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मालदीव समेत ये 5 देश समुद्र में डूब जाएंगे? कहां जाएंगे यहां के लोग

जिस रफ्तार के साथ समुद्री पानी का स्तर बढ़ता जा रहा है, 22वीं सदी आते-आते कई ऐसे देश हैं, जो पानी में पूरी तरह डूब सकते हैं. हालांकि, 21वीं सदी के शुरुआत में ऐसी बातें थोड़ी अजीब जरूर हैं, लेकिन वाकई इसको लेकर हो रही कई स्टडी भविष्य की चिंता जरूर दे रही हैं.

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क्या मालदीव समेत इन देशों को निगल जाएगा समुद्र ?
क्या मालदीव समेत इन देशों को निगल जाएगा समुद्र ?

जिस रफ्तार के साथ समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है, 22वीं सदी आते-आते कई ऐसे देश हैं, जो पानी में पूरी तरह डूब सकते हैं. हालांकि, 21वीं सदी की शुरुआत में ऐसी बातें थोड़ी अजीब जरूर लग सकती हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन को लेकर हो रही कई स्टडी भविष्य को लेकर इन चिंताओं को हकीकत बता रही हैं. अगर मालदीव और तुवालु जैसे देशों को बढ़ता समुद्र का जल स्तर ले डूबा तो क्या इन देशों का नामोनिशान विश्व के मानचित्र से हट जाएगा? इन देशों के नागरिकों का क्या होगा? ऐसे कई सवाल हैं जिन पर वैज्ञानिकों और विश्लेषकों ने विचार करना शुरू कर दिया है.

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न्यूज एजेंसी एएफपी के अनुसार, मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद भी इस बारे में चिंता जता चुके हैं.  पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी देश और उसके लोगों के लिए इससे बड़ी त्रासदी नहीं हो सकती.

समुद्र में डूबने से पहले ही मचेगी तबाही

यूएन क्लाइमेट एक्सपर्ट्स की मानें तो पिछले 120 सालों में समुद्र का स्तर करीब 6 से 10 इंच तक बढ़ गया है और डराने वाली बात है कि यह लगातार बढ़ता जा रहा है. अगर ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती रही तो इस सदी के अंत तक ही पैसिफिक और इंडियन ओसियन में समुद्र का स्तर 39 इंच तक बढ़ जाएगा. हालांकि, ये सबसे छोटे और कम ऊंचाई पर बसे द्वीपों के शिखर से कम होगा लेकिन बढ़ते समुद्री जल स्तर के साथ ही तूफान और समुद्री लहरें तेज हो जाएंगी.

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समुद्र में कई देशों के डूबने से बहुत पहले ही पानी में नमक का स्तर बढ़ने से कई जगहें निर्जन हो जाएंगी. यानी वहां मानव बस्तियों का अस्तित्व नहीं रहेगा.

क्लाइमेट चेंज को लेकर हुई एक यूएन की स्टडी के अनुसार, 22वीं सदी तक मालदीव समेत तुवालु, मार्शल आइलैंड, नौरू और किरीबाती नाम के देश मानव आबादी के रहने लायक नहीं रह जाएंगे और करीब 6 लाख लोग बेघर हो जाएंगे. उनका कोई देश ही नहीं रहेगा.

मेडिसन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ विंसकॉइन के सुमुदू अट्टापट्टू ने इस बारे में कहा कि पहले भी आपसी जंगों की वजह से कई देशों का नाम नक्शे से हट चुका है, लेकिन कभी ऐसी स्थिति नहीं रही है, जब किसी आपदा की वजह से पूरा देश ही खत्म हो जाए. 

बिना जमीन के कैसे बनेगा देश

अगर साल 1933 के  Montevideo Convention के तहत देखा जाए तो साफ है कि कोई भी देश तय भौगोलिक क्षेत्र, स्थायी जनसंख्या, एक सरकार और दूसरे देशों से बातचीत की क्षमता से होने के बाद ही बनता है. ऐसे में अगर पूरा देश ही डूब जाए या जो बचा है, उस पर कोई भी न रहे, तो इनमें से एक मापदंड यानी भौगोलिक क्षेत्र पर वह देश खरा नहीं उतर पाएगा.

अट्टापट्टू ने आगे कहा कि किसी भी देश को दर्जा देना एक कल्पना है, ऐसी कानूनी कल्पना जिसे हमने अंतराष्ट्रीय कानून के उद्देश्य से बनाया है. ऐसे में हम सभी को एक अन्य कल्पना के साथ आगे आना होगा जिसमें बिना भौगोलिक क्षेत्र वाले देशों के बारे में सोचा जाए.

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खास बात है कि प्रशांत महासागर से जुड़ी कई सरकारों की सितंबर में लॉन्च 'राइजिंग नेशंस' पहल के पीछे यही विचार हैं.  तुवालू के प्रधानमंत्री Kausea Natano ने इस बारे में एएफपी को बताया कि अगर हमारा देश पानी में डूब जाए तो भी यूएन सदस्यों को हमारे देश को मान्यता देनी होगी, क्योंकि यह हमारी पहचान है.

कई लोग अभी से यह सोचने लगे हैं कि बिना किसी निश्चित इलाके के नेशन-स्टेट का भविष्य क्या होगा?

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में ग्लोबल सेंटर फॉर क्लाइमेट मोबिलिटी के मैनेजिंग डायरेक्टर और यूएन के पूर्व अधिकारी कमल अमकरने ने इस बारे में कहा कि ऐसा हो सकता है कि आपका भौगोलिक क्षेत्र कहीं और हो, लोग कहीं और और किसी तीसरी जगह पर सरकार हो. हालांकि, ऐसा करने के लिए सबसे पहले यूएन की ओर से राजनीतिक घोषणा की जरूरत होगी.

इसके बाद जिन देशों को खतरा है और जो देश मदद को आगे आएंगे, उनके बीच एक समझौते की जरूरत होगी, जो एक तरह के स्थायी दूतावास के रूप में शरणार्थी सरकार को मान्यता देंगे.

अमकरने कहते हैं कि जब आप किसी देश को परिभाषित करने के लिए भौगोलिक सीमा या क्षेत्र की बात करते हैं तो ये भी स्पष्ट नहीं है कि यह सूखा क्षेत्र होगा या समुद्री.

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पैसेफिक में 13 लाख वर्गमील में फैले 33 द्वीपों वाले किरीबाती देश जमीन के मामले में तो छोटा है लेकिन दुनिया के सबसे बड़े इकॉनोमिक जोन में से एक है.  ऐसे में कुछ जानकारों का मानना है कि अगर इस समुद्री संप्रभुता को संरक्षित किया गया, तो एक भी देश गायब नहीं होगा. 

अगस्त 2021 में पैसेफिक आईलैंड फोरम के कुछ देशों (ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड) ने ऐलान किया कि  जलवायु परिवर्तन की वजह से ,समुद्री जलस्तर में अगर कोई बदलाव होता है तो उनके समुद्री जलक्षेत्र में कोई कमी नहीं मानी जाएगी. 

क्या लोग आसानी से छोड़ देंगे देश?

कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर किसी देश पर ऐसा संकट आता भी है तो शायद कुछ लोग अपना देश छोड़ने के लिए तैयार ना हों.

मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति नशीद इस बार में कहते हैं कि इंसान काफी चतुर हैं, वे ऐसी स्थिति में भी रहने के लिए रास्ते खोज लेंगे. उन्होंने कहा कि हो सकता है लोग तैरते हुए शहरों के भी आदी हो जाएं.

हालांकि, यह अभी तक साफ नहीं है कि इन देशों को ऐसी परियोजनाओं के लिए संसाधन कैसे मिलेंगे. नवंबर में मिस्र में COP27 के दौरान ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले नुकसान एक बड़ा मुद्दा रहेगा.

अमकरने का सुझाव है कि ऐसे देशों की विरासत को बचाने के लिए एक राजनीतिक पहल शुरू की जानी चाहिए. इससे लोगों की उम्मीदें जगेंगी. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसे देशों और उनके नागरिकों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता से कड़वाहट बढ़ेगी. इस तरह से आप एक देश और उसके लोगों को खत्म कर देंगे.

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