नीदरलैंड्स के द हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने कुलभूषण जाधव पर फैसला सुनाया है. आईसीजे ने पाकिस्तान को बड़ा झटका देते हुए कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी है और फिर से विचार करने को कहा है. इसके साथ ही आईसीजे ने ये भी फैसला सुनाया है कि कुलभूषण जाधव को काउंसिलर एक्सेस की इजाजत मिलेगी. 16 जज इस मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें से 15 ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाया. अब जो सबसे बड़ा सवाल है कि अगर पाकिस्तान ने आईसीजे का फैसला नहीं मानता है तो क्या होगा.
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 94 में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों को उन मामलों में आईसीजे के निर्णयों का पालन करना होगा जिनमें वे पक्षकार हैं. भारत और पाकिस्तान ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं.
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पाकिस्तान ने विएना कन्वेंशन का उल्लंघन करते हुए जाधव को काउंसर एक्सेस नहीं दिया था. विएना कनवेंशन में एक वैकल्पिक प्रोटोकॉल है, जिसके बाद विवाद के समय इस संधि को साइन करने वाले इसे मानने के लिए बाध्य होते हैं. पाकिस्तान और भारत दोनों इसमें पार्टी हैं. आईसीजे की ओर से दिए जाने वाले आदेश बाध्यकारी होते हैं. लेकिन अब यहां पर सिद्धांतों और वास्तविकता में अंतर है.
साल 2004 में आईसीजे ने मेक्सिको के 51 नागरिकों को लेकर फैसला सुनाया था. उस समय अमेरिका ने कोर्ट ट्रायल में इन सभी 51 नागरिकों को दोषी माना था. अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानने से इनकार कर दिया था और कहा कि फैसला राष्ट्रीय कानूनों को किनारे नहीं कर सकता है. साल 2005 में अमेरिका ने खुद को इस वैकल्पिक प्रोटोकॉल से बाहर कर लिया.
आईसीजे के फैसले बाध्यकारी जरूर होते हैं लेकिन वे देशों को फैसला मानने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. अगर पाकिस्तान आईसीजे के फैसले को नहीं मानता है तो फिर यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल (यूएनएससी) का रोल अहम हो जाएगा.
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यूएनएससी पाकिस्तान को आईसीजे का फैसला मानने के लिए मजबूर कर सकती है. लेकिन यहां पर पेच चीन है. यहां पर ज्यादातर उम्मीद है कि चीन अपने दोस्त पाकिस्तान के साथ जाएगा. दूसरा ये भी है कि यूएनएससी इसमें दखल करने से इनकार कर देता है. फिर इस मामले में कोई रास्ता नहीं रहेगा.
तीसरा, सुरक्षा परिषद के उपाय को तभी ही अपनाया जा सकता है जब अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा दांव पर हो. सुरक्षा परिषद ने अब तक ऐसा कभी नहीं किया है.