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गृहयुद्ध की आग में जल रहे सूडान में रहते हैं इतने भारतीय, कभी गुजराती कारोबारी इस वजह से हुए थे यहां शिफ्ट

गृहयुद्ध की आग में जल रहे सूडान में भारतीय लोग भी काफी संख्या में रहते हैं. रविवार को गोलीबारी के दौरान एक भारतीय नागरिक की यहां मौत हो गई थी. सूडान में स्थित भारतीय दूतावास ने वहां रह रहे लोगों से घरों से बाहर ना निकलने की अपील की है.

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सूडान में जारी है हिंसा और विरोध प्रदर्शन
सूडान में जारी है हिंसा और विरोध प्रदर्शन

सूडान में सेना और अर्धसैनिक बलों के बीच लगातार लगातार संघर्ष जारी है. अब तक इस संघर्ष में 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी हैं जबकि सैकड़ों लोग घायल बताए जा रहे हैं. लोग घरों में दुबके हुए हैं और उन्होंने लूटपाट और बिजली कटौती होने का दावा किया है. इस हिंसा को लेकर सूडान में स्थित भारतीय दूतावास ने सोमवार को एक नई एडवाइजरी जारी की और भारतीयों से अपने घरों से बाहर नहीं निकलने का आग्रह किया.

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विदेश मंत्रालय ने जारी किया हेल्पलाइन नंबर

रविवार को दूतावास ने बताया कि खार्तूम में गोली लगने से एक भारतीय नागरिक की मौत हो गई. खार्तूम में हिंसा भड़कने के बाद मिशन ने अपनी दूसरी एडवाइजरी में कहा, 'नवीनतम सूचनाओं के आधार पर, लड़ाई अभी कम नहीं हुई है. हम ईमानदारी से सभी भारतीयों से अनुरोध करते हैं कि वे जहां हैं वहीं रहें और बाहर न निकलें.' विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि सूडान में मौजूदा स्थिति के मद्देनजर जानकारी और सहायता प्रदान करने के लिए मंत्रालय में एक 24X7 नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है. हेल्पलाइन नंबर 1800118797, +91-11-23012113, +91-11-23014104, +91-11-23017905, +91 9968291988 हैं.

दशकों पहले भारत से जाकर बस गए थे इतने लोग

भारतीय नागरिक की मौत पर दुख व्यक्त करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा कि खार्तूम की स्थिति 'बड़ी चिंता' में से एक है और भारत उस देश के घटनाक्रम की निगरानी करना जारी रखेगा. सूडान में भारतीय लोग भी काफी संख्या में रहते हैं. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सूडान में रह रहे भारतीयों की संख्या लगभग 4,000 है, जिनमें 1,200 ऐसे हैं जो दशकों पहले वहां जाकर बस गए थे.

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1860 के दशक में गुजराती कारोबारी पहुंचे थे सूडान

सूडान में बसा हुआ भारतीय समुदाय लगभग 150 साल पुराना है. माना जाता है कि वहां जाने वाले पहले भारतीय लवचंद अमरचंद शाह, एक गुजराती व्यापारी थे,जो भारत से माल आयात करते थे. वह 1860 के दशक की शुरुआत में उस समय अदन (यमन) से सूडान पहुंचे थे, जब उनके कारोबार का विस्तार हुआ था. इसके बाद वह सौराष्ट्र से अपने रिश्तेदारों को यहां ले आए, जिन्होंने फिर अपने दोस्तों और परिवार को वहां बुला लिया. इस तरह सूडान में भारतीय समुदाय की जड़ें गहरीं होते गईं.

 देश के पूर्वी हिस्से के छोटे शहरों (पोर्ट सूडान और सवाकिन) से भारतीय समुदाय के लोग शुरुआत में अंदरूनी हिस्सों में चले गए और ओमडुरमैन, कसाला,गेडारेफ और वाड मदनी जैसी जगहों पर जाकर बस गए.

संघर्ष की वजह

सूडान में संघर्ष सेना के कमांडर जनरल अब्देल-फतह बुरहान और रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ) के प्रमुख जनरल मोहम्मद हमदान डगालो के बीच हो रहा है. सत्ता के इस संघर्ष की जड़ें 2019 में ही जमनीं शुरू हो गई थीं और तीन दशक तक शासन करने वाले राष्ट्रपति उमर अल बशीर को सत्ता से उखाड़ फेंका था.

इसके बाद जनरल बुरहान और जनरल डगालो, जो कभी साथ थे, में समझौता हुआ कि सेना चुनाव से पहले नागरिक राजनीतिक समूहों द्वारा नियुक्त अधिकारियों के साथ सत्ता साझा करेगी और 2023 के अंत तक चुनाव कराए जाएंगे. लेकिन इससे भी बात नहीं बनी. अक्टूबर 2021 में सेना ने तख्तापलट कर दिया. जनरल बुरहान काउंसिल के अध्यक्ष तो जनरल डगालो उपाध्यक्ष बन गए. बाद में दोनों में चुनाव कराने को लेकर सहमति नहीं बन सकी और एक दूसरे के खिलाफ हो गए. 

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इस बात का है डर

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, जनरल डगालो का कहना है कि 2021 का तख्तापलट एक गलती थी और वो खुद को जनता के साथ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं, जनरल बुरहान का कहना है कि वो सिर्फ चुनी हुई सरकार को ही सत्ता सौंपेंगे. हालांकि, दोनों के समर्थकों को इस बात का डर है कि अगर उन्हें पद से हटा दिया तो उनके प्रभाव का क्या होगा.

अब आगे क्या?

सेना और पैरामिलिट्री फोर्स के बीच संघर्ष ने सूडान के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं. पता नहीं है कि ये जंग कब खत्म होगी.- सेना ने साफ कर दिया है कि जब तक पैरामिलिट्री फोर्स को भंग नहीं किया जाता, तब तक आरएसएफ के साथ कोई बातचीत नहीं होगी. साथ ही सेना ने आरएसएफ के साथ काम कर रहे अपने सैनिकों को वापस लौटने के आदेश भी दिए हैं. वहीं, आरएसएफ के प्रमुख जनरल डगालो ने जनगर बुरहान को 'अपराधी' और 'झूठा' बताया है. 

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