scorecardresearch
 

श्रीलंका में 'तख्तापलट', राजपक्षे के राज का भारत पर क्या होगा असर

महिंदा राजपक्षे अभी हाल में भारत आए थे और श्रीलंका के साथ रिश्ते मजबूत करने पर जोर दिया था. उससे कुछ दिन पहले श्रीलंका में एक बैठक के दौरान राष्ट्रपति सिरीसेना और प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे भारत के निवेश को लेकर आपस में भिड़ गए थे. सवाल है क्या इन दोनों घटनाओं में कोई संबंध है, जो भारत के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना जरूरी है.

Advertisement
X
महिंदा राजपक्षे (रॉयटर्स)
महिंदा राजपक्षे (रॉयटर्स)

Advertisement

श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने शुक्रवार शाम राष्ट्रपति सचिवालय में नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने रानिल विक्रमसिंघे को हटाकर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री बनाया है. हालांकि रानिल विक्रमसिंघे का कहना है कि वो अब भी श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने हुए हैं.

कैसे होंगे भारत के साथ संबंध

राजपक्षे के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत के साथ श्रीलंका के रिश्ते कैसे रहेंगे, यह सवाल मुखर हो गया है. श्रीलंका भारत का सबसे करीबी पड़ोसी रहा है, इसलिए वहां की छोटी घटना भी भारत के लिए मायने रखती है. हालांकि शुक्रवार को भारत ने साफ कर दिया कि श्रीलंका में कौन प्रधानमंत्री बनता है, यह उसका आंतरिक मामला है.

श्रीलंका की हाल की दो घटनाएं भारतीय संदर्भ में काफी अहम मानी जा रही हैं. कुछ दिन पहले राष्ट्रपति सिरिसेना और रानिल विक्रमसिंघे के बीच कैबिनेट मीटिंग के दौरान भिड़ंत हो गई थी. सूत्रों के हवाले से कोलंबो स्थित डेली मिरर अखबार ने दावा किया था कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच विवाद की स्थिति कोलंबो पोर्ट पर ईस्ट कंटेनर टर्मिनल को भारतीय निवेश से बनाने पर बनी थी.

Advertisement

भारत-श्रीलंका के बीच चीन

कैबिनेट बैठक श्रीलंका के पोर्ट और शिपिंग मंत्री महिंदा समारासिंघे ने कैबिनेट को प्रस्ताव दिया था कि ईस्ट कंटेनर कोस्ट को विकसित करने का दायित्व श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी को दिया जाए. वहीं, कैबिनेट बैठक के दौरान श्रीलंका के डेवलपमेंट स्ट्रैटेजी और इंटरनेशनल ट्रेड मिनिस्टर मलिक समाराविक्रमा ने भारतीय निवेश से पोर्ट बनाने का पक्ष रखा था. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच विवाद की स्थिति तब खड़ी हुई जब प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने व्यापार मंत्री के प्रस्ताव को मानने की वकालत की. इसमें गौर करने वाली बात यह है कि कैबिनेट बैठक से पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति ने एक चीनी कंपनी को हंबनटोटा पोर्ट लीज पर दिए जाने का विरोध किया था.

अब दोबारा जब राजपक्षे प्रधानमंत्री पद पर बैठ गए हैं, तो भारत-श्रीलंका संबंधों की छानबीन शुरू हो गई है कि श्रीलंका के परिप्रेक्ष्य में दोनों देशों के रिश्ते कैसे रहेंगे. यहां जान लेना जरूरी है कि इससे पहले राजपक्षे श्रीलंका की सत्ता से हटाए गए थे, तो उसके पीछे भी अहम कारण हंबनटोटा पोर्ट चीन को लीज पर दिए जाने का प्रस्ताव था.

हंबनटोटा का क्या होगा

साल 2015 में भारत ने 'बड़े भाई' की भूमिका अदा करते हुए सिरीसेना और विक्रमसिंघे के बीच सुलह-सलाकत कराई थी और राजपक्षे को बाहर का रास्ता दिखाया गया था. मामला हंबनटोटा पोर्ट का ही था क्योंकि राजपक्षे ने चीन को इसकी इजाजत देते हुए कोलंबो पोर्ट बनाने पर हरी झंडी दिखाई थी. तब यह भी तय हुआ था कि चीन के पनडुब्बी जहाज श्रीलंकाई जलक्षेत्र में डेरा डालेंगे. हालांकि बाद में राजपक्षे श्रीलंका की सत्ता से बाहर हो गए. आज फिर राजपक्षे जब श्रीलंका के प्रधानमंत्री बनाए गए हैं, तो सवाल खड़े हो रहे हैं कि हंबनटोटा और चीन का क्या होगा.

Advertisement

इन सबसे पहले एक और घटना काफी मायने रखती है जिसमें राष्ट्रपति सिरीसेना ने भारत की खुफिया एजेंसी रॉ पर हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया था. हालांकि बाद में उन्होंने इसका सारा ठीकरा मीडिया के माथे फोड़ कर पल्ला झाड़ लिया था. इसके कुछ दिन बाद ही श्रीलंका में पूर्वी टर्मिनल परियोजना सहित भारत समर्थित परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए पीएम मोदी से बातचीत के लिए रानिल विक्रमसिंघे दिल्ली आए. बातचीत क्या हुई, इसका पूरा विवरण तो नहीं मिल पाया, लेकिन शुक्रवार को अचानक विक्रमसिंघे को हटाकर राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाना भारत के लिए चिंता का सबब जरूर माना जा रहा है.

राजपक्षे क्या भारत के समर्थन में?

हालांकि मीडिया रिपोर्टों में राजपक्षे और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उन दो मुलाकातों को भी प्रमुखता से जगह दी जा रही है जिसमें पीएम मोदी ने समय निकालकर अपने श्रीलंकाई दौरे के दौरान राजपक्षे से मुलाकात की. राजपक्षे भारत भी आए और पीएम मोदी से मुलाकात की. इससे भी बड़ी बात यह है कि भारत आने से पहले राजपक्षे ने पूर्व विदेश मंत्री और अपनी पार्टी के प्रवक्ता जीएल पेरिस को भारत भेजा और दोनों देशों के बीच संबंधों को प्रगाढ़ बनाने पर जोर दिया.

इन सबके बीच, ईसीटी के अलावा और भी कई प्रोजेक्ट हैं, जिसे भारत वहां शुरू करने वाला है, जैसे-त्रिंकोमाली ऑयल टैंक फार्म्स, जाफना में पलाली एयरपोर्ट, हंबनटोटा में मट्टाला एयरपोर्ट और कोलंबो के पास एलएनजी टर्मिनल का निर्माण. अभी हाल में भारतीय कंपियनों को वहां हाउसिंग प्रोजेक्ट का ठेका मिला है, जो पहले चीनी कंपनियों के पास था. ये कुछ ऐसे बदलाव हैं, जो भारत और श्रीलंका के बीच रणनीतिक रिश्ते को तय करेंगे क्योंकि श्रीलंका में भारत के कई रणनीतिक हित दांव पर लगे हैं.

Advertisement

Advertisement
Advertisement