scorecardresearch
 

मौत के मुंह से बचे निकले लोगों की जुबानी भूकंप की त्रासदी

नेपाल में 25 अप्रैल को आए 7.9 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप में इस त्रासदी के अनुभवों को साझा करने वाले काफी लोग हैं. ऐसे ही एक व्यवसायी अनिल थपलियाल हैं, जो इस हादसे में बाल-बाल बचे हैं.

Advertisement
X
भूकंप के सात दिन मलबे से जिंदा निकलने वाले 105 साल के बुजुर्ग
भूकंप के सात दिन मलबे से जिंदा निकलने वाले 105 साल के बुजुर्ग

नेपाल में 25 अप्रैल को आए 7.9 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप में इस त्रासदी के अनुभवों को साझा करने वाले काफी लोग हैं. ऐसे ही एक व्यवसायी अनिल थपलियाल हैं, जो इस हादसे में बाल-बाल बचे हैं.

Advertisement

पेशे से कारोबारी अनिल थललियल 25 अप्रैल को अपने परिवार और दोस्तों सहित अन्य 35 लोगों के साथ लामजुंग के दौरे पर थे. काठमांडू से लामजुंग जिला लगभग 85 किलोमीटर दूर है और यह भूकंप का केंद्र भी था. इस भूकंप में 7,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई और लगभग 14,000 लोग घायल हो गए.

अनिल ने बताया, 'हम बस से यात्रा कर रहे थे. हमने महसूस किया कि बस हिल रही है. हमने पहले सोचा कि बस चालक शराब के नशे में है, लेकिन बाद में महसूस किया कि जमीन हिल रही है. डर की वजह से सभी बस से उतर गए और अपना बचाव करने की कोशिश करने लगे. हमारे एक तरफ गहरी खाई और दूसरी तरफ पहाड़ था. उस रात भूकंप से बाल-बाल बचते हुए हमारी घर लौटने की हिम्मत ही नहीं हुई.'

Advertisement

अनिल ने बताया, 'हम सभी बहुत डर गए थे और लामजुंग में अपने घर लौटने का विचार मन में लाने से कतरा रहे थे.' अनिल का परिवार काठमांडू से लगभग 100 किलोमीटर दूर चितवन में अपने दूसरे घर में रह रहा है. उनकी पत्नी ने बताया, 'हमने फिलहाल यहीं रहने का फैसला किया है.' चितवन में भी भूकंप से काफी लोग प्रभावित हुए हैं.

मारिया सुब्बा के छह वर्षीय बेटे ने स्कूल जाने से मना कर दिया है. दरअसल, जब भूकंप आया तो यह बच्चा स्कूल में था. सुब्बा का कहना है कि भूकंप के बाद से इसे भूख भी नहीं लगती. इस त्रासदी के लगभग 10 दिन बाद भी लोगों के जेहन से इसका खौफ नहीं उतर रहा है. हालांकि नेपाल के कुछ हिस्सों में जीवन धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है.

काठमांडू इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाले बैजनाथ अग्रहरि का कहना है कि भूकंप के बाद से वह सो नहीं पाए हैं. जिस समय भूकंप आया, उस समय वह अपने दोस्तों के साथ अपने घर पर थे. नेपाल में अभी भी काफी लोग खुले में प्लास्टिक शीट के नीचे सोने को मजबूर हैं. उन्हें दोबारा भूकंप आने का खतरा सता रहा है.

-इनपुट IANS से

Advertisement
Advertisement