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चीन से मुकाबला करने के लिए कैसे ताइवान से नजदीकियां बढ़ा रही है मोदी सरकार

जून 2020 में भारत और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद से ही दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब चल रहे हैं. चीन से मुकाबला करने के लिए भारत लगातार ताइवान से नजदीकियां बढ़ा रहा है. ताइवान के साथ रिश्तों में गर्माहट इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्योंकि साल 2019 में नरेंद्र मोदी जब दोबारा भारत के प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए तो शपथ ग्रहण समारोह में ताइवान को निमंत्रण भी नहीं दिया गया था.

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ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन (बाएं), भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (बीच) और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (दाएं)
ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन (बाएं), भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (बीच) और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (दाएं)

पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ जारी तनाव के बीच भारत ताइवान के साथ लगातार अपनी नजदीकियां बढ़ा रहा है. चीन और ताइवान के बीच जारी तनाव भी किसी से छुपा नहीं है. चीन का दावा है कि ताइवान उसी का एक हिस्सा है, जो एक दिन फिर से चीन का हिस्सा होगा. वहीं, ताइवान खुद को एक आजाद देश मानता है, जिसका अपना संविधान है और वहां के लोगों की चुनी हुई सरकार वहां शासन करती है.

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भारत और चीन में जारी सीमा विवाद के बीच केंद्र की मोदी सरकार ने ताइवान के साथ रिश्तों में बदलाव को बढ़ावा दिया है. दरअसल, भारत और ताइवान के बीच होने वाला श्रमिक समझौता (लेबर पैक्ट) का समय सीमा नजदीक आ रही है. ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि इसी वजह से दोनों देश राजनीतिक भागीदारी को और बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. 

भारत और ताइवान के बीच बढ़ती नजदीकियां

दोनों देशों कैसे एक दूसरे के नजदीक आ रहे हैं. इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि 2016 में जब साई इंग वेन, ताइवान की पहली महिला राष्ट्रपति चुनी गईं तो भारत सरकार ने चीन के साथ अपने संबंधों को ध्यान में रखते हुए शपथ ग्रहण सामारोह में किसी भी आधिकारिक प्रतिनिधि को भेजने से परहेज किया था.

लेकिन चार साल बाद 2020 में साई इंग वेन जब दोबार चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बनीं, तो शपथ ग्रहण सामारोह में भारत सरकार की ओर सांसद मीनाक्षी लेखी और राहुल कास्वां ने वर्चुअली हिस्सा लिया और त्साई इंग-वेन को दोबारा राष्ट्रपति बनने की बधाई भी दी. 

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त्साई इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में भारत के प्रतिनिधि के शामिल होने पर चीन ने नाराजगी जाहिर करते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से वन-चाइना पॉलिसी का पालन करने का आह्वान किया था. लेकिन भारत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा.

दोनों देशों के बीच बढ़ता व्यापार

लगभग पिछले चार साल में भारत और ताइवान के बीच रिश्तों में और गर्माहट ही आई है. साल 2001 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार जहां सिर्फ एक अरब डॉलर था, 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 7 अरब डॉलर हो गया. जुलाई 2023 में ही मुंबई में तीसरा ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र खोला गया है.

इसके अलावा ताइवान बेस्ड कंपनी फॉक्सकॉन ने भी चीन से दूरी बनाने और वैश्विक विविधता लाने के लिए भारत में 1.6 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की घोषणा की है. फॉक्सकॉन ही दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में मशहूर एप्पल के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स कॉम्पोनेंट की आपूर्ति करती है. साथ ही ताइवान की शीर्ष सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी TSMC को भी भारत में फैब्रिकेशन प्लांट स्थापित करने के लिए भारत सरकार ने प्रोत्साहित किया है. 

भारत और ताइवान के बीच होगा श्रम समझौता
 
निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर देने के अलावा ताइवान और भारत के बीच एक श्रम समझौता भी होने वाला है जो दोनों देशों के रिश्तों के लिए अहम बताया जा रहा है. पिछले महीने ही ताइवान के श्रम मंत्री ने बताया था कि भारतीय नागरिक ताइवान में आकर काम कर सके, इसके लिए दोनों देशों के बीच एक समझौते पर बातचीत चल रही है.

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हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि कितने भारतीय श्रमिकों को ताइवान आने की अनुमति दी जाएगी. एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि ताइवान लगभग एक लाख भारतीय मजदूरों को आने की अनुमति दे सकता है जिसे ताइवान ने खारिज करते हुए चीन पर गलत जानकारी शेयर करने का आरोप लगाया है.

पिछले महीने नवंबर में ताइवान सरकार की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया था कि ताइवान के उप शिक्षा मंत्री ने कई भारतीय विश्विद्यालयों में एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया है. जिसका मतलब है कि ताइवान शैक्षिक सहयोग को मजबूत करने को लेकर भी प्रतिबद्ध है.

भारत के पूर्व सैन्य अधिकारियों का ताइवान दौरा

चीन की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए अगस्त में भारत के तीन पूर्व सैन्य अधिकारियों ने ताइपे में ताइवानी अधिकारियों द्वारा आयोजित एक सुरक्षा वार्ता में हिस्सा लिया था. हालांकि, भारत के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की ओर से कहा गया था कि यह एक निजी दौरा था. लेकिन कुछ रिपोर्टों में यह दावा किया गया कि ताइवान के रक्षा मंत्रालय के एक थिंक टैंक, राष्ट्रीय सुरक्षा और सुरक्षा अनुसंधान के साथ बंद कमरे में बातचीत हुई.

ताइवान के साथ रिश्तों पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

विशेषज्ञों का मानना है कि ताइवान के साथ भारत के रिश्तों में गर्माहट की वजह जून 2020 में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प है. ताइवान बेस्ड पत्रकार सुवम पॉल का कहना है कि इस घटना के बाद ताइवान के साथ विभिन्न स्तरों पर भारत का संबंध मजबूत होना शुरू हुआ, जो अभी तक जारी है. 2020 में ही भारत ने अपने विदेशी सेवा अधिकारियों के चीनी भाषा सीखने के प्रशिक्षण केन्द्र को चीन से हटाकर पूरी तरह से ताइवान स्थानांतरित कर दिया था.

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चाइनीज स्टडीज में पीएचडी जाबिन जैकब के अनुसार, ताइवान के साथ भारत के वर्तमान संबंध सामान्य आर्थिक हितों और राजनीतिक या रणनीतिक हितों के आधार पर बढ़ रहे हैं. जिस तरह से ताइवान की कंपनियां चीन से दूरी बना रही हैं और चीन भारत के साथ-साथ ताइवान की सीमा पर भी दबाव बढ़ा रहा है. ऐसे में स्वाभाविक है कि भारत और ताइवान एक-दूसरे के और नजदीक आएंगे.

जैकब ने आगे कहा कि बीजिंग ने अक्सर यह मानने की गलती की है कि भारत की नीतियां अमेरिकी नीतियों से जुड़ी या उन पर निर्भर थीं. लेकिन अमेरिका से भी लगभग 30 साल पहले यानी 1950 में ही भारत ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और इसकी वन-चाइना पॉलिसी को आधिकारिक तौर पर मान्यता दे दी थी. यहां तक कि शीत युद्ध के दौरान भारत ने ताइवान के साथ कोई आधिकारिक संबंध नहीं रखा था. 

हालांकि, 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद भारत ने पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए लुक ईस्ट पॉलिसी लॉन्च की. इस पॉलिसी के तहत चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारत ने एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरने की कोशिश की. आगे चलकर भारत और ताइवान ने एक-दूसरे की राजधानी में प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित किए. 

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वहीं, वॉशिंगटन थिंक टैंक के सदस्य जेफ स्मिथ का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से भारत, चीन की वन चाइना पॉलिसी को लेकर सतर्क और संवेदनशील है. हालांकि, ताइवान का राजनयिक वर्चस्व सिकुड़ रहा है. अभी केवल एक दर्जन देश ही ताइवान को एक संप्रभु देश के रूप में मान्यता दे रहे हैं. 

जून 2020 में क्या हुआ था?

जून 2020 में हुई गलवान हिंसा के बाद से ही भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर है. इस झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. भारत चीन के साथ 3488 किलोमीटर लंबी बॉर्डर साझा करता है. पूरी तरह से सीमांकन नहीं होने की वजह से कई इलाकों में भारत और चीन के बीच मतभेद हैं. चीन भारत के हजारों किलोमीटर हिस्से पर अपना दावा करता है.

भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश के करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन अपना दावा करता है. चीन इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है. चीन तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच 1914 में तय हुई मैकमोहन रेखा को भी नहीं मानता है. हाल ही में चीन ने अरुणाचल के कुछ स्थानों का नाम भी बदला है. जबकि, भारत की ओर से साफ किया जा चुका है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अटूट हिस्सा है.

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