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कब्रिस्तान के लिए जगह की ऐसी मारामारी, A4 साइज बक्सों में एडजस्ट हो रहे शव

परिजन मृतक को दफनाने की बजाए जला देते हैं और उसकी राख को किसी कलश डाल में एक खास इमारत में ले जाते हैं. ये एक तरह के बैंक हैं, जहां गहने-कागज नहीं, मृतक की राख रखी जाती है. जब भी कब्रिस्तान में स्पेस बने, परिजन इस राख को ही ले जाकर विधि-विधान से दफनाएंगे. A4 साइज के फ्यूनरल निचे की कीमत लाखों में होती है.

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शव दफनाने के लिए जगह की तंगी से दुनिया के बहुतेरे देश जूझ रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
शव दफनाने के लिए जगह की तंगी से दुनिया के बहुतेरे देश जूझ रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

बीते कुछ समय से ग्रीन डेथ की बात हो रही है. इसमें मृतक के शरीर को न तो दफनाया जाएगा, न ही जलाया जाएगा, बल्कि स्टील के डिब्बे में डालकर खाद बना दी जाएगी. ग्रीन डेथ के पक्ष में दलील है कि इससे पर्यावरण सेफ रहेगा, और अंतिम संस्कार के लिए जमीन की जरूरत खत्म हो जाएगी. बता दें कि दुनियाभर में कब्रिस्तान-श्मशान के लिए जगह की कमी हो चुकी. यहां तक कि कई जगहों पर कब्रों को कुछ साल बीतने पर हटा दिया जाता है, और नई कब्रें रखी जाती हैं, जो कि वेटिंग में चल रही हों. 

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हांगकांग इस लिस्ट में सबसे ऊपर है
सत्तर के दशक से ही वहां जमीन की कीमतें तेजी से ऊपर गईं. रहने की जगह कम पड़ने पर कई तरीके अपनाए गए, जिनमें से एक ये था कि देश में नए कब्रिस्तान नहीं बनेंगे. सरकार ने इसपर रोक लगाते हुए आदेश जारी किया कि हर 5 साल में पहले से बनी कब्र को खोदकर शव को जला दिया जाए. इससे उस खाली जगह का इस्तेमाल नई कब्र के लिए हो सकेगा. 

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हांगकांग में रहने की जगह की कमी के चलते लोग पिंजरेनुमा घरों में रहने को मजबूर हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

फिर जारी हुआ ये आदेश
लंबे समय तक लोग हालांकि ऐसा करने से बचते रहे. उन्हें डर था कि मृतक के शरीर से छेड़खानी कोई आफत न ला दे. आखिरकार साल 2015 में डायरेक्टर ऑफ फूड एंड इनवायरमेंटल हाइजीन ने कहा कि देश के सभी 6 कब्रिस्तानों में जितनी भी लाशें साल 2015 से दफन हैं, सबको निकालकर जला दिया जाए और नई कब्रों को जगह दी जाए. 

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एक और तरीका भी है, जिसे फ्यूनरल निचे कहा जाता है
इसमें परिजन मृतक को दफनाने की बजाए सीधे जला देते हैं और उसकी राख को किसी कलश में रखकर वहां देते हैं, जहां फ्यूनरल निचे का इंतजाम हो. ये एक तरह की इमारत होती है, जहां लॉकर की ही तर्ज पर बॉक्स बने होते हैं. यहां वो कलश रख दिया जाएगा. जब भी कब्रिस्तान में स्पेस बने, परिजन इस राख को ही ले जाकर विधि-विधान से दफनाएंगे. वैसे जितना आसान सुनाई दे रहा है, ये उतना है नहीं. A4 साइज के फ्यूनरल निचे की भी कीमत कई लाख में होती है. 

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मल्टी-स्टोरी बिल्डिंगों में लॉकर बनाकर अस्थियां रखी जा रही हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

ग्रेवयार्ड रिसाइक्लिंग का तरीका कई देशों में अपनाया जा चुका
कनाडा के यॉर्क यूनिवर्सिटी सेमेट्री रिसर्च ग्रुप ने लगभग एक दशक पहले ही जमीन की कमी पर बात की थी. इसके बाद लोकल अधिकारी एक्शन में आए और रिसाइक्लिंग होने लगी. यानी कब्रों के 5 साल पुराने होते ही उन्हें हटाकर नयों को स्पेस दिया जाए. जर्मनी में भी यही सिस्टम है. 

अंडरग्राउंड सुरंग बन रही
कई ऐसे भी देश हैं, जो कब्रों को छेड़ना गलत मानते हैं. ऐसे देश अलग तरीके खोज रहे हैं. जैसे इजराइल में साल 2019 में अंडरग्राउंड सुरंग बनाई गई, जहां लाशों को रखा जा सके. ये सुरंग पहाड़ों के नीचे बनी ताकि आबादी को परेशानी न हो. इसमें लंबे-लंबे हॉल हैं, जहां कब्रें रखी होंगी.

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येरूशलम में अंडरग्राउंड टनल बनी ताकि मृतकों को जगह मिल सके. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

इजरायल का दावा है कि ये दुनिया का पहला अंडरग्राउंड कब्रिस्तान है, जहां 25 हजार कब्रों को एक साथ रखा जा सकेगा, वो भी जमीन घेरे बिना. वैसे येरूशलम में ऐसे कब्रिस्तान भी हैं, जो कई मंजिला हैं ताकि जमीन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो सके. 

अमेरिका जैसे देशों में ग्रीन बरियल की बात हो रही है
अब तक 5 राज्य इसपर लॉ बना चुके, जिसके तहत शरीर को खाद बनाने के लिए छोड़ दिया जाएगा. एक तरीका और है, जिसे रेजोमेशन कहते हैं. ये ज्यादा तेज प्रक्रिया है, जिसमें पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड, पानी और टेंपरेचर की मदद से मृत शरीर को कुछ ही घंटों के भीतर खत्म कर दिया जाता है. हालांकि मृतक के परिजन इसे ज्यादा पसंद नहीं करते इसलिए रेजोमेशन पर सरकार का भी खास जोर नहीं. 
 

 

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