पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ को देशद्रोह के आरोप में फांसी की सजा देने का ऐलान किया जा चुका है. जब इस सजा का ऐलान हुआ तो परवेज़ मुशर्रफ देश से बाहर थे, अब इसी मसले पर एक बार फिर भारत के पड़ोसी मुल्क में विवाद खड़ा हो गया है. लाहौर की एक अदालत का कहना है कि किसी व्यक्ति की गैर मौजूदगी में उसे इस प्रकार की सज़ा के सुनाना इस्लाम के खिलाफ है.
पिछले साल 17 दिसंबर को इस्लामाबाद की एक अदालत ने परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा देने का ऐलान किया था. इस फैसले के खिलाफ लाहौर की हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसमें ट्रायल पिछले एक महीने से जारी था.
अब लाहौर हाई कोर्ट ने एक फैसले में इस फैसले को असंवैधानिक करार दिया है. हाई कोर्ट के जस्टिस सैयद मजहर अली अकबर नकवी ने कहा है कि किसी की गैर मौजूदगी में उसे सजा सुनाना इंसानी मूल्यों के खिलाफ है और इस्लाम भी इसकी इजाजत नहीं देता है.
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बेंच ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि जो फैसला दिया गया है वह संविधान के खिलाफ है और सीमा से बाहर जाकर दिया गया है. इस तरह का फैसला कुरान का भी विरोध करता है. परवेज मुशर्रफ के वकीलों के द्वारा पहले सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया था, लेकिन बाद में वहां की सर्वोच्च अदालत ने इस याचिका को हाई कोर्ट भेजा.
गौरतलब है कि साल 2017 में नवाज शरीफ की सरकार ने पाकिस्तानी सेना के पूर्व जनरल मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाया था. आरोप लगाया गया था कि 2013 में परवेज मुशर्रफ ने संविधान का उल्लंघन करते हुए देश में आपातकाल लागू किया था. इसी मामले में फैसला सुनाते हुए 17 दिसंबर को एक अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी.
पाकिस्तान: फांसी के फंदे से बच गए मुशर्रफ! सजा सुनाने वाली अदालत असंवैधानिक करार
परवेज मुशर्रफ पिछले काफी लंबे समय से पाकिस्तान से बाहर हैं और लंदन में अपना इलाज करवा रहे हैं. पाकिस्तानी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी पूर्व आर्मी चीफ का संविधान की धारा 6 के चहत कोर्ट में ट्रायल चला हो और फिर सजा सुनाई गई हो.