60 साल के एक भारतीय और 17 साल की एक पाकिस्तानी किशोरी के सम्मान में आज पूरी दुनिया नतमस्तक थी. नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में बुधवार को भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया. दोनों ने जब अपने भाषण से लाखों करोड़ों बच्चों की शिक्षा और सशक्तिकरण की बात की तो हॉल तालियों से गूंज उठा.
भारतीय उप महाद्वीप में बाल अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को संयुक्त रूप से यह प्रतिष्ठित सम्मान दिया गया. नॉर्वे की नोबेल समिति के प्रमुख थोर्बजोर्न जगलांद ने पुरस्कार देने से पहले कहा, ‘सत्यार्थी और मलाला निश्चित तौर पर वही लोग हैं जिन्हें अलफ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में शांति का मसीहा कहा था.’ आओ सुनाएं मलाला की कहानी
उन्होंने कहा, ‘एक लड़की और एक बुजुर्ग व्यक्ति, एक पाकिस्तानी और दूसरा भारतीय, एक मुस्लिम और दूसरा हिंदू, दोनों उस गहरी एकजुटता के प्रतीक हैं जिसकी दुनिया को जरूरत है. देशों के बीच भाईचारा.’
60 साल के सत्यार्थी ने इक्लेट्रिकल इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर बाल अधिकार के क्षेत्र में काम करना शुरू किया और वह 'बचपन बचाओ आंदोलन' नामक गैर सरकारी संगठन चलाते हैं. जानें कैलाश सत्यार्थी के बारे में सब कुछ
दूसरी ओर, तालिबान के जानलेवा हमले में बची 17 साल की मलाला दुनिया भर में लड़कियों की शिक्षा की पैरोकारी के लिए जानी जाती हैं. शांति के नोबेल के लिए दोनों के नाम बीते 10 अक्टूबर को पुरस्कार समिति ने चुने थे. सत्यार्थी और मलाला को नोबेल का पदक मिला जो 18 कैरेट ग्रीन गोल्ड का बना है और उस पर 24 कैरेट सोने का पानी चढ़ा हुआ है और इसका कुल वजन करीब 175 ग्राम है.
दोनों 11 लाख रुपये की पुरस्कार राशि साझा करेंगे. हिंसा और दमन को किसी भी धर्म में उचित न ठहराए जाने का जिक्र करते हुए जगलांद ने कहा कि इस्लाम, ईसाई, जैन, हिंदू और बौद्ध जीवन की रक्षा करते हैं और जीवन लेने के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकते.
उन्होंने कहा, ‘जिन दो लोगों को हम आज यहां सम्मानित करने के लिए खड़े हैं वे इस बिंदु पर बहुत खरे हैं. वे उस सिद्धांत के मुताबिक रहते हैं जिसकी अभिव्यक्ति गांधी ने की थी. उन्होंने कहा था, कई ऐसे उद्देश्य हैं जिनके लिए मैं अपने प्राण दे दूं. ऐसा कोई उद्देश्य नहीं हैं जिसके लिए मैं हत्या करूं.’
सत्याथी के गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने भारत में कारखानों और दूसरे कामकाजी स्थलों से 80,000 से अधिक बच्चों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक दुनिया भर में 16.8 करोड़ बाल श्रमिक हैं. माना जाता है कि भारत में बाल श्रमिकों का आंकड़ा 6 करोड़ के आस-पास है.
मलाला को पिछले साल भी शांति के नोबेल के लिए नामांकित किया गया था. उन्होंने तालिबान के हमले के बावजूद पाकिस्तान सरीखे देश में बाल अधिकारों और लड़कियों की शिक्षा के लिए अपने अभियान को जारी रखने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए अद्भुत साहस का परिचय दिया.
पुरस्कार ग्रहण करने के बाद सत्यार्थी ने वहां उपस्थित दर्शकों से कहा कि वे अपने भीतर बच्चे को महसूस करें और उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों के खिलाफ अपराध के लिए सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है. उन्होंने कहा, ‘बच्चे हमारी अकर्मणयता को लेकर सवाल कर रहे हैं और हमारे कदम को देख रहे हैं.’
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सभी धर्म बच्चों की देखभाल करने की शिक्षा देते हैं. बाल श्रमिकों की संख्या में कमी का जिक्र करते हुए सत्यार्थी ने कहा, ‘मेरा सपना है कि हर बच्चे को विकास करने के लिए मुक्त किया जाए..बच्चों के सपनों को पूरा नहीं होने देना से बड़ी हिंसा कुछ नहीं है.’ समाज के कमजोर तबकों के लोगों के साथ के अपने अनुभव को साझा करते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा, ‘मैं उन करोड़ों बच्चों का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं जिनकी आवाजें दबी हुई हैं और वे कहीं गुमनामी में जी रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इस सम्मान का श्रेय उन लोगों को जाता है जिन्होंने बच्चों को मुक्त कराने के लिए काम किया और त्याग दिया.’ नोबेल पुरस्कार समारोह में पाकिस्तान के मशहूर गायक राहत फतेह अली खान और भारतीय संगीत जगत के चर्चित के नाम अमजद अली खान ने जलवा बिखेरा. यहां पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी भी मौजूद थे.
(इनपुट: भाषा)