प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले महीने ऑस्ट्रेलियाई संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे. मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे, जो यहां संघीय संसद की विशेष संयुक्त बैठक में ऑस्ट्रेलिया के संसद के सदस्यों और नेताओं को संबोधित करेंगे.
वह अगले महीने 15 और 16 नवंबर को ब्रिस्बेन में होने जा रहे जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे. इसके बाद वह संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की पहली ऑस्ट्रेलिया यात्रा को लेकर जहां कई सांसदों ने खुशी जाहिर की है वहीं उनके हिंदी में भाषण देने के बारे में भी अटकलें शुरू हो गई हैं.
क्या हिंदी में भाषण देंगे मोदी?
तस्मानिया की लेबर सीनेटर लीजा सिंह ने कहा कि मोदी के हिंदी में संबोधन का मतलब होगा कि वह भारत का सम्मान, संस्कृति और क्षमताओं को साथ लेकर ऑस्ट्रेलिया आ रहे हैं. 42 साल की लीजा ने कहा कि इससे पता चलता है कि वह भारत का सम्मान, संस्कृति और क्षमताओं को साथ लेकर ऑस्ट्रेलिया आ रहे हैं और उनकी इस यात्रा का हमारे देश में होना मेरी राय में अहम है. उन्होंने कहा हमारी संसद को संबोधित करना बहुत ही ज्यादा गर्व की बात है. मेरे लिये यह बात कोई मायने नहीं रखती कि वह हमारी संसद को किस भाषा में संबोधित करेंगे.
लीजा ने कहा कि अगर हिंदी में मोदी के संबोधन से भारतवंशियों को यहां सम्मान मिलता है तो उन्हें ऐसा करना चाहिए. दुनिया के कई हिस्सों में भी उन्होंने ऐसा किया है और वह उन लोगों में से हैं जो मानते हैं कि भारत सबसे अलग देश है और मैं समझ सकती हूं कि इस अनोखेपन के लिए ही वह अपनी मूल भाषा में बोलना चाहते हैं. उन्होंने कहा ऑस्ट्रेलियाई होने के नाते हमें इसका सम्मान करना चाहिए.
'लोकतंत्र में अंग्रेजी का एकाधिकार नहीं'
लीजा ने कहा कि उन्होंने अपनी हालिया भारत यात्रा में महसूस किया कि मोदी के शासन संभालने के बाद देश भर में नया उत्साह है. उन्होंने कहा भारत को उन्होंने नए सिरे से प्रोत्साहित कर दिया..
सिडनी के एक विचार समूह लोवी इन्स्टीट्यूट के रोरी मेडकॉफ ने कहा कि ऑस्ट्रेलियाई संसद को मोदी के संबोधित करने की खबर इस बात का सराहनीय संकेत हैं कि ऑस्ट्रेलिया और भारत के रिश्ते कितने आगे बढ़ चुके हैं. मेडकॉफ ने कहा अगर मोदी हिन्दी में संबोधित करते हैं तो कोई नुकसान नहीं होगा. उस भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है और इससे ऑस्ट्रेलिया के लोगों को फिर स्मरण होगा कि यह देश में तेजी से जगह बनाती भाषाओं में से एक है और लोकतंत्र में अंग्रेजी भाषा का एकाधिकार नहीं रहेगा.