इटली ने शनिवार को दावा किया कि दोनों पक्षों की ओर से ‘गलतियां’ हुई हैं और भारत को शुरू से ही यह बात महसूस करनी चाहिए थी कि केरल के न्यायाधीशों के पास भारतीय मछुआरों की जान लेने का आरोप झेल रहे दो इटेलियन मरीन के खिलाफ मामले की सुनवाई करने का अधिकार नहीं है.
इटली ने यह भी संकेत किया कि ‘संभवत’ यह मामला केरल की राजनीति से जुड़े एजेंडा की ओर जा सकता है. इटली के विदेश उप मंत्री स्टेफन डे मिस्तूरा ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा, ‘..यह कहने की बजाय कि उन्होंने (भारत ने) गलती की, (मैं कहना चाहता हूं कि) संभवत: कहा जाना चाहिए कि हम बेहतर कर सकते थे.’
उन्होंने कहा, ‘हमें शुरू में ही यह महसूस कर लेना चाहिए था कि वास्तव में केरल के न्यायाधीश (अदालत) इस बुरी तरह से जटिल मामले से निपटने के लिए उपयुक्त स्थल नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसा ही संकेत दिया है.’ मिस्तूरा ने कहा कि केरल अदालत के अधिकार क्षेत्र के मुद्दे को काफी पहले ही सुलझा लिया जाना चाहिए था.
इटली के विदेश उप मंत्री मिस्तूरा ने कहा, ‘हमें काफी पहले ही कोई फार्मूला निकाल लेना चाहिए था. ऐसा महसूस किया जा रहा था कि संभवत: इसको आगे खींचने की एक रणनीति है.’ यह पूछे जाने पर कि क्या इटली को किसी जाल में उलझाया जा रहा है, उन्होंने कहा, ‘नहीं. संभवत: हम केरल संबंधित राजनीतिक माहौल के एक एजेंडा में पड़ रहे हैं, जो मानवीय है..’ उन्होंने कहा कि इटली भावनात्मक हो रहा है क्योंकि वह फैसले के लिए 11 महीनों से प्रतीक्षा कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट को राजदूत द्वारा दिये गये आश्वासन को टाल दिये जाने को ‘पीड़ादायक’ करार देते हुए मिसूरा ने कहा कि भारत द्वारा मृत्युदंड नहीं दिये जाने के आश्वासन के बाद 11 दिन तक चला गतिरोध दूर हो सका.
राजनयिक आश्वासन का उल्लंघन होने के बावजूद मरीन को वापस नहीं भेजने के इटली के शुरुआती निर्णय का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि मृत्युदंड अस्वीकार्य है. इटली की सरकार के लिए यह उस समय एक मुद्दा बन गया जब सुप्रीम कोर्ट ने सैनिकों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत गठित करने की बात की थी. उन्होंने कहा कि विशेष अदालत को तेज गति से सुनवाई करनी चाहिए.