नेपाल, हिमालय की गोद में बसा एक छोटा सा देश. अपनी सभ्यता और संस्कृति के मामले में अनूठा देश. राजा-रानी की कहानी सुनकर बड़े होने वाले 90 के दशक तक में पैदा होने वाले बच्चों के लिए नेपाल वो देश था, जहां वे हकीकत में राजा-रानी का होना देख सकते थे. समय का वो दौर ऐसा था जब टेक्नॉलजी धीरे-धीरे लोगों तक पहुंच ही रही थी और बच्चे सोने से पहले कहानी सुनने की जिद किया करते थे. कई बार उन्हें टालने के लिए कहानी कुछ यूं कही जाती थी.
एक था राजा, एक थी रानी... दोनों मर गए खत्म कहानी...
सोचकर ही सिहरन सी दौड़ जाती है कि एक रात ये कहानी सच हो गई. राजा-रानी दोनों मर गए और सिर्फ वही दोनों नहीं मरे, उनके साथ मर गए शाही परिवार के सात अन्य लोग भी और नेपाल के लिए सच में उस रात कहानी खत्म सी हो गई.
राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है नेपाल
आज नेपाल जब अपने राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है, लोकतंत्र खत्म कर शाही शासन की वापसी के लिए लोगों की भीड़ सड़कों पर उतर आई है और नेपाल के आखिरी राजा रहे ज्ञानेंद्र सुर्खियों में हैं तो नेपाल के शाही परिवार के हत्याकांड की ये कहानी फिर से जेहन में तैर जाती है.
1 जून 2001. भारत में यह प्रचंड गर्मियों वाले दिन थे, साथ ही उन तैयारियों के भी जो मानसून आने से पहले प्रशासन करने लगता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के जिन जिलों की सीमाएं नेपाल से लगती हैं, उनके लिए जून का महीना इसी परेशानी का हल खोजने में बीतता है कि नेपाल की नदियों से आने वाली बाढ़ से तराई के ये इलाके कैसे बचेंगे.
लेकिन इससे उलट उस रोज नेपाल के शाही परिवार में तो और ही नजारा था. बाढ़ वहां भी थी, लेकिन खून की. खून किसका? खुद शाही परिवार का और इस खूनी नदी में डूबते-उतारते पड़े थे एक-दो या तीन नहीं पूरे नौ शव.
इस हत्याकांड पर आज भी सवालिया निशान
उस रात क्या हुआ, कैसे हुआ, किसने किसने किया और क्यों किया? ये चार सवाल आज भी सिर्फ थ्योरी हैं. सच क्या है, कोई नहीं जानता. नेपाल के शाही परिवार पर उस रात क्या बीती और शाही हत्याकांड से किसे कितने फायदा मिला. क्या ये सिर्फ उत्तेजना में हो गई दुर्घटना थी या फिर सोची समझी साजिश, जिसमें रॉयल फैमिली के बीच चल रहे एक विवाद को जरिया बनाकर उनके ही जरिए उन्हें खत्म करा दिया गया. सारी बातें एक बड़े सवालिया निशान के साथ नेपाल के नक्शे पर आज भी मौजूद हैं.
2 जून 2001 को बीबीसी ने इस घटना को वैश्विक तरीके से सबसे पहले प्रसारित किया था. हालांकि नेपाल के आधिकारिक रेडियो पर ये खबर हत्याकांड के 14 घंटे बाद सुबह 11 बजे के करीब प्रसारित की गई. इस खबर में ये बताया गया कि महाराजा बीरेंद्र बिक्रम शाह का निधन हो गया.
नेपाल में चीन के राजदूत का संस्मरण
उस वक्त में नेपाल में मौजूद चीन के राजदूत रहे Zeng Xuyong, (former Chinese Ambassador to Nepal (1998-2001)) ने एक न्यूज वेबसाइट के साथ शेयर किए अपने संस्मरण में 2 जून का जिक्र कुछ यूं किया था. '2 जून, 2001 की सुबह, एक नेपाली मित्र ने हमारे दूतावास को सूचित किया कि पिछले रात महल में एक भयानक हत्याकांड हुआ था. युवराज दीपेंद्र ने राजा बीरेंद्र सहित शाही परिवार के कई सदस्यों को गोली मार दी.
फोन पर यह खबर सुनकर, मैंने तुरंत राजनीतिक सलाहकार और अन्य लोगों से स्थिति का पता लगाने और बीबीसी, सीएनएन जैसे विदेशी मीडिया और नेपाली रेडियो और टेलीविजन से संबंधित समाचार रिपोर्टों को लगातार फॉलो करने के लिए कहा. दूतावास ने नेपाली सेना के दो परिचित नेताओं को फोन किया, लेकिन दोनों की ओर से बताया गया कि वे घर पर नहीं हैं. इससे ये तो तय हो गया कि कुछ न कुछ जरूर हुआ है. जल्द ही, बीबीसी ने सबसे पहले नेपाल के महल में हुई त्रासदी की खबर को सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट किया.'
क्या हुआ था 1 जून 2001 की उस रात?
उस रात नारायणहिती महल (राजशाही का पैलेस) अपने सभी पारिवारिक सदस्यों के लिए खास तौर पर सजा हुआ था. यहां पारिवारिक भोज का आयोजन किया जाना था, इसलिए अलग-अलग जगहों पर व्यस्त परिवार के सदस्य भी महल पहुंच गए थे, लेकिन चहल-पहल के बजाय महल में शांति थी. कहते हैं कि इस डिनर के लिए होने वाले जुटान से पहले युवराज दीपेंद्र और महारानी ऐश्वर्या के बीच तल्ख बहस हुई थी.
बेटा अपनी पसंद की लड़की से शादी करना चाहता था, मां मान नहीं रही थीं. यह झगड़ा पिछले एक या दो सालों में शुरू हुआ था और बीते छह महीनों में काफी तल्ख हो चला था. फैमिली डिनर इसी तल्खी के बीच किया जा रहा था. शाही परिवार हर महीने के किसी खास शुक्रवार को ये फैमिली डिनर आयोजित करता था, इसलिए इस दौरान इसमें वही लोग शामिल होते थे जो राजपरिवार के सदस्य थे. किसी तरह के अंगरक्षक और अन्य सैन्य सदस्य वहां नहीं होते थे.
सबसे पहले महाराज की हत्या
जोनाथन ग्रेगसन अपनी किताब 'मैसेकर ऐट द पैलेस में' उस रात का जिक्र कुछ यूं करते हैं. युवराज दीपेंद्र शाम से ही नशा करने लगे थे और बेकाबू थे. कमीज़ और पतलून पहने हुए युवराज अपने एडीसी मेजर गजेंद्र बोहरा के साथ शाम 6:45 मिनट पर ही बिलियर्ड्स रूम पहुंच चुके थे. उन्होंने मेजर बोहरा के साथ कुछ देर बिलियर्ड्स के कुछ शॉट्स की प्रैक्टिस की थी.
इसके बाद धीरे-धीरे राजपरिवार के सदस्य भी इस आयोजन वाली जगह पहुंचे. महारानी एश्वर्या, महाराज की बहनों के साथ वहां पहुंचीं. महाराज एक पत्रिका को इंटरव्यू दे रहे थे और उन्हें आने में थोड़ी देरी हो रही थी. कुछ ही मिनटों में दीपेंद्र के चचेरे भाई राजकुमार पारस भी अपनी मां और पत्नी के साथ वहां पहुंच गए. इंटरव्यू के बाद महाराज पैदल ही अपने एडीसी सुंदर प्रताप राणा के साथ दरवाजे तक आए. क्योंकि ये एक निजी पार्टी थी और वहां बाहरी लोगों को रहने की अनुमति नहीं थी, इसलिए सुंदर प्रताप वहां से चले गए. महाराज सीधे अपनी मां के पास गए.
इस दौरान लोगों ने देखा कि युवराज की जुबान लड़खड़ा रही है. वह चीखे, कुछ बोलना चाहा, लेकिन लड़खड़ा कर गिर पड़े. सबकी मौजूदगी में वह मां-पिता पर चीखा तो उसे चचेरे भाई पारस और प्रिंस निराजन ने कुछ अन्य लोगों की मदद से उसके कमरे में पहुंचा दिया. कहा जाता है कि, युवराज दीपेंद्र ने उस दौरान अपनी प्रेमिका से फोन पर बात की और उनसे सोने जाने की बात कही.
"के गारदेको... महाराज के आखिरी शब्द
लेकिन, इसके कुछ देर बाद नारायणहिती पैलेस में अलग ही नजारा था. युवराज दीपेंद्र अपने कमरे से निकल आए थे. एक खानसामे ने उन्हें बिलियर्ड्स रूम की ओर जाने वाली सीढ़ी पर देखा तो उसे इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं लगा कि युवराज सैन्य वर्दी में हैं. बूट पहने हुए हैं और उनके हाथ में हैं, जर्मन सब-मशीन गन और एक राइफल. ऐसा इसलिए क्योंकि वह अपने बंदूकों के शौक के बारे में जाने जाते थे.
बिलियर्ड्स रूम पहुंचकर युवराज ने अपने पिता नेपाल नरेश की ओर देखा और जर्मन सब मशीन गन का ट्रिगर दबा दिया. जोनाथन ग्रेगसन अपनी किताब में लिखते हैं कि नेपाल नरेश बिलियर्ड्स की मेज के बगल में बिना हिले-डुले खड़े रहे, फिर वे दीपेंद्र की तरफ आगे बढ़े, प्रिंस दीपेंद्र ने महाराजा पर तीन गोलियां दाग दीं. वे स्लो मोशन में जमीन पर गिरे और बोले- "के गारदेको" यानी "तुमने क्या कर दिया?" ये उनके आखिरी शब्द थे.
इसके बाद प्रिंस के सिर पर भूत सवार हो गया. उनकी ताबड़तोड़ गोलियों का शिकार हुईं बहन श्रुति और चचेरे भाई पारस की मां. इतना सबकुछ देखकर चाचा धीरेंद्र आगे बढ़े और उन्होंने कहा कि, अब बस बहुत हो गया. अपनी बंदूक मुझे दे दो, लेकिन युवराज ने उन पर बेहद पास से गोली दाग दी. वह दूर जाकर गिरे. इसी दौरान प्रिंस पारस चिल्लाए और सभी को सोफे की आड़ में आने को कहा. दीपेंद्र ने फिर से गोलियों की बौछार कर दी. इस बार इसकी जद में महाराज की दो बहनें आ गईं.
युवराज दीपेंद्र अब गार्डन की ओर बढ़े. उन्हें रोकने के लिए उनकी मां ऐश्वर्या उनके पीछे गईं. शायद उन्हें उम्मीद रही होगी कि उनका बेटा उन पर गोली नहीं चलाएगा, लेकिन यह बस एक गलतफहमी थी. युवराज ने उन पर भी फायर किया, लेकिन इस बीच छोटे भाई निराजन मां के सामने आ गए और मारे गए. दीपेंद्र की गोली का अगला शिकार महारानी एश्वर्या ही थीं. गोली ने उनके चेहरे के बाएं हिस्से को लगभग उड़ा दिया और वह गिर पड़ीं.
अब युवराज गार्डन में बने एक पूल के पुल पर पहुंचे और जोर से चीखे. इसके बाद उन्होंने एक गोली अपनी कनपटी पर मार ली. दाएं कान के ऊपर से घुसी गोली, बाएं कान के ऊपर से पार हो गई. युवराज दीपेंद्र अचेत होकर गिर पड़े. इस तरह राजशाही परिवार के 9 सदस्य उस रात सिर्फ एक सनक की भेंट चढ़ गए.
प्रेमिका को लेकर झगड़ा क्यों था?
असल में युवराज दीपेंद्र जिन देवयानी से इश्क फरमा रहे थे वह नेपाल के राणा खानदान से थीं. मां ने जो लड़की प्रिंस के लिए चुनी, वह राजमाता रत्ना की बहन के खानदान की थीं यानी राजघराने की. राजघराने में अगर दुल्हन आएगी तो प्रतिष्ठित राजघराने से ही. राजघराने की यही प्रतिष्ठा लड़ाई में तब्दील हो गई, और लड़ाई खूनी अंजाम तक पहुंच गई. दबी जुबान में ऐसा कहते हैं. इस घटना के तमाम कारण सामने आते रहे. जितने मुंह उतनी कहानियां. आलम यह है कि आज घटना के 25 साल पूरे हो गए, लेकिन सच, सच नहीं, बल्कि अलग-अलग थ्योरी में बंटा हुआ है.
इस घटना के पीछे प्रेम प्रसंग वाली थ्योरी सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी है. लेकिन कहते हैं कि यही पूरी बात नहीं है. दरअसल दीपेंद्र अपनी मां से ही नहीं अपने पिता से भी नाराज थे. युवराज दीपेंद्र, नेपाली की रॉयल सेना के लिए जर्मनी से पचास हजार रायफल खरीदना चाहते थे, लेकिन राजा ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. यह तर्क देने वाले कहते हैं कि इस सौदे से युवराज को डेढ़ करोड़ डॉलर का फ़ायदा मिलता, लेकिन पिता के इनकार से वे काफी नाराज थे.
सवालों के घेरे में रहे छोटे भाई पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र
कहानियां इतनी बढ़ चुकी हैं कि इस कांड पर केंद्रित उपन्यास भी लिखे गए हैं. पेश से पत्रकार कृष्णा अबिरल ने ऐसा ही एक नॉवेल लिखा है रक्तकुंड. उन्होंने राजमहल की महिला कर्मी से बात के आधार पर अपना कथानक गढ़ा. उन्होंने लिखा कि दीपेंद्र ने नहीं बल्कि उनके वेश में दो नकाबपोशों ने गोलियां बरसाईं. यह तथ्य भी रहस्य है. सच नहीं.
लेकिन बात रहस्य की होती है तो नेपाल नरेश के भाई ज्ञानेंद्र इससे बच नहीं पाते हैं. सवाल उठता है कि उस रात महल से नरेश के दूसरे भाई और तब राजकुमार रहे ज्ञानेंद्र कहां थे. जिस दिन पैलेस में फेमिली गेट टूगेदर था और जिस रात यह हादसा हुआ उस वक्त राजकुमार ज्ञानेंद्र वहां नहीं थे. उनका बेटा पारस भी इस हादसे में बिल्कुल साफ बच गया था, उसे एक खरोंच भी नहीं आई थी. ज्ञानेंद्र की अनुपस्थिति आज भी नेपाल में सवाल बनकर तैरती है. वहीं नेपाल की प्रजा भी दीपेंद्र पर लगे आरोप को सही नहीं मान पाती हैं.
शाही परिवार की हत्या के वक्त नेपाल राजपरिवार के प्रिंस पारस की भूमिका पर उंगली उठी थी. जब हादसा हुआ राजकुमार पारस शाही महल में मौजूद था लेकिन उसे खरोंच तक नहीं आई. पहले भी कई मामलों में बदनाम पारस के मिज़ाज, करतूतों और अतीत को देखकर पारस पर शक किया गया.
कोमा की हालत में 54 घंटे का राजा रहा युवराज दीपेंद्र
इस हत्याकांड के बाद नरेंश बीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र की ताजपोशी हुई. इससे पहले बेहोशी की हालत में ही 2 जून को युवराज दीपेंद्र को ही नेपाल का नया राजा बनाया गया था. उस वक्त प्रसारित खबर में भी इसकी जानकारी दी गई थी कि राजा के निधन के बाद उनके बेटे को राजा बनाया गया, लेकिन वह अभी राज्य संचालन की स्थिति में नहीं हैं. आखिर 4 जून की सुबह उसे भी ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया. वह सिर्फ 54 घंटे का राजा रहा. इसके बाद 4 जून को महाराजा वीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह को नेपाल का नया राजा नियुक्त किया गया. इस तरह 1 जून से लेकर 4 जून तक नेपाल में 3 राजा हुए.
लेकिन राजशाही अधिक दिनों तक नहीं चली. 2008 में नेपाल में राजशाही समाप्त होने के बाद उनसे नरेश के सारे अधिकार छीन लिए गए थे.
2008 में माओवादी सरकार बनने के साथ ही इस बात की घोषणा हुई थी कि शाही हत्याकांड की फिर से और पूरी जांच होगी. लेकिन नेपाल की सरकारें ही अभी तक ठीक से जम नहीं पाई है जांच क्या ही होगी. राजशाही हत्य़ाकांड को अब 25 साल होने वाले है. नेपाल राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है. हत्याकांड पूरी तरह से कभी खुलेगा, या रहस्य बन जाएगा, कुछ पता नहीं... लेकिन जब-जब नेपाल में अस्थिरता की हालत होती है तो शाही हत्याकांड जिंदा हो उठता है.