
मिडिल ईस्ट पिछले कई दशकों से अशांति की चपेट में रहा है. यहां अस्थिरता का एक लंबा इतिहास है. इस क्षेत्र में कई युद्ध और गृहयुद्ध हुए, जिसने क्षेत्र को एक नया आकार दिया. अक्टूबर 2023 में शुरू हुआ इजरायल हमास की जंग अब मानो एक दलदल की तरह काम कर रहा है, जिसने हमास के कई प्रमुख नेताओं और हिज्बुल्लाह के प्रमुख समेत ईरान के सीनियर कमांडरों को अपने अंदर समा लिया.
अब इसमें ईरान कूद पड़ा है और यह क्षेत्र एक बार फिर भयानक वॉर की कगार पर है. इजरायल पर बीते दिन के ईरानी मिसाइल हमले के बाद इजरायल जवाबी हमले की योजना बना रहा है, और पीएम नेतन्याहू ने ईरान को कीमत चुकाने की चेतावनी भी दी है. अगर ईरान-इजरायल में कोई बड़ी जंग होती है, तो अमेरिका को भी इसमें कूदना पड़ सकता है.
हालांकि, हमास के साथ जंग के बीच ऐसा पहली बार नहीं है कि इजरायल को ईरानी हमले का सामना करना पड़ा है. इससे पहले अप्रैल महीने में ईरान ने एक साथ दर्जनों मिसाइलों से इजरायल पर हमला बोल दिया था. हालांकि, तब भी इजरायल को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ और हालिया हमले को भी उसकी सेना ने बेअसर कर दिया.
यह वो समय था जब लेबनान से हिज्बुल्लाह और यमन से हूती लड़ाके ईरान के समर्थन में थे. सीरियाई सेना से भी ईरान को समर्थन मिला था. दूसरी ओर, इजरायल की रक्षा में उसके पश्चिमी सहयोगियों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस) के साथ-साथ उसके अरब पड़ोसियों, जॉर्डन, सऊदी अरब और यूएई ने भी मदद की.
अब जबकि जंग एक नया रूप अख्तियार करने की राह पर है, सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर मिडिल ईस्ट की इस जंग में कौन, किसके साथ खड़ा है?
इजरायल
अक्टूबर 2023 में हमास के हमले के मिसाइल हमले के बाद से इजरायल आज बहु-मोर्चे पर जंग लड़ रहा है. उसे गाजा पट्टी में हमास, लेबनान में हिजबुल्लाह और यमन में हूती विद्रोहियों का सामना करना पड़ रहा है. इजरायल ने हमास को मिटाने की कसम के साथ पहले गाजा को तबाह कर दिया, फिर लेबनान में तबाही मचाई और अब उसका सीधा टकराव ईरान के साथ संभावित रूप से हो सकता है. साथ ही उसने ईरान समर्थित मिलिशियाओं को कड़ी कार्रवाई की चेतावनी भी दी है.
इजरायल के सहयोगी: अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जॉर्डन, सऊदी अरब
विरोधी: हूती, हमास, ईरान, हिजबुल्लाह
ईरान
ईरान अब तक इजरायल के साथ सीधी जंग में नहीं आया है. वे अपने प्रॉक्सीज के कंधों पर बंदूक रखकर चला रहे थे, लेकिन बीते दिनों उसके प्रॉक्सीज के बेअसर किए जाने के बाद से ईरान अब सीधी टक्कर में आ गया है. ईरान के लिए भी जंग में कूदने की एक मजबूरी है, जहां उसे भी इजरायल की तरह अपने अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. कुछ महीने पहले इजरायल ने सीरिया में ईरानी दूतावास पर हमला कर दिया था, जिससे ईरान आगबबूला हो गया था.
इस हमले में उसके कई सीनियर कमांडर और अधिकारी मारे गए थे. इनके अलावा हिज्बुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह को भी इजरायल ने मार दिया और फिर ईरान में हमास के पॉलिटिकल लीडर इस्माइल हानिया की भी मौत भी मिस्ट्री बनी है, जिसके लिए ईरान इजरायल को जिम्मेदार मानता है. ईरान ने इजरायल को घेरने के लिए धीरे-धीरे क्षेत्र के आसपास अपने अधिक से अधिक सहयोगियों को संगठित किया है.
ईरान के सहयोगी: एक्सिस ऑफ रजिस्टेंस, हमास
विरोधी: इजरायल, अमेरिका, सऊदी अरब
सऊदी अरब
इजरायल हमास की जंग ने किसी का बड़ा रणनीतिक नुकसान किया है तो वो है सऊदी अरब. सऊदी शासन इजराल के साथ शांति कायम करने की राह पर था और पीस एग्रिमेंट्स के लिए बातचीत लगभग आखिरी चरण में पहुंच रही थी. इसी बीच हमास ने इजरायल पर धावा बोल दिया और सऊदी का पीस प्लान धरा का धरा रह गया.
अप्रैल में ईरानी मिसाइल हमले से पहले सऊदी ने ही मुखबीरी की थी. यह सब तब हुआ जब सऊदी और ईरान भी शांति स्थापित करने की दिशा में समझौता कर रहा था. सऊदी ने एक तरफ कैमरे पर इजरायली हमले की निंदा भी की है, तो पर्दे के पीछे उसे समर्थन भी दिया है.
कतर
अपने छोटे आकार के बावजूद, कतर इजरायल और हमास के बीच संघर्ष में मध्यस्थता करने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है. पिछले साल नवंबर में हमास द्वारा इजरायली बंधकों की रिहाई के लिए एक समझौते की मध्यस्थता की थी. हालांकि, कतर ने मारे गए हमास नेता इस्माइल हनीया को भी शरण दी और ईरान के साथ उसके सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, जो इजरायल को नापसंद है. साथ ही क्षेत्र में सबसे ज्यादा अमेरकी सुविधा यहां है.
जॉर्डन
इस साल जनवरी में ईरान समर्थित मिलिशिया द्वारा देश में एक अमेरिकी सेना के अड्डे पर हमला किए जाने के बाद जॉर्डन भी बढ़ते संघर्ष के निशाने पर आ गया है, जिसमें तीन सैनिक मारे गए थे. सऊदी अरब की तरह, जॉर्डन भी एक गंभीर पॉलिटिकल क्राइसिस में है.
जॉर्डन ने गाजा को सहायता भेजी है, लेकिन इसने इजरायल के साथ राजनयिक संबंध भी बनाए रखे हैं. जॉर्डन और इजरायल के बीच शांति समझौता हो रखा है. अप्रैल में, उसने इजरायल पर दागी गई मिसाइलों को बेअसर करने में सबसे आगे था. मिस्र और इजरायल के बीच 1979 में शांति समझौते हुए थे लेकिन बाद में बात बिगड़ गई, और रिश्ते फिलहाल तनावपूर्ण हैं. मिस्र ने किसी भी पक्ष का स्पष्ट रूप से समर्थन नहीं किया है. मिस्र ने गाजा के लिए भी अपने रास्ते बंद कर रखे हैं.
सीरिया और इराक
सीरिया और इराक ईरानी प्रॉक्सीज का ही एक ठिकाना बना हुआ है, जो अक्सर अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाते हैं. कई इराकी सशस्त्र समूहों ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका इजरायल पर ईरानी हमलों का जवाब देता है या अगर इजरायल तेहरान के खिलाफ इराकी हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करता है, तो वे इराक में अमेरिकी ठिकानों पर हमले करेंगे.
तुर्की
इजरायल-हमास की जंग के बाद तुर्की भी बड़ी दुविधा में फंस गया है. मुस्लिम वर्ल्ड का नेतृत्व करने की चाहत में तुर्की के राष्ट्रपति ने अपने रवैये में बदलाव किया और उसके लिए इजरायल की आलोचना करना मजबूरी बन गई. राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन इजरायली हमले के एक मुखर विरोधी रहे.
इस बीच अमेरिका के साथ भी उनका टशन देखा गया. खासतौर पर गाजा पर इजरायली अटैक के बाद से तुर्की ने फिलिस्तीनियों की बढ़-चढ़ कर मदद की है. तुर्की और इजरायल के बीच तनाव इस साल की शुरुआत में तब सामने आए जब अंकारा ने इजरायल की जासूसी एजेंसी मोसाद के 30 सदस्यों को गिरफ्तार करने का दावा किया था.