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Opinion: पाक में जम्हूरियत की जंग

दहशतगर्दी से जूझते पाकिस्तान में इस बार एक दूसरी किस्म की जंग लड़ी जा रही है. यह है जम्हूरियत की जंग. विपक्षी पार्टी पाकिस्तानतहरीक-ए-इंसाफ के चीफ पूर्व क्रिकेटर इमरान खान और मौलवी ताहिर उल-कादरी ने पीएम नवाज शरीफ पर चुनाव में हेराफेरी का आरोपलगाते हुए उनसे इस्तीफे की मांग की. मांग न माने जाने पर दोनों ने अपने समर्थकों के साथ राजधानी इस्लामाबाद की ओर कूच किया. उन्होंनेअपने समर्थकों को धरना-प्रदर्शन के जरिये सरकार के गिरने तक आंदोलन करने का आह्वान किया. इसके बाद से इस्लामाबाद में अफरा-तफरी और झड़पों का माहौल है.

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दहशतगर्दी से जूझते पाकिस्तान में इस बार एक दूसरी किस्म की जंग लड़ी जा रही है. यह है जम्हूरियत की जंग. विपक्षी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के चीफ पूर्व क्रिकेटर इमरान खान और मौलवी ताहिर उल-कादरी ने पीएम नवाज शरीफ पर चुनाव में हेराफेरी का आरोप लगाते हुए उनसे इस्तीफे की मांग की. मांग न माने जाने पर दोनों ने अपने समर्थकों के साथ राजधानी इस्लामाबाद की ओर कूच किया. उन्होंने अपने समर्थकों को धरना-प्रदर्शन के जरिये सरकार के गिरने तक आंदोलन करने का आह्वान किया. इसके बाद से इस्लामाबाद में अफरा-तफरी और झड़पों का माहौल है.

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पुलिस आंदोलनकारियों को रोकने में विफल रही है और उन्होंने तो एक बार सरकारी टीवी चैनल पीटीवी पर कब्जा भी कर लिया. यह आंदोलन कई बार हिंसक होता भी दिखा लेकिन कुल मिलाकर दोनों पक्षों ने सब्र से काम लिया और हिंसक घटनाओं से अपने को दूर ही रखा. यही अब तक इस आंदोलन की खास बात रही है. दरअसल पाकिस्तान में हमेशा ऐसे मौकों पर फौज आगे आकर सत्ता पर कब्जा करती रही है. वहां फौजी विद्रोह तो आम बात है, इसलिए दोनों ही पक्ष नरमी बरत रहे हैं और ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं कि फौज कूद पड़े. फौज का रवैया अभी तक तो सहयोगात्मक दिख रहा है और वह तटस्थ भाव से इस आंदोलन को देख रही है. उसने अभी तक कोई नकारात्मक संकेत नहीं दिया है. यह पाकिस्तान के लिए सुकून की बात है. इससे ऐसा तो लग रहा है कि वहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो चुकी हैं. इस आंदोलन से एक बात तो हुई है कि आम पाकिस्तानी लोकतंत्र के दायरे में रह रहा है और वैसा ही सोच रहा है. वह धर्म और आतंकवाद से परे एक नई सुबह देख रहा है. इससे उसकी सोच में बदलाव आएगा और पाकिस्तान एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर अपने को आगे बढ़ाएगा.

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यह भारत के लिए बहुत जरूरी है. पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए जरूरी होगा कि पहले वहां एक स्थिर सरकार हो और उसे व्यापक जनसमर्थन मिला हो. ऐसी सरकार ही भारत से हर मुद्दे पर बात कर सकती है और समस्याओं का हल निकाल सकती है. इस आंदोलन के बाद अगर नवाज शरीफ सत्ता में बने रह जाते हैं तो उनके लिए आने वाले दिन कठिन होंगे क्योंकि वह कमजोर हो जाएंगे. उनके फैसलों को फौज उतनी आसानी से नहीं मानेगी, खासकर रक्षा तथा विदेशी मामलों में. ऐसी हालत में उनका बचा हुआ कार्यकाल उनके लिए आसान नहीं होगा. उन्हें सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी.

बहरहाल इतना तो कहा जा सकता है कि पाकिस्तान की जनता में जम्हूरियत के प्रति पहले से कहीं बदला हुआ रुख दिख रहा है. आने वाला समय इसकी पुष्टि करेगा.

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