इजरायल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर हैं जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ. सोमवार को वो अबू धाबी में यूएई के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जाएद से मिले. बेनेट संयुक्त अरब अमीरात का दौरा करने वाले पहले इजरायली प्रधानमंत्री हैं. ईरान से तनाव के बीच इजरायली प्रधानमंत्री के यूएई दौरे को बेहद अहम माना जा रहा है.
अबू धाबी में इजरायली राजदूत आमिर हायक ने कहा कि बेनेट और शेख मोहम्मद के बीच ईरान का मुद्दा जरूर उठेगा. इजरायली अखबार हायोम ने अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि इस बात की पूरी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नफ्ताली, शेख मोहम्मद से चर्चा के दौरान ईरान समर्थित मिलिशिया और ड्रोन का मुद्दा जरूर उठाएंगे. हालांकि, हायक ने यह भी कहा कि इजरायली प्रधानमंत्री इसके अलावा भी कई अन्य मुद्दों पर क्राउन प्रिंस से बात करेंगे.
ताजा घटनाक्रमों को देखते हुए ऐसा कहा जा रहा है कि संयुक्त अरब अमीरात अपने सहयोगी अमेरिका, नए मित्र इजरायल और पुराने विरोधी ईरान के बीच एक राजनयिक जोखिम ले रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि यूएई ऐसे क्षेत्रीय संघर्षों से बचने का प्रयास कर रहा है जो उसकी व्यापार और पर्यटन महत्वाकांक्षाओं को चोट पहुंचा सकता है.
संयुक्त अरब अमीरात में इसी हफ्ते एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल भी आ रहा है. माना जा रहा है कि इस दौरान अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल यूएई की कंपनियों को ईरान पर लगे प्रतिबंधों का पालन न करने पर चेतावनी दे सकता है. यूएई ने संबंधों को सुधारने और तनाव को कम करने के लिए पिछले सप्ताह एक वरिष्ठ अधिकारी को तेहरान (ईरान की राजधानी) भेजा था.
यूएई के अधिकारियों, विश्लेषकों और क्षेत्रीय राजनयिकों के अनुसार, इस तरह की कूटनीति यूएई की विदेश नीति में बदलाव का प्रतीक है. यूएई जो पिछले एक दशक में यमन, लीबिया जैसे देशों के लंबे संघर्षों में शामिल रहा, अब सैन्य ताकत प्रदर्शित करने से पीछे हट रहा है.
संयुक्त अरब अमीरात के वरिष्ठ अधिकारी अनवर गर्गश ने गुरुवार को एक यूएस स्थित एक थिंक-टैंक से कहा, 'हमें एक बड़े संघर्ष से बचने की जरूरत है जो अमेरिका या इस क्षेत्र के देशों के लिए परेशानी पैदा करेगा. हम हर कीमत पर इससे बचने की कोशिश कर रहे हैं.'
विश्व के बड़े देश ईरान को अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझौते में वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, बेनेट यह कह चुके हैं कि 2015 के परमाणु करार को लेकर विएना में चल रही बातचीत बंद होनी चाहिए. परमाणु समझौते से तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2018 में अमेरिका को अलग कर लिया था. इसके बाद उन्होंने ईरान पर प्रतिबंधों को फिर से बहाल कर दिया था. ट्रंप के इस रुख को देखते हुए ईरान भी 2015 के परमाणु समझौते का धीरे-धीरे उल्लंघन करने लगा.
यूएई, जिसने पिछले साल इजराइल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं, अमेरिका और इजरायल की तरह ही ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं, उसके मिसाइल कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रॉक्सी के बारे में चिंतित है. लेकिन वो COVID-19 महामारी के बाद क्षेत्र में बढ़ती आर्थिक प्रतिस्पर्धा के मद्देनजर एक पर्यटन और वाणिज्यिक केंद्र के रूप में अपने आर्थिक हितों की रक्षा के साथ ईरान पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रहा है.
यूएई के राजनीतिक विश्लेषक अब्दुलखलेक अब्दुल्ला ने कहा, 'यह रिश्तों में आगे बढ़ने का समय है, इसे खराब करने का नहीं. अगर इजरायल इसे खराब करने के मूड में है, तो हम उसका साथ नहीं देने जा रहे हैं.' यूएई के राष्ट्रपति के राजनयिक सलाहकार गर्गश ने अरब गल्फ स्टेट्स इंस्टीट्यूट को बताया कि न तो हम और न ही अमेरिका इराक या अफगानिस्तान जैसा एक और संघर्ष चाहते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक अब्दुलखलेक अब्दुल्ला ने कहा कि संयुक्त अरब अमीरात अब ईरान पर और आर्थिक प्रतिबंधों के लिए तैयार नहीं है. उन्होंने कहा, 'हमने अपना काम किया है और पिछले पांच, छह वर्षों में अपने हिस्से के प्रतिबंध ईरान पर लगाए हैं. लेकिन बहुत हो गया. कोई भी अबू धाबी में ईरान पर और प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं है. ये बात बिल्कुल स्पष्ट है.'
ईरान पश्चिमी देशों के संदेह को खारिज करता आया है कि वो परमाणु हथियारों पर काम रहा है. वो कहता रहा है कि उसकी परमाणु गतिविधियां ऊर्जा उद्देश्यों के लिए हैं. ईरान कहता है कि उसने 2015 के परमाणु संधि का पालन किया है और चाहता है कि ट्रम्प द्वारा समझौते को छोड़ने के बाद अमेरिका द्वारा लगाए गए सभी प्रतिबंध हटा दिए जाएं.