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इजरायल में PM नेतन्याहू के किस कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरा हुजूम?

इजरायल सरकार एक ऐसा कानून लेकर आई है, जिसका मकसद देश के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को ्अंजाम देने वालों या फिर फिलीस्तीन के संगठनों से फंडिंग लेने वाले लोगों की नागरिकता छीनना है. इसके साथ ही उन्हें वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी के इलाकों में डिपोर्ट करने का प्रावधान है.

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इजरायल में प्रदर्शन
इजरायल में प्रदर्शन

इजरायल में लाखों लोग अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. प्रधानमंत्री नेतन्याहू की सरकार के न्यायिक सुधारों (Judicial Reforms) के खिलाफ हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर हैं. प्रदर्शनकारियों ने नेतन्याहू सरकार पर लोकतांत्रिक शासन को खतरे में डालने का आरोप लगाया है. प्रधानमंत्री नेतन्याहू के दोबारा सत्ता में लौटने के बाद से ही विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, जो अब जोरों पर है. 

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सड़को पर क्यों उतरी जनता?

इजरायल सरकार एक ऐसा कानून लेकर आई है, जिसका मकसद देश के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को ्अंजाम देने वालों या फिर फिलीस्तीन के संगठनों से फंडिंग लेने वाले लोगों की नागरिकता छीनना है. इसके साथ ही उन्हें वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी के इलाकों में डिपोर्ट करने का प्रावधान है. यह कानून इजरायल में रहने वाले अरब मूल के मुसलमानों पर भी लागू होगा, जिन्हें फिलीस्तीन का समर्थक माना जाता है. 

यह कानून इजरायल की संसद में पास हो चुका है, जिसमें कुल 120 सदस्यों में से 104 सदस्यों ने वोटिंग में हिस्सा लिया. इनमें से 94 सदस्यों ने इस कानून के पक्ष में वोट किया जबकि 10 सदस्यों ने इस कानून का विरोध किया. 

इजरायल को इस कानून की जरूरत क्यों पड़ी?

इजरायल और फिलीस्तीन की पूरी लड़ाई पूर्वी यरुशलम को लेकर है. इजरायल का कहना है कि यरुशलम उसकी राजधानी है जबकि फिलीस्तीनी पूर्वी यरुशलम को भविष्य के फिलीस्तीनी देश की राजधानी मानता है. 

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इजरायल का मानना है कि उनके देस में रहने वाले अरब मुस्लिम फिलीस्तीन की अथॉरिटी से फंडिंग लेते हैं और इजरायल के खिलाफ काम करते हैं और इन्हीं लोगों को रोकने के लिए इजरायल ये कानून लाया है. वेस्ट बैंक के 40 फीसदी से ज्यादा इलाके पर इजरायल का ही नियंत्रण है और ये आतंकवादी अपनी नागरिकता गंवाने के बाद यहां पर भी नहीं रह सकेंगे. इन्हें वेस्ट बैंक के इलाकों में छोड़ दिया जाएगा, जहां फिलिस्तीन की अथॉरिटी का नियंत्रण है या फिर इन्हें गाजा पट्टी में डिपोर्ट कर दिया जाएगा, जहां आतंकवादी संगठन 'हमास' का नियंत्रण है.

बता दें कि इजारायल की कुल आबादी लगभग 95 लाख है, जिनमें 81 फीसीद यहूदी और 14 फीसदी मुस्लिम हैं. इन्हीं मुसलमानों को इस कानून के दायरे में रखा गया है यानी इजरायल में रहने वाले ये 13 लाख मुसलमान अगर फिलीस्तीन की मदद करते हैं या उससे मदद लेते हैं तो उनकी नागरिकता छीन ली जाएगा और उन्हें डिपोर्ट कर दिया जाएगा. 

 

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