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फ्रांस राष्ट्रपति चुनाव: ली पेन और मैकरॉन ने पार की पहली बाधा

रविवार को हुए फ्रांस के राष्ट्रपति पद के चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के बाद इमैनुअल मैकरॉन और मरीन ली पेन ने इस दौड़ के दूसरे चरण में प्रवेश कर लिया है. अब अगले चरण में इन दोनों की किस्मत का फैसला होगा.

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ली पेन और इमैनुअल मैकरॉन
ली पेन और इमैनुअल मैकरॉन

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रविवार को हुए फ्रांस के राष्ट्रपति पद के चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के बाद इमैनुअल मैकरॉन और मरीन ली पेन ने इस दौड़ के दूसरे चरण में प्रवेश कर लिया है. अब अगले चरण में इन दोनों की किस्मत का फैसला होगा. अगर चुनावों में जीत 48 वर्षीय ली पेन की होती है तो फ्रांस को पहली महिला राष्ट्रपति मिलेगी और अगर बाजी 39 साल के मैकरॉन के हाथ लगती है तो वे अब तक फ्रांस के सबसे युवा राष्ट्रपति होंगे. आपको बता दें कि, फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव के लिए रविवार को पिछली बार से करीब दो फीसदी ज्यादा 80 फीसदी वोट पड़े.

7 मई को होगा सीधा मुकाबला
वोटिंग के बाद आए रुझानों के मुताबिक राजनीति में नए-नवेले इमैनुअल मैकरॉन के धुर दक्षिणपंथी नेता मरीन ली पेन से आगे रहने का अनुमान है. मैकरॉन को 23.7 फीसदी और ली पेन को 21.7 फीसदी वोट मिलने का अंदाजा लगाया जा रहा है, इससे यह साफ हो गया है कि पहले दौर में किसी उम्मीदवार को 50 फीसदी वोट नहीं मिले हैं. अब 7 मई को दूसरे चरण की वोटिंग में मैकरॉन और ली पेन के बीच सीधा मुकाबला होगा.

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11 प्रत्याशी थे मैदान में
फ्रांस के राष्ट्रपति पद के लिए कुल 11 लोग अपनी किस्मत आजमा रहे थे. लेकिन, ली पेन और मैकरॉन ने देश के सभी शीर्ष दलों के प्रत्याशियों को जबरदस्त झटका दिया. शीर्ष दलों की वादा खिलाफी से ऊबे लोगों ने इस बार नए चेहरे पर दांव खेलने का संकेत दिया है. गौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी और पूर्व प्रधानमंत्री मैनुअल वाल्स जैसे बड़े चेहरे मुख्य दौड़ में भी नहीं आ पाए. इस बार फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में आतंकवाद के अलावा सुरक्षा, बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था भी प्रमुख मुद्दे हैं.

मैकरॉन को मिला विरोधियों का समर्थन
मैकरॉन के लिए राहत इस बात से है कि अंतिम नतीजे आने से पहले ही प्रतिदंद्वी कंजरवेटिव और सोशलिस्ट उम्मीदवारों ने अपनी हार स्वीकार कर ली है. इसके साथ ही उन्होंने अपने समर्थकों को मैकरॉन को सपोर्ट करने को कहा है. दोनों ही उम्मीदवारों के मुताबिक दूसरे चरण में ली पेन को जीतने से रोकना बहुत ही जरूरी है. क्योंकि उन्हें लगता है कि ली पेने की एंटी-इमिग्रेशन और एंटी-यूरोप नीतियां फ्रांस के लिए सही नहीं हैं.

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