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प्रचंड के भारत दौरे के बीच नेपाल ने उठाया ऐसा कदम, चीन होगा नाराज

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड चार दिवसीय भारत दौरे पर हैं. उनके इस दौरे को भारत से संबंध मजबूत करने की दिशा में नेपाल का एक कदम माना जा रहा है. इस दौरे से ठीक पहले नेपाल ने ऐसा काम किया है जिससे चीन नाराज हो सकता है.

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पीएम मोदी के साथ नेपाली पीएम प्रचंड (Photo- PTI)
पीएम मोदी के साथ नेपाली पीएम प्रचंड (Photo- PTI)

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' चार दिवसीय दौरे पर बुधवार को भारत पहुंचे हैं. गुरुवार को प्रचंड ने पीएम मोदी से मुलाकात के दौरान ऊर्जा, व्यापार और कनेक्टिविटी पर बात की. नेपाली पीएम के भारत दौरे से कुछ घंटे पहले ही नेपाल के राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने नागरिकता कानून में एक विवादास्पद संशोधन को अपनी सहमति दे दी है जो नेपालियों से शादी करने वाले विदेशियों को राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ उन्हें तुरंत नागरिकता प्रदान करता है.

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चीन नेपाल के इस कानून का हमेशा से विरोध करता रहा है और माना जा रहा है कि नेपाल के इस कदम से वो नाराज है. इन परिस्थितियों में नेपाली पीएम का भारत दौरा बेहद अहम माना जा रहा है. दिसंबर 2022 में प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के बाद प्रचंड की यह पहली विदेश यात्रा है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस नागरिकता संशोधन पर नेपाल की पूर्व राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने दो बार सहमति जताने से इनकार कर दिया था. माना गया कि चीन के प्रभाव में उन्होंने इसे मंजूरी नहीं दी थी. 

नेपाली कानून में यह संशोधन नेपाल के नागरिकता कानून को दुनिया के सबसे उदार कानूनों में से एक बनाता है. राष्ट्रपति पौडेल के कानून को अपनी सहमति देने से चीन परेशान हो सकता है. चीन इन कानून को लेकर नेपाल को चेतावनी देता आया है कि यह कानून तिब्बती शरणार्थियों के परिवारों को नागरिकता और संपत्ति का अधिकार दे सकता है.

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Photo- Reuters

प्रचंड से मुलाकात के बाद पीएम मोदी क्या बोले?

नेपाली पीएम के साथ एक साझा प्रेस मीट के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि नेपाल और भारत के संबंध 'हिट' हैं.

उन्होंने कहा, 'जब 2014 में प्रधानमंत्री बनने के तीन महीनों के भीतर मैं नेपाल दौरे पर गया था जब मैंने भारत और नेपाल के संबंधों के लिए एक हिट (HIT- Highways, Information highways, Transways) फॉर्मूला दिया था. हमने कहा था कि हम दोनों देशों के बीच ऐसे संपर्क स्थापित करेंगे कि हमारे बॉर्डर्स, हमारे बीच की रुकावट न बने. ट्रकों की जगह पाइपलाइन से तेलों का निर्यात होना चाहिए, साझा नदियों के ऊपर बांध बनाए जाने चाहिए, नेपाल से भारत को बिजली निर्यात करने के लिए सुविधाएं बनाई जानी चाहिए. आज नौ सालों बाद मुझे कहते हुए खुशी हो रही है कि हमारी पार्टनरशिप वाकई में हिट है.'

पीएम मोदी ने कहा कि पिछले नौ सालों में भारत और नेपाल ने मिलकर कई क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल की है. उन्होंने आगे कहा, 'मैंने और प्रधानमंत्री प्रचंड ने भविष्य में अपनी साझेदारी को सुपरहिट बनाने के लिए बहुत से महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं. हमने ट्रांजिट एग्रीमेंट शामिल है जिसमें नेपाल के लोगों के लिए नए रेल मार्गों के साथ-साथ भारत के इन-लैंड वाटरवेज की सुविधा का भी प्रावधान किया गया है. साथ ही भारतीय रेल संस्थानों में नेपाल के रेल कर्मियों को प्रशिक्षित करने का भी निर्णय लिया गया है.'

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पीएम मोदी ने जानकारी दी कि प्रचंड से द्विपक्षीय बातचीत के दौरान दोनों पक्षों के बीच लॉन्ग टर्म पावर समझौता हुआ है. इसके तहत आने वाले 10 सालों में भारत ने नेपाल से 10 हजार मेगावाट बिजली आयात करने का लक्ष्य रखा है.

भारत के साथ प्रचंड के रिश्ते

नेपाली पीएम प्रचंड का रिश्ता भारत के साथ बहुत पुराना है. नेपाल में 1996 से लेकर 2006 तक गृहयुद्ध का दौर था. यह गृहयुद्ध नेपाल की राजशाही और माओवादियों के बीच चल रहा था. इस दौरान प्रचंड समेत कई माओवादी नेता अपना देश छोड़कर भारत में रह रहे थे.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ प्रचंड (Photo-@JPNadda/Twitter)

नेपाल के लोगों में जब माओवादियों के खिलाफ गुस्सा बढ़ा तब भारत ने ही प्रचंड समेत नेपाल के माओवादी नेताओं से शांति समझौते पर बात की थी. नवंबर 2006 में नई दिल्ली में माओवादियों की सात पार्टियों ने 12 सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किया था. इस समझौते के बाद नेपाल में आम चुनाव हुए जिसमें माओवादियों को जनता का भारी समर्थन मिला. माओवादी चुनाव जीत गए और प्रचंड पहली बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने.

प्रचंड जब 2008 में पहली बार प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने भारत आने के बजाए चीन जाना पसंद किया था. जबकि नेपाल में यह परंपरा रही है कि कोई भी शीर्ष नेता पद ग्रहण करने के बाद सबसे पहले भारत की यात्रा करता है. प्रचंड ने उस परंपरा को चीन के प्रभाव में आकर तोड़ दिया था.

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प्रचंड भारत को लेकर पूर्व में कई ऐसे बयान दे चुके हैं जिससे दोनों देशों के रिश्तों पर असर पड़ा. एक बार उन्होंने कहा था कि भारत और नेपाल के बीच जो भी समझौते हुए हैं, उन्हें या तो खत्म कर देना चाहिए या बदल देना चाहिए. साल 2016-17 के बीच प्रचंड जब फिर से प्रधानमंत्री पद पर थे तब उन्होंने कहा था कि नेपाल अब वो नहीं करेगा, जो भारत कहेगा. 

'मैं बीजेपी के बुलावे पर भारत आया हूं' 

साल 2017 में प्रचंड से नेपाल की सत्ता छिन गई और नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बन गए. प्रचंड ने जब देखा कि भारत के साथ रिश्ते खराब कर उनका राजनीतिक नुकसान हो रहा है, तब उन्होंने एक बार फिर भारत से रिश्ते सुधारने की कोशिशें शुरू कर दी. जुलाई 2022 में उन्होंने भारत का दौरा किया. इस दौरे को लेकर प्रचंड ने कहा कि वो बीजेपी के बुलावे पर भारत आए हैं. इस दौरे में उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की.

प्रचंड की कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (CNP) के एक वरिष्ठ नेता गणेश शाह ने कहा था कि इस दौरे का उद्देश्य भाजपा और CNP के बीच संबंधों को मजबूत करना था. प्रचंड के आलोचकों ने तब कहा था कि वह भारत इसलिए गए थे ताकि प्रधानमंत्री बनने की अपनी निजी महत्वाकांक्षा को पूरा कर सके. वो भारत से मदद की मांग करने वहां गए थे.

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Photo- Reuters

चीन के समर्थक प्रचंड अब भारत के साथ रिश्ते बढ़ाने की कोशिश में

पहले माना जाता था कि चीन के समर्थक प्रचंड अमेरिका और भारत को साम्राज्यवादी और आधिपत्यवादी ताकतों के रूप में देखते हैं. हालांकि, अब प्रचंड भारत को आश्वस्त करते नजर आते हैं कि चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत के साथ संबंधों को बढ़ाएंगे. अब वह भारत आने के लिए उत्सुक दिखते हैं और भारत की यात्रा को लेकर उन्होंने कहा है कि वो द्विपक्षीय संबंधों में कुछ बड़ा करना चाहते हैं.

पिछले साल फरवरी में प्रचंड ने चीन को झटका देते हुए अमेरिका के साथ सहयोग प्रोजेक्ट Millennium Challenge Corporation  Nepal Compact को संसद में पारित करा दिया था. इस प्रोजेक्ट के तहत नेपाल को ऊर्जा और परिवहन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 50 करोड़ का ग्रांट मिला था. चीन का मानना था कि इसके माध्यम से अमेरिका नेपाल में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाएगा और वहां से तिब्बत के जरिए उसे प्रभावित करने की कोशिश करेगा.

बुधवार को राष्ट्रपति पौडेल द्वारा नागरिकता कानून को मंजूरी दिए जाने को भारत और अमेरिका के साथ रिश्तों में एक और कदम आगे बढ़ाए जाने के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, राष्ट्रपति की मंजूरी को अदालत में चुनौती दी जा सकती है, और राजनीतिक हलकों में भी इसका विरोध हो सकता है.

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अब प्रचंड चाहते हैं कि भारत उन्हें दोस्त के रूप में देखे. अपनी इस भारत यात्रा के दौरान प्रचंड इंदौर और उज्जैन के शिव मंदिर में जाएंगे. इसके जरिए प्रचंड दिखाना चाहते हैं कि वो नेपाली हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करते हैं.

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