म्यांमार में सत्ता से बेदखल की गईं लोकप्रिय नेता और नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सू (Aung San Suu Kyi) को 33 साल जेल में बिताने होंगे. म्यांमार की सैन्य अदालत ने उन्हें एक अन्य मामले में सात साल जेल की अतिरिक्त सजा सुनाई है. इसके बाद उनके जेल कारावास की कुल अवधि बढ़कर 33 साल हो गई है.
उन पर भ्रष्टाचार और कोरोना के नियमों का उल्लंघन करने सहित कई मामलों में अब तक दोषी ठहराया जा चुका है. इनमें से प्रत्येक मामलों में उन्हें कई सालों की जेल की सजा सुनाई गई है. इसके बाद अब नए मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उनकी कुल सजा की मियाद बढ़कर 33 साल हो गई है.
साल 2020 में म्यांमार में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आईं आंग सान सू की सरकार का सेना ने तख्तापलट कर दिया था. उन्हें 2021 में गिरफ्तार कर लिया गया था. वह तभी से जेल में हैं. आंग सान सू की सैन्य अदालत के इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगी.
दुनियाभर में हो रही निंदा
आंग सान सू की को अवैध तरीके से जेल में रखने की दुनियाभर में निंदा हो रही है. उन्हें भ्रष्टाचार से लेकर कोरोना नियमों का उल्लंघन करने को लेकर कई आरोपों में दोषी ठहराया गया है.
क्या हैं आरोप?
सू की पर भ्रष्टाचार के पांच आरोप एक मंत्री का हेलीकॉप्टर किराए पर लेने से जुड़े हैं. आरोप है कि इस मामले में सू की ने नियमों का पालन नहीं किया था, जिससे सरकार को काफी नुकसान हुआ था. रिपोर्ट्स के मुताबक, इन प्रत्येक मामलों में सू की को 15 साल की सजा सुनाई गई है.
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने म्यांमार के जुंटा से सू की को रिहा करने का आग्रह किया था. संयुक्त राष्ट्र ने सू की सहित सभी राजनीतिक कैदियों को छोड़ने को कहा था. इसके लिए बकायदा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वोटिंग हुई थी. म्यांमार में जारी सैन्य जुंटा की हिंसा को तत्काल प्रभाव से रोकने के लिए सुरक्षा परिषद में यह प्रस्ताव पेश किया गया था. इस प्रस्ताव में म्यांमार में जारी हिंसा को रोकने के साथ आंग सान सू की सहित राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की भी मांग की गई थी.लेकिन म्यांमार को लेकर हुई वोटिंग से भारत ने दूरी बना ली थी,
15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में बीते बुधवार को इस प्रस्ताव को पेश किया गया था. इस प्रस्ताव के पक्ष में 12 देशों ने वोटिंग की जबकि भारत, चीन और रूस वोटिंग से नदारद रहे थे.
बीते 74 सालों में म्यांमार को लेकर सुरक्षा परिषद में यह दूसरा प्रस्ताव लाया गया था. इससे पहले 1948 में म्यांमार की स्वतंत्रता को लेकर सुरक्षा परिषद में पहला प्रस्ताव पेश किया गया था. उस समय म्यांमार को बर्मा के नाम से जाना जाता था.