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ऑपरेशन ब्लू पीकॉक, जिसमें जिंदा चिकन को हथियार बनाया गया, रूस को तबाह करने की थी योजना

उत्तरी जर्मनी में जमीन के नीचे एक खौफनाक योजना अंजाम ले रही थी. ब्रिटिश आर्मी ने सोवियत संघ के काल्पनिक हमले को नाकाम करने के लिए बारूदी सुरंग तैयार की, जिसमें परमाणु हथियार रखे जाने थे. योजना का सबसे अजीबोगरीब हिस्सा था, इसका चिकन कनेक्शन. परमाणु विस्फोट में भला जिंदा मुर्गियों का क्या काम!

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परमाणु विस्फोट में मुर्गियों के शरीर की गर्मी के इस्तेमाल की योजना बनाई गई. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
परमाणु विस्फोट में मुर्गियों के शरीर की गर्मी के इस्तेमाल की योजना बनाई गई. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

वर्ल्ड वॉर 2 के बाद चले शीत युद्ध को खत्म हुए अरसा बीता, लेकिन अब भी इस बारे में आए दिन चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं. देश हथियार-बारूद को लेकर नए-नए प्रयोग कर रहे थे, लेकिन ब्रिटिश आर्मी ने इसमें सबको पीछे छोड़ दिया. उसने सीधे मुर्गियों को परमाणु विस्फोट के लिए इस्तेमाल करने का सोचा. इस प्रोजेक्ट को मिला नाम भी उतना ही अजीब था- ऑपरेशन ब्लू पीकॉक. 

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कोल्ड वॉर के दौरान असल जंग की हो रही थी तैयारी
रूस अगर आक्रामक हो तो उसे वक्त रहते सबक सिखा दिया जाए, इस इरादे के साथ शीत युद्ध में कई देशों ने अपनी-अपनी तैयारी कर रखी थी. दरअसल दूसरे वॉर के बाद अमेरिका, यूरोप और ब्रिटेन मिलकर सोवियत संघ के खिलाफ खड़े हो गए थे. ये पूंजीवाद बनाम साम्यवाद की लड़ाई थी, जिसमें कोई सीधी लड़ाई तो नहीं हुई, लेकिन लड़ाई की पूरी तैयारी जरूर थी. ब्रिटेन का मुकुट तब अपनी चमक खोने लगा था, लेकिन जंग की बात में वो भला कहां पीछे रहता तो उसने एक खौफनाक योजना बनाई.

पचास की शुरुआत में यूनाइटेड किंगडम ने पश्चिमी जर्मनी में जमीन के नीचे एक बारूदी सुरंग बिछाई ताकि सोवियत संघ अगर यूरोप की तरफ से हमला करे तो रास्ते में ही तबाह हो जाए. इस लैंडमाइन को नाम मिला- ऑपरेशन ब्लू पीकॉक. बारूदी सुरंग पर पानी की तरह पैसे खर्चे गए. 

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खतरनाक विकिरणों के चलते रूस रहता दूर
प्रोजेक्ट को बेहद खुफिया तरीके से रॉयल आर्मेमेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (RARDE) ने डिजाइन किया. लैंडमाइन कोई मामूली बारूदी सुरंग नहीं थी, बल्कि इसका हरेक बम लगभग 8 किलोटन का था, यानी नागासाकी परमाणु हमले की आधी ताकत वाला. अगर ये विस्फोट होता तो सोवियत संघ की सेना तो तबाह होती ही, यूरोप का बड़ा हिस्सा भी रेडियोएक्टिव तत्वों का शिकार हो जाता. हालांकि तब तक ब्रिटेन इसे भी अपने हित में देख रहा था कि इसके बाद लंबे समय तक उसका खौफ सबमें रहेगा. 

operation blue peacock nuclear weapon to destroy russia after second world war
दूसरे विश्व युद्ध के बाद भी 5 दशक तक दुनिया में अगली लड़ाई की तैयारी होती रही. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

जर्मन्स तक थे अनजान
उस समय तक खुद जर्मनी को इसकी पूरी-पूरी जानकारी नहीं थी. उसे भरोसा था कि रूस से नफरत करता ब्रिटेन उसका मित्र ही रहेगा. बाद में लीक हुए पॉलिसी पेपर से ही उन्हें भी इस खौफनाक इरादे का पता लग सका. पेपर में साफ लिखा था कि परमाणु विस्फोट से सोवियत के इरादे तो टूटेंगे ही, साथ ही रेडियोएक्टिव विकिरणों के डर से वे लंबे समय तक यूरोप की तरफ आने की हिम्मत नहीं कर सकेंगे. 

योजना में चुभी कील
इस महत्वाकांक्षी योजना में एक बड़ी तकनीकी खामी थी. उत्तरी जर्मनी में जहां बारूद बिछाए गए थे, वहां सर्दियों में तापमान काफी कम हो जाता था. अंडरग्राउंड तो ये और नीचे रहता. ऐसे में जरूरत पर वो फेल भी हो सकता था. कई तरीके सोचे-आजमाए गए, लेकिन काम नहीं बन सका.

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इसके बाद आया चिकन का आइडिया
तय हुआ कि हर बम की खोल के साथ जिंदा चिकन्स को पैक कर दिया जाए. साथ में हफ्तेभर के लायक दाना-पानी भी रखा जाए. उनके शरीर की गर्मी से सुरंग में भी गर्मी रहेगी. ब्रिटिश सेना ने इसके अमल की भी तैयारी कर ली, लेकिन तभी पॉलिसी पेपर लीक हो गया और जर्मनी समेत पूरा यूरोप भड़क उठा. इसके बाद साल 1958 में वहां की डिफेंस मिनिस्ट्री ने ऑपरेशन ब्लू पीकॉक को तुरंत बंद करने का आदेश दिया, ये कहते हुए इससे दुश्मन के साथ-साथ मित्र देशों का भी नुकसान होगा. 

50 के दशक के आखिर में रोके गए इस ऑपरेशन के बारे में आम लोगों को साल 2004 में पता लगा, जब इसे डीक्लासिफाई किया गया, यानी गोपनीय सूचनाओं की लिस्ट से हटाया गया. 

 

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