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ईरान-इजरायल के बीच बुरा फंसा ये मुस्लिम देश, अपने ही राजा को 'गद्दार' कह रहे लोग

इजरायल और ईरान के बीच चल रहे तनाव ने अरब देश जॉर्डन को धर्मसंकट में डाल दिया है. खबर आई थी कि ईरान की तरफ से इजरायल पर दागी गई मिसाइलों और ड्रोनों को नष्ट करने में जॉर्डन ने भी मदद की थी जिसके बाद देश में इसका काफी विरोध हुआ. इसे देखते हुए जॉर्डन सरकार को इजरायल के लिए भी कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा.

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जॉर्डन में नियमित रूप से फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शन हो रहे हैं (Photo- Reuters)
जॉर्डन में नियमित रूप से फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शन हो रहे हैं (Photo- Reuters)

इजरायल पर ईरान के हमले और लड़ाई के और बढ़ने की आशंका ने जॉर्डन को खतरे में डाल दिया है. जॉर्डन पश्चिमी देशों का एक प्रमुख सहयोगी और खाड़ी देशों के लिए सुरक्षा के नजरिए से अहम माना जाने वाला अरब देश है.

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जब ईरान ने शनिवार रात को इजरायल पर मिसाइलों और ड्रोनों से ताबड़तोड़ हमले किए तब जॉर्डन ने अपनी राजधानी अम्मान के ऊपर से उड़ने वाले कुछ मिसाइलों और ड्रोनों को मार गिराने में मदद की. ईरानी हमले को नाकाम करने में मदद करने को लेकर जॉर्डन के विदेश मंत्री अयमान सफादी ने कहा कि उनके देश ने अपने क्षेत्र से गुजर रहे मिसाइलों और ड्रोनों को एक खतरे के रूप में देखा और मार गिराया.

इस खबर के सामने आते ही जॉर्डन में सोशल मीडिया पर लोग जॉर्डन की सरकार की आलोचना करने लगे जिसे देखते हुए अयमान सफीदी ने संतुलन बनाने के मकसद से तुरंत कहा कि अगर इजरायल ईरान पर हमला करने के लिए जॉर्डन के हवाई क्षेत्र का उपयोग करता है तब भी जॉर्डन ऐसा ही करेगा.

जॉर्डन में सरकार पर भड़के लोग

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सफीदी के बयान के बाद भी सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ और लोगों ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय को 'गद्दार' कहना शुरू कर दिया. ईरान समर्थक अकाउंट्स की तरफ से भी मीम शेयर किए जाने लगे जिसमें राजा को इजरायली डिफेंस फोर्सेज (IDF) के यूनिफॉर्म में दिखाया गया.

ईरान के हमले के बाद जॉर्डन के अधिकारियों ने ईरानी राजदूत को भी तलब किया था जिसे लेकर सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा और भड़क गया.

जॉर्डन में बहुत समय से हमास और फिलिस्तीनियों के समर्थन में विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है. अक्टूबर में हमास के हमले के बाद गाजा में चल रहे इजरायली हमले, जिसमें हजारों लोग मारे गए हैं, को लेकर जॉर्डन के लोगों में गुस्सा है जो कि सड़कों पर नजर आया है.

हमास और फिलिस्तीन समर्थक आंदोलनों के दौरान 'पूरा जॉर्डन हमास है' और 'यह जॉर्डन के क्रोध का दिन है' जैसे नारे लगाए गए जिसे सुरक्षा अधिकारियों ने सख्ती से रोका और कई गिरफ्तारियां कीं.

इधर, ईरान समर्थित इराकी मिलिशिया नेता अबू अली अल-अस्करी ने भी जॉर्डन अधिकारियों की परेशानियां बढ़ा रखी हैं. अल-अस्करी ने कसम खाई है कि वो अपने 1,200 हथियारबंद लड़ाकों के साथ जॉर्डन जाकर इजरायल में मार्च करेंगे.

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जॉर्डन को लेकर यूएई, सऊदी में बढ़ी चिंता

इस सबने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब दोनों में जॉर्डन की स्थिरता के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं. सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल-नाहयान दोनों ने किंग अब्दुल्ला को अपना समर्थन देने की पेशकश की है.

सऊदी शाही दरबार के करीबी सऊदी टिप्पणीकार अली शिहाबी ने कहा, 'सऊदी अरब के लिए, जॉर्डन लेवंत क्षेत्र में आगे ईरानी विस्तार के खिलाफ एक ढाल है.'

यह सब जॉर्डन के लिए एक पहेली बन गया है. जॉर्डन की आबादी लगभग 1 करोड़ 10 लाख है जिनमें से बहुत से लोग फिलिस्तीनी शरणार्थियों के वंशज हैं, जो इराक, इजरायल, सऊदी अरब, सीरिया और वेस्ट बैंक के फिलिस्तीनी क्षेत्र में बसे हुए हैं.

इजरायल और ईरान के बीच फंस गया है जॉर्डन

जॉर्डन के अधिकारियों को लगता है कि वह इजरायल और ईरान के बीच फंस कर रह गए हैं. एक तरफ इजरायली सरकार है जिसे वो खुले तौर पर क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बताते हैं और दूसरी तरफ ईरानी शासन है जो अपने प्रभाव और पहुंच का विस्तार करने के लिए गाजा में चल रहे युद्ध का फायदा उठाने की कोशिश में लगा है.

जॉर्डन एकमात्र अरब देश नहीं है जो घरेलू स्तर पर बढ़ती फिलिस्तीन समर्थक भावना के साथ ईरान का मुकाबला करने के लिए संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है.

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सऊदी अरब और यूएई भी इसी मुश्किल से जूझ रहे हैं. इजरायल पर ईरानी हमले के बाद खबर आई थी कि मिसाइलों और ड्रोनों को नाकाम करने में सऊदी अरब ने भी साथ दिया था. लेकिन सऊदी ने इन सभी खबरों को खारिज कर दिया.

सऊदी और यूएई ने कहा है कि दोनों ही शनिवार के हमले के बाद क्षेत्र की राजनीतिक स्थिरता को लेकर चिंतित हैं. हालांकि, दोनों में से किसी ने भी हमले के लिए ईरान की स्पष्ट रूप से निंदा नहीं की.

जॉर्डन के विदेश मंत्री नेतन्याहू को लेकर क्या बोले?

जॉर्डन के विदेश मंत्री सफादी ने रविवार को सरकारी स्वामित्व वाले ममलका (किंगडम) टीवी से बात करते हुए कहा, 'ईरान को हमारा संदेश यह है कि आपकी समस्या इजरायल के साथ है और जॉर्डन का अपमान करने का कोई भी प्रयास स्वीकार नहीं किया जाएगा, उसे स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया जाएगा.'

मंत्री ने ईरान पर बात करने के साथ ही इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए भी उतने ही सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया. मंत्री ने आरोप लगाया कि नेतन्याहू ने ईरान के साथ टकराव को भड़काने, दुनिया का ध्यान भटकाने और गाजा में युद्ध समाप्त करने को लेकर बढ़ते अमेरिकी दबाव को खत्म करने के लिए 1 अप्रैल को सीरिया में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर हमला किया.

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उन्होंने कहा, 'क्षेत्र में तनाव का मूल कारण गाजा में इजरायल की आक्रामकता और शांति की संभावनाओं को खत्म करने के लिए उठाए गए कदम हैं.'

किंग अब्दुल्ला और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की बातचीत

इधर, किंग अब्दुल्ला ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से बात की है. रविवार को बातचीत में जॉर्डन किंग ने अमेरिकी राष्ट्रपति से कहा कि ईरानी हमले के जवाब में इजरायल के पलटवार से क्षेत्र में संघर्ष बढ़ेगा. किंग ने एक बयान में कहा, 'जॉर्डन अपनी जमीन पर युद्ध की अनुमति नहीं देगा.'

देश में इजरायल विरोधी भावना ने बढ़ाई किंग अब्दुल्ला की मुश्किलें

गाजा में इजरायल के युद्ध को छह महीने हो चुके हैं और अब भी यह युद्ध जारी है. इस युद्ध के बीच जॉर्डन को संतुलन बनाए रखने में बेहद मुश्किलें आ रही हैं.

देश में बढ़ती इजरायल विरोधी भावना को देखते हुए जॉर्डन के अधिकारियों को इजरायली दूतावास के बाहर नियमित प्रदर्शन की अनुमति मिल गई है. विरोध को देखते हुए जॉर्डन ने नवंबर से इजरायली राजदूत को वापस देश ने आने की अनुमति भी नहीं दी है. देश में मांग तेज है कि इजरायल के साथ संबंध तोड़ लिए जाएं लेकिन जॉर्डन सरकार ने इस मांग का सख्ती से विरोध किया है.

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जॉर्डन अमेरिका और यूरोपीय संघ से अरबों डॉलर की सहायता पर निर्भर है. पश्चिमी देश लंबे समय से उसे सुरक्षा सहयोग दे रहे हैं. इन सभी बातों को देखते हुए जॉर्डन चाहकर भी इजरायल से दूर नहीं हो सकता. 

ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के चीफ इमर्जिंग मार्केट्स अर्थशास्त्री जियाद दाउद ने कहा, 'जॉर्डन की अर्थव्यवस्था दूसरे देशों की तरफ से मिलने वाले दान पर चलती है.'

जॉर्डन को 1989 से निरंतर सहायता मिलती रही है, हर साल अमेरिका उसे 1.45 अरब डॉलर देता है. इसके अलावा तेल समृद्ध खाड़ी देश भी जॉर्डन को भारी मात्रा में वित्तिय मदद करते हैं. जॉर्डन तेल समृद्ध खाड़ी देशों से समर्थन पाने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है.

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