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Israel Hamas War: खुद को इस्लामिक दुनिया का मुखिया समझने वाले एर्दोगन इजरायल पर नरम क्यों पड़ गए?

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन अपनी इस्लामवादी नीतियों के लिए जाने जाते हैं. वो फिलिस्तीन मुद्दों के बड़े रक्षकों में से एक माने जाते हैं लेकिन अब उनकी इस छवि और इजरायल को लेकर उनके रुख में बड़ा बदलाव आ रहा है. एर्दोगन इजरायल-हमास के बीच लड़ाई की शुरुआत से ही शांति की स्थापना के लिए मध्यस्थता की पेशकश कर रहे हैं.

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तुर्की इजरायल के साथ अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश में लगा हुआ है
तुर्की इजरायल के साथ अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश में लगा हुआ है

खुद को इस्लामिक दुनिया के मुखिया की तरह पेश करने वाले तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने इजरायल-हमास जंग में जो रुख अपनाया है, वो कई विश्लेषकों के लिए हैरान करने वाला है. तुर्की ने शनिवार को दोनों पक्षों में जंग की शुरुआत के बाद से ही बेहद सधी हुई प्रतिक्रिया दी है और वो लगातार दोनों पक्षों के बीच शांति की स्थापना के लिए मध्यस्थता की बात कर रहा है. हमेशा से फिलिस्तीन के समर्थक रहे एर्दोगन ने फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से बात की है, साथ ही इजरायल के राष्ट्रपति इजाक हर्गोज को भी उन्होंने फोन मिलाकर कहा है कि तुर्की शांति स्थापित करने के लिए पूरी कोशिश कर रहा है.

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तुर्की ने हमास के हमले के बाद शनिवार को एक बयान में समस्या के समाधान के लिए 'टू स्टेट रिजोल्यूशन', यानी फिलिस्तीनियों के लिए एक अलग देश की मांग करते हुए कहा कि दोनों पक्षों में तनाव को कम करने के लिए वह मध्यस्थता को तैयार है.

तुर्की के विदेश मंत्रालय ने इजरायल-हमास की जंग में स्पष्ट रूप से तटस्थ नीति अपनाते हुए न तो इजरायल और न ही हमास पर कोई उंगली उठाई बल्कि इस बात पर जोर दिया कि तुर्की जीवन की हानि की कड़ी निंदा करता है. विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में आगे कहा कि तुर्की इस मुद्दे के समाधान में मदद करने के लिए सभी संबंधित पक्षों के संपर्क में है.

एर्दोगन की बार-बार मध्यस्थता की पेशकश

रविवार को राष्ट्रपति एर्दोगन ने भी कहा कि तुर्की इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रही लड़ाई को रोकने के लिए राजनयिक प्रयासों को लेकर प्रतिबद्ध है. एर्दोगन ने इस बात को दोहराया कि क्षेत्रीय शांति हासिल करने के लिए टू स्टेट रिजोल्यूशन एकमात्र तरीका है.

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इस्तांबूल में बोलते हुए एर्दोगन ने दोनों पक्षों से संघर्ष खत्म करने की अपील की और कहा कि इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष मध्य-पूर्व की सभी समस्याओं की जड़ है. उन्होंने कहा, 'जब तक इस समस्या का न्यायपूर्ण तरीके समाधान नहीं होता, हमारा क्षेत्र शांति हासिल करने से दूर ही रहेगा.'

मंगलवार को एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटरेस और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन कर एक बार फिर कहा कि तुर्की इजरायल और फिलिस्तीन के बीच मध्यस्थता के लिए तैयार है. तुर्की की तरफ से जारी बयान में कहा गया, 'गुटरेस और रूसी राष्ट्रपति पुतिन से फोन पर बातचीत में एर्दोगन ने तुर्की की संभावित मध्यस्थता को लेकर बात की.'

Photo- Reuters

ऑस्ट्रियाई चांसलर कार्ल नेहमर के साथ राजधानी अंकारा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एर्दोगन ने कहा, 'मैं क्षेत्र के नेताओं से बात कर रहा हूं और देख रहा हूं कि कैसे हम इस जंग में मध्यस्थता कर सकते हैं और इसे रोक सकते हैं. सच कहूं तो मुझे इस बात को लेकर बहुत चिंता हो रही है कि यह युद्ध एक या दो हफ्तों में नहीं रुकने वाला. इसलिए हम शांति के अपने प्रयास जारी रखे हुए हैं.'

हमास नेता को तुर्की आमंत्रित करने वाले एर्दोगन अब कैसे बदल गए?

तुर्की फिलिस्तीनियों का घोर समर्थक रहा है. पूर्व में तुर्की ने हमास के नेताओं की मेजबानी भी की थी लेकिन अब तुर्की के इस रुख में बदलाव आ रहा है. सालों की दुश्मनी को भुलाकर अब तुर्की इजरायल के साथ अपने संबंधों को सामान्य करने की कोशिश कर रहा है. एर्दोगन ने कहा था कि ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने के लिए अक्टूबर या नवंबर के महीने में इजरायली पीएम नेतन्याहू तुर्की के दौरे पर आएंगे.

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एक अमेरिकी न्यूज वेबसाइट से बात करते हुए तुर्की के एक पूर्व राजनयिक ने अपने देश के रुख का तारीफ की है. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा, 'तुर्की ने शांत तरीके से सधी हुई प्रतिक्रिया दी है कि वह जंग को खत्म करने में एक रचनात्मक भूमिका निभा सकता है.'

एर्दोगन तुर्की में अपनी इस्लामवादी नीतियों के लिए जाने जाते हैं और इस तरह के मुद्दों पर अक्सर भड़काऊ इस्लामवादी टिप्पणी करते हैं लेकिन इस बार उन्होंने इससे परहेज किया है जिसे लेकर तुर्की के पूर्व राजनयिक ने कहा, 'एर्दोगन ने भड़काऊ इस्लामवादी बयानबाजी से परहेज किया है. इसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए.'

अरब में एर्दोगन को फिलिस्तीनी मुद्दों के रक्षक के रूप में जाना जाता है लेकिन उनकी इस प्रतिष्ठा में अब गिरावट देखी जा रही है. इसकी बड़ी वजह इजरायली नेताओं से एर्दोगन का हालिया मुलाकातें हैं. पिछले साल एर्दोगन राजधानी अंकारा में इजरायली राष्ट्रपति हर्गोज से मिले थे. पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान  एर्दोगन इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू से मिले थे.

हमास समर्थक तुर्की अब हो गया हमास के खिलाफ

इजरायल लंबे से से एर्दोगन पर हमास नेताओं और उनके गुर्गों को पनाहगाह मुहैया कराने का आरोप लगाता रहा है. मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात (UAE)की सरकारें भी इजरायल के इस आरोप का साथ देती आई हैं. तुर्की हमास को आतंकवादी संगठन नहीं मानता है. जुलाई के महीने में जब फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास तुर्की आए थे तब हमास के नेता इस्माइल हानियेह भी उनके साथ एर्दोगन से मिले थे. मुलाकात का मकसद दोनों नेताओं के बीच मतभेदों को दूर करना था.

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हमास के नेता इस्माइल हानियेह (Photo- Reuters)

लेकिन जब तुर्की ने देखा कि खाड़ी के देश अब्राहम समझौते के तहत इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य कर रहे हैं, तब उसे महसूस हुआ कि वो इजरायल के साथ दुश्मनी पालकर अलग-थलग पड़ जाएगा. इजरायली मीडिया में कई ऐसी खबरें छपी हैं जिसमें नाम न छापने की शर्त पर इजरायली अधिकारियों ने बताया है कि पिछले साल तुर्की ने कथित तौर पर दर्जनों हमास लड़ाकों को देश से निकाल दिया. इनमें से कुछ लड़ाके हमास की सैन्य शाखा से भी जुड़े थे.

तुर्की के पूर्व राजनयिक इस बात को स्वीकार करते हैं कि तुर्की और इजरायल के बीच विश्वास की कमी बनी हुई है जो तुर्की को एक सफल मध्यस्थ बनने से रोक रहा है. 

उन्होंने कहा, 'हमास के लिए भी तुर्की के हालिया कदमों को देखते हुए तुर्की अब पहले जैसा भरोसेमंद साझेदार नहीं रहा है. कट्टरपंथी भी उसे एक सहयोगी के रूप में देख सकते हैं.'

लड़ाई बढ़ने से तुर्की को नुकसान

किसी भी तरह से अगर लड़ाई बढ़ती है और ईरान इसमें शामिल होता है तो यह सभी क्षेत्रीय देशों के लिए विनाशकारी साबित होगा. तुर्की के लिए लड़ाई का बढ़ना अच्छा नहीं होगा क्योंकि इससे उसकी अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा. तुर्की की अर्थव्यवस्था पहले से ही लड़खड़ा रही है और एर्दोगन इसे सुधारने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. वो नहीं चाहते कि संघर्ष बढ़े और तुर्की की अर्थव्यवस्था और खराब हो.

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मिडिल ईस्ट इंस्टिट्यूट में तुर्की प्रोग्राम के निदेशक गोनुल टोल का कहना है कि अगर इजरायल ईरान के खिलाफ युद्ध छेड़ता है तुर्की को दोनों पक्षों को साधने का असंभव काम करना पड़ेगा जैसा कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध में कर रहा है. 

तुर्की मामलों के जानकार इजरायली अमेरिकी शिक्षाविद् लुइस फिशमैन का मानना ​​है कि अंकारा की मध्यस्थता की पेशकश इस समय कोई महत्व नहीं रखती है.

फिशमैन ने कहा, 'तुर्की को यह समझने की जरूरत है कि कुछ भी पहले जैसा नहीं होगा. यह लगभग तय है कि इजरायल तुर्की पर दबाव डालेगा कि वह हमास को तुर्की में आश्रय न दे और उनकी आवाजाही को प्रतिबंधित करे. अगर तुर्की को इजरायल के साथ रिश्ते बनाकर रखने हैं तो तुर्की हमास के साथ अपनी भूमिका का पुनर्मूल्यांकन करेगा.'

फिशमैन का कहना है कि अगर एर्दोगन हमास लड़ाकों द्वारा बंधक बनाए गए इजरायली लोगों के प्रति सहानुभूति दिखाते हैं या उन्हें मुक्त करने की आवश्यकता पर बल देते हैं, तो यह हैरानी की बात होगी. एर्दोगन को इस तरह का रुख अपनाने में अभी काफी वक्त लगेगा.

तुर्की की मध्यस्थता की पेशकश बेतुकी

तुर्की मामलों के अनुभवी विश्लेषक और सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस में राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय नीति के वरिष्ठ फेलो एलन माकोवस्की तुर्की की मध्यस्थता को लेकर कम आशावादी हैं.

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माकोवस्की ने कहा, 'यह सोचना कि तुर्की इस संकट में मध्यस्थता कर सकता है या इजरायल उसकी मध्यस्थता स्वीकार करेगा, बेतुका है. एर्दोगन लंबे समय से हमास के प्रति सहानुभूति रखते आए हैं और यहां तक ​​कि हमास के हमले को भी वह आतंकवादी हमला करार देने में असमर्थ रहा है. इसके साथ ही तुर्की ने हमास से यह भी आह्वान नहीं किया कि वो इजरायल के बंधक बनाए गए नागरिकों को रिहा कर दे.'
माकोवस्की कहते हैं कि इजरायल की नीति बदला लेने की रही है और हमास के हमले के बाद वो उससे बदला ले रहा है. उसे मध्यस्थता में उतनी दिलचस्पी नहीं है जितनी तुर्की को है.

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