नेपाल (Nepal) ने अपने देश में राष्ट्रीय जनगणना (Census) कार्यक्रम की शुरुआत कर दी है. जनगणना के माध्यम से एक बार फिर नेपाल विवादित इलाके लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा पर अपना हक जताने की कोशिश कर रहा है. नेपाली अधिकारियों ने गुरुवार को कहा कि वे विवादित क्षेत्र में राष्ट्रीय जनगणना कराने के लिए भारतीय अधिकारियों ''संपर्क करने'' की कोशिश कर रहे हैं.
नेपाल के केंद्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (सीबीएस) के महानिदेशक नबीन लाल श्रेष्ठ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, "हम उन तीन क्षेत्रों में जनगणना करने के लिए, विदेश मंत्रालय के माध्यम से भारतीय अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं."
नबीन लाल श्रेष्ठ ने कहा कि वह विवादित क्षेत्रों से जानकारी जुटाने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए, सैटेलाइट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने की योजना बना रहे हैं.
सीबीएस के सूचना अधिकारी तीर्थ चौलागई ने कहा- "हमें डेटा इकट्ठा करने के लिए क्षेत्र में प्रवेश करना है, जिसके लिए वहां तैनात भारतीय सुरक्षा कर्मियों से अनुमति की ज़रूरत है." उन्होंने कहा कि हम इसके लिए राजनयिक चैनल से प्रयास कर रहे हैं.
चौलागाई के मुताबिक, विवादित क्षेत्र के पांच गांवों में करीब 700 से 800 लोग रहते हैं. उन घरों को जनगणना के लिए लिस्ट किया गया है.
बता दें कि गुरुवार को सीबीएस ने पहले राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी और उसके बाद प्रधान मंत्री शेर बहादुर देउबा की जानकारी जुटाकर, आधिकारिक तौर पर जनगणना की गिनती शुरू की. ये जनगणना 15 दिन तक चलेगी और 25 नवंबर को समाप्त हो जाएगी.
नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद के चलते, पिछले साल मई में, नेपाल के मंत्रिमंडल ने एक नए राजनीतिक मानचित्र जारी किया था, लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाल में दिखाया गया था. भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे "एकतरफा कार्रवाई" कहा. साथ ही, काठमांडू को आगाह किया कि क्षेत्रीय दावों का ऐसा "कृत्रिम विस्तार" उसे स्वीकार्य नहीं किया जाएगा. भारत ने भी नवंबर 2019 में एक नया नक्शा प्रकाशित किया, जिसमें इन क्षेत्रों को अपना इलाका बताया गया था.