नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड अपनी चार दिवसीय भारत यात्रा खत्म कर शनिवार को अपने देश पहुंच गए. उन्होंने अपनी भारत यात्रा को सफल बताया है लेकिन उनकी इस यात्रा को लेकर विपक्ष अब भड़क गया है और उन पर आरोप लगाया है कि उन्होंने खुद को भारत के हाथों पूरी तरह से बेच दिया है. नेपाल की सभी विपक्षी दल एकजुट होकर भारत के साथ सीमा विवाद का मुद्दा न उठाने को लेकर प्रचंड की कटू आलोचना कर रहे हैं.
रविवार को नेपाल की सभी बड़ी विपक्षी पार्टियों- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (UML), राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी और नेपाल मजदूर किसान पार्टी ने प्रतिनिधि सभा को चलने नहीं दिया और सभा के अध्यक्ष से मांग की कि उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए सोमवार को प्रधानमंत्री प्रचंड को सोमवार को सदन में बुलाया जाए.
हंगामे को देखते हुए प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष देवराज घिमिरे ने सदन को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया.
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, UML के मुख्य व्हिप पदम गिरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि प्रचंड को भारत दौरे से पहले जो ब्रीफ किया गया था, उन्होंने उसका पालन नहीं किया.
उन्होंने कहा कि प्रचंड ने राष्ट्रीय हितों की कीमत पर भारत के साथ सीमा विवाद के मुद्दे पर बात करने से इनकार किया है. उन्होंने नए संसद भवन में लगे 'अखंड भारत' के भित्ति चित्र में कथित रूप से गौतम बुद्ध के जन्म स्थान लुंबिनी और कपिलवस्तु को दिखाए जाने को लेकर प्रचंड की चुप्पी पर भी सवाल उठाए. उनका कहना था कि भित्ति चित्र को लेकर पीएम प्रचंड को पीएम मोदी से बाद करनी चाहिए थी.
नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने लगाई नागरिकता संशोधन बिल पर अंतरिम रोक
इसी बीच नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने उस नागरिकता संशोधन बिल पर अंतरिम रोक लगा दी है जिसे नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने प्रचंड के भारत दौरे से ठीक पहले मंजूरी दी थी. जस्टिस मनोज कुमार शर्मा की एकल पीठ ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर रविवार को अंतरिम रोक लगा दी.
नेपाल के नागरिकता कानून में यह संशोधन हमेशा से ही विवादित रहा है जो नेपालियों से शादी करने वाले विदेशियों को राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ उन्हें नागरिकता भी प्रदान करता है.
चीन इस कानून का हमेशा से विरोध करता रहा है क्योंकि अगर नेपाल इस कानून को लागू करता है तो इससे तिब्बती शरणार्थियों के परिवारों को नेपाली नागरिकता मिल जाएगी जो चीन के लिए परेशानी का सबब होगा. चीन तिब्बत पर अपना अधिकार जताता रहा है और वो नहीं चाहेगा कि तिब्बत से आकर नेपाल में बसे लोगों को नेपाल की नागरिकता मिल जाए.
बिल को मंजूरी देना भारत को खुश करने की कोशिश थी?
नेपाल की पू्र्व राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने इस बिल को दो बार अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया था. लेकिन राष्ट्रपति पौडेल ने इसे अपनी मंजूरी दे दी है और वो भी तब जब प्रचंड भारत दौरे पर जा रहे थे. बिल को मंजूरी देने की टाइमिंग पर भी नेपाल में सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि माना जा रहा है कि ऐसा करके प्रचंड ने भारत को खुश करने की कोशिश की है.
भारत ने करीब पांच सालों पहले नेपाल से अपनी इच्छा जताई थी कि वो भारत से सटे तराई में लोगों को नागरिकता दे दे. नेपाल के नागरिकता कानून में अगर वर्तमान संशोधन लागू हो जाता तो तराई के लोगों को नेपाली नागरिकता मिल जाती.
इस विधेयक का नेपाल में कई हलकों में विरोध हो रहा है. नेपाल के प्रमुख वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने विधेयक की संवैधानिकता पर चिंता जताई है. एडवोकेट सुरेंद्र भंडारी और बालकृष्ण नुपाने ने नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर कहा कि राष्ट्रपति पौडेल का बिल को मंजूरी देना संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है.
याचिका में दावा किया गया कि नागरिकता कानून में यह संशोधन नेपाल की संवैधानिक अखंडता पर हमला करता है और इसे गलत संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर मान्य किया गया था. दोनों अधिवक्ताओं ने इस संशोधन को लागू न करने की अपील की जिसे अदालत ने स्वीकार करते हुए इस पर रोक लगा दी है.
मंदिर जाने पर भी प्रचंड की हुई आलोचना
अपनी भारत यात्रा के दौरान प्रचंड ने उज्जैन में महाकाल के भी दर्शन किए. प्रचंड की छवि नेपाल में एक मजबूत माओवादी नेता की है और उनका मंदिर जाना नेपाल में बहुत से लोगों को रास नहीं आया. उनका मंदिर जाना इसलिए भी विवादों में आ गया क्योंकि उन्होंने राजशाही खत्म कर एकमात्र हिंदू राष्ट्र नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.
डेनमार्क में नेपाल के पू्र्व राजदूत प्रोफेसर विजय कांत ने कहा कि प्रचंड का अपने आधिकारिक दौरे में मंदिर जाना उनका कम्युनिस्ट छवि के अनुकूल नहीं है.
उन्होंने कहा, 'वो भारत में अपनी आधिकारिक यात्रा पर हैं और हमें खुशी होती अगर वो महाकाल मंदिर जाने के बजाए बिजनेस मीटिंग्स के लिए मुंबई या हैदराबाद जाते. नेपाल की अर्थव्यवस्था को विकास की जरूरत है और उनका फोकस इसी पर होना चाहिए था.'
नेपाली व्यापार संगठन के एक सदस्य ने कहा, 'हमें खुशी होती अगर वो किसी धार्मिक स्थल पर जाने के बजाए बिजनेस मीटिंग्स के लिए जाते, खासकर तब जब कि वो एक कम्युनिस्ट नेता हैं.'