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मुमकिन है: हरेक मुल्क की मलाला

गोलियों की बौछार जब अरमानों को बेध न पाए, हजार धमकियां जब लक्ष्य से डिगा न पाए, सरहद की सीमाओं के पार जब बुलंद इरादों का बराबर सम्मान होने लगे... तो मुमकिन है मलाला यूसुफजई का होना. तो मुमकिन है अरमानों और लक्ष्यों का पूरा होना.

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मलाला यूसुफजई
मलाला यूसुफजई

गोलियों की बौछार जब अरमानों को बेध न पाए, हजार धमकियां जब लक्ष्य से डिगा न पाए, सरहद की सीमाओं के पार जब बुलंद इरादों का बराबर सम्मान होने लगे... तो मुमकिन है मलाला यूसुफजई का होना. तो मुमकिन है अरमानों और लक्ष्यों का पूरा होना.

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लड़कियों की शिक्षा को लेकर जिस मुल्क के सियासतदां कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे उस मुल्क की एक बच्ची ने इस मुहिम को जारी रखा था. अपने स्कूल के बंद किए जाने के बावजूद इस उम्मीद में कि एक दिन वह अपने स्कूल में फिर से पढ़ पाएगी, अपने दोस्तों के साथ फिर से खेल पाएगी. स्कूल की दर-ओ-दीवार को फिर से अपने हाथों से छूएगी, लिखेगी और सीखेगी. जिस मुहिम को चला रही थी वह मुहिम आतंकियों की दहशतगर्दी को चुनौती दे रही थी. उसके फरमान को मानने से इंकार कर रहा था. और मलाला का यह इंकार तहरीक-ए-तालिबान को नाकाबिले बर्दाश्‍त था.

9 अक्‍टूबर 2012 की वह रात शायद ही कोई भूल पाए जब मलाला की उम्‍मीदों पर घात लगाए बैठी तहरीक-ए-तालिबान ने मौका मिलते ही हमला कर दिया था. तालिबान को पसंद नहीं था लड़कियों का शिक्षित होना. तालीम के साथ-साथ मलाला की जंग मौत से भी शुरू हो गई. मुल्क के बाहर भी जीवन की दुआ मांगी जा रही थी. मलाला दूसरे मुल्क में इलाज के लिए भेजी गई. दुआ काम आई. दहशतगर्दी और कट्टरपंथ के खिलाफ उम्मीद की इकलौती आवाज फिर से उठ खड़ी हुई. लेकिन इस बार वह अकेली नहीं थी. वह पूरी दुनिया की हो चुकी थी. 09 अक्टूबर, 2012 को जिस 14 वर्षीय मलाला यूसुफजई को तालिबान ने जान से मारने की कोशिश की, वो जिंदगी की जंग जीत गई.

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...और मलाला की जिंदगी की जीत, उसका जिंदा बचना, पूरी दुनिया की लड़कियों की जीत थी. उस मुहिम की जीत थी जो लड़कियों को हर हाल में शिक्षा का अधिकार दिलाना चाहती थी. उस उम्मीद की जीत थी जो मलाला के साथ-साथ दुनिया के दूसरे मुल्क ने मलाला के जरिए जाहिर की थी.

वक्त के साथ-साथ हौसले भी बढ़े. करोड़ों लड़कियों की प्रेरणास्रोत बनी मलाला यूसुफजई अब किसी एक मुल्क‍ की सरहद से बाहर आ चुकी थी. अब वह हरेक मुल्क की मलाला थी. जिस मलाला को दहशतगर्दों ने रोकने की कोशिश वह अब हरेक मुल्क की हो गई थी. नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा ने मलाला के उस विश्वास को और मजबूत कर दिया कि तालीम किसी दहशतगर्दी और आतंक से परे, मजबूत इरादों से भरे हरेक मुल्क की लड़कियों का मौलिक अधिकार है जिसे किसी आतंक से नहीं रोका जा सकता और इसे शांति के साथ हासिल भी किया जा सकता है.

डरते हैं बंदूकों वाले एक निहत्थी लड़की से

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