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UK संसद में उठा कश्मीर मुद्दा, पीएम मोदी के खिलाफ की गई टिप्पणी से भारत नाराज

एफसीडीओ में एशिया की मंत्री अमांडा मिलिंग ने कश्मीर मुद्दे पर ब्रिटेन सरकार का रुख साफ करते हुए बताया कि इस पर भारत और पाकिस्तान को बात करनी चाहिए. जारी बयान में कहा गया कि कश्मीर की स्थिति को लेकर सरकार गंभीर है. इस मसले को हल करने के लिए भारत और पाकिस्तान को एक दूसरे से बात करनी चाहिए.

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UK संसद में उठा कश्मीर मुद्दा ( पीटीआई)
UK संसद में उठा कश्मीर मुद्दा ( पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कश्मीर पर ब्रिटेन सरकार का विवादित स्टैंड
  • पीएम मोदी के खिलाफ की गई टिप्पणी
  • भारत ने दिया मुंहतोड़ जवाब

जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत का स्टैंड हमेशा से साफ रहा है. जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है. लेकिन फिर भी कुछ देशों द्वारा जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर राजनीति की जा रही है. ऐसा ही काम यूके की संसद ने किया है जहां पर 'कश्मीर में मानवाधिकारों' विषय पर विस्तार से चर्चा की गई. ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप की तरफ से एक प्रस्ताव भी रखा गया. 

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कश्मीर पर ब्रिटेन सरकार का विवादित स्टैंड

एफसीडीओ में एशिया की मंत्री अमांडा मिलिंग ने कश्मीर मुद्दे पर ब्रिटेन सरकार का रुख साफ करते हुए बताया कि इस पर भारत और पाकिस्तान को बात करनी चाहिए. जारी बयान में कहा गया कि कश्मीर की स्थिति को लेकर सरकार गंभीर है. इस मसले को हल करने के लिए भारत और पाकिस्तान को एक दूसरे से बात करनी चाहिए. एक स्थाई समाधान निकालने की जरूरत है. इस मामले में ब्रिटेन किसी भी तरह की मध्यस्थता करने की इच्छा नहीं रखता है.

अब भारत की तरफ इस प्रस्ताव का तो खंडन किया ही गया है, लेकिन नाराजगी इस बात पर भी जाहिर की गई है कि उस बहस के दौरान एक सांसद द्वारा पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की गई थी. इन सांसद का नाम हैं नाज शाह जो पाकिस्तानी मूल की हैं. संसद में बहस के दौरान उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर तो अपने विचार रखे ही, लेकिन इसके अलावा गुजरात 2002 के दंगों का भी जिक्र कर दिया.

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भारत का मुंहतोड़ जवाब

लंदन में भारतीय उच्चायोग के एक अधिकारी ने उस सांसद को मुंहतोड़ जवाब दिया है और कश्मीर मुद्दे पर भारत का स्टैंड भी फिर मजबूत करने का प्रयास किया. उन्होंने कहा कि सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए एक दूसरे देश की लोकतांत्रिक संस्था का इस्तेमाल किया गया. इस बात पर अफसोस व्यक्त किया जाता है. भारत ये साफ कर दे कि अगर उसके अभिन्न हिस्से से जुड़े किसी भी विषय पर कोई दावा किया जाता है, तो उसे सही तरीके से प्रमाणित करने की जरूरत है.

जानकारी के लिए बता दें कि इस विवादित चर्चा में 20 से अधिक सांसदों ने हिस्सा लिया था, किसी ने प्रस्ताव का समर्थन किया तो किसी ने अपना विरोध भी दर्ज करवाया.

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