने नेतन्याहू को फोन कर जीत की बधाई भी दी. लैपिड ने नेतन्याहू से कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय के सभी विभागों को सत्ता व्यवस्थित तरीके से ट्रांसफर करने की तैयारी के निर्देश दिए हैं.
दरअसल, इजराइल की संसद में 120 सीटें हैं. नेतन्याहू की लिकुड पार्टी और उसके सहयोगियों के इनमें से 64 सीटें जीतने का अनुमान है. बता दें कि इजराइल की राजनीति पूरी तरह से गठबंधन पर आधारित है. यहां कोई भी एक पार्टी संसद में कभी बहुमत हासिल नहीं कर पाती है. इसलिए सरकार बनाने के लिए दूसरे दलों की मदद लेना ही पड़ता है.
नतीजे पूरे होने से पहले ही नेतन्याहू ने लिकुड पार्टी के चुनाव मुख्यालय में अपने समर्थकों को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि हम एक बहुत बड़ी जीत के कगार पर हैं. इजराइल में 2019 के बाद से ही राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है. यहां सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे नेतन्याहू को रिश्वेतखोरी और धोखाधड़ी के आरोप लगने के बाद अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. इस चुनाव में नेतन्याहू के मुख्य प्रतिद्वंद्वी यैर लैपिड थे. इन्होंने ही नेतन्याहू को सत्ता से हटाने के लिए पूरी बिसात बिछाई थी.
इजरायल में कैसे होता है चुनाव?
120 सीटों वाले इजरायल चुनाव में जिस भी पार्टी के पक्ष में वोटर टर्नआउट ज्यादा रहता है, उसकी जीतने की उम्मीद ज्यादा बन जाती है. असल में इजरायल में जनता कभी भी किसी उम्मीदवार के लिए वोट नहीं करती है, उनकी तरफ से पार्टी को वोट दिया जाता है. अगर संसद में किसी को भी सीट चाहिए होती है तो नेशनल वोट का कम से कम 3.25% चाहिए ही होता है. यानी कि इजरायल में प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन वाली चुनावी व्यवस्था चलती है, जहां पर जिस पार्टी को जितना वोट मिलेगा, उसी के हिसाब से उसे सीटें भी मिलेंगी.
इजरायल में बनी हुई थी अस्थिरता
इजरायल में लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई थी. इसकी शुरुआत साल 2018 में हो गई थी जब बहुमत से एक सीट कम होने की वजह से मध्यावधि चुनाव करवाया गया था. उस चुनाव में नेतन्याहू को तो बहुमत नहीं मिला, लेकिन वे दूसरे दूलों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश करते रहे. जब वो गठबंधन नहीं बन पाया, तब नेतन्याहू ने बड़ा फैसला लेते हुए फिर चुनाव करवाने का ऐलान कर दिया. इजरायली सेना के पूर्व प्रमुख बेनी गैंट्स को सरकार बनाने का मौका दिया जा सकता था, लेकिन उसकी जगह फिर आम चुनाव का ऐलान कर दिया गया.
बार-बार होते रहे चुनाव
17 सितंबर 2019 को इजरायल में फिर चुनाव हुए, टक्कर बराबर की रही और हमेशा की तरह किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. तीसरी बार चुनाव का ऐलान कर दिया गया. अब आखिरी बार 23 मार्च, 2021 को इजरायल में चुनाव हुए. मुकाबला बराबर का रहा, लेकिन अंत में सरकार बनाने में यैर लैपिड सफल हो गए. नेतन्याहू के खिलाफ वाले दलों का गुट साथ आ गया और सरकार बनाई गई. लेकिन गठबंधन पूरे एक साल भी नहीं चल सका और फिर देश को चुनाव में झोंक दिया गया.